धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को भृगुवंशीय ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था। विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार के रूप में अवतरित परशुराम का प्रारम्भिक नाम राम था परंतु अपने गुरु भगवान शिव से प्राप्त अमोघ दिव्य शस्त्र परशु (फरसा) को धारण करने के कारण यह परशुराम कहलाए।
सत्य के साथ पराक्रम
परशु पराक्रम का प्रतीक है, राम पर्याय है सत्य सनातन का, इस प्रकार परशुराम पराक्रम के कारक और सत्य के धारक हैं। जन्म समय में छह ग्रह उच्च के होने से वे तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी महापुरुष थे।
प्रतापी एवं मातृ-पितृ भक्त परशुराम ने जहां पिता की आज्ञा से माता का गला काट दिया, वहीं पिता से माता को पुनः जीवित होने का वर मांगकर उन्हें जीवित कर लिया।
अन्याय के खिलाफ आवाज
परशुराम को उनके हठी स्वभाव, क्रोध और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए याद किया जाता है। प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य था।
न्याय के पक्षधर परशुरामजी दीन-दुखियों, शोषितों और पीड़ितों की निरंतर सहायता एवं रक्षा करते थे। अंत में परशुराम ने कश्यप ऋषि को पृथ्वी का दान कर दिया और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे।
चिरंजीवी हैं परशुराम
परशुराम का सप्त चिरंजीवियों में स्थान है। वह आज भी इस ब्रह्मांड में विचरण करते हैं। परशुराम जयंती पर हवन, पूजन, भोग, भंडारा एवं दान करना शुभ होता है। इस दिन किए जाने वाले दान पुण्य का अक्षय फल प्राप्त होता है।
अबूझ और शुभ तिथि
अक्षय तृृतीया को अबूझ मुहूर्त वाली शुभ तिथि माना जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव के रूप में अवतार लिया था। इस तिथि से ही सतयुगादि युगों का प्रारम्भ होने के कारण इसे युगादि तिथि कहते हैं। बद्रीनाथ धाम के कपाट भी इसी तिथि से खुलते हैं।
आध्यात्मिक महत्व के कारण ही अक्षय तृृतीया का दिन विवाह, चूड़ाकर्म, रत्न धारण, मंत्र साधना आदि शुभ मांगलिक और धार्मिक कार्यों के लिए स्वयंसिद्ध मुहूर्त का दिन है। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृृतीया परम पुनीत मंगलकारी एवं अक्षय पुण्य फलदायिनी तिथि है।
इस दिन जप, दान, हवन, स्वाध्याय, व्रत आदि करने का महापुण्य एवं अक्षय फल प्राप्त होता है। इस तिथि से नया कार्य व्यवसाय प्रारम्भ करने से सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
- डॉ. महेश शर्मा
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