अजमेर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा रविवार तड़के खोल दिया गया। उर्स में कुल की रस्म तक यानी 6 दिन इस दरवाजे से गुजर कर जियारत की जा सकेगी।
इस्लामी महीने रजब का चांद नजर आया तो रविवार रात से ही ख्वाजा साहब के 803 वें उर्स की धार्मिक रस्में शुरू हो जाएंगी। चांद देखने के लिए शाम को दरगाह कमेटी कार्यालय में हिलाल कमेटी की बैठक बुलाई गई है। इस दौरान चांद नजर आया तो बड़े पीर की पहाड़ी से तोप दागी जाएगी और दरगाह परिसर में शादियाने बजा कर चांद की घोषणा की जाएगी। चांद नहीं दिखने की सूरत में सोमवार रात से उर्स की धार्मिक रस्में शुरू होंगी।
जन्नती दरवाजा साल में चार बार खास मौकों पर ही खोला जाता है। उर्स के दौरान यह दरवाजा छह दिन तक खुला रहेगा। उर्स में आने वाला हर जायरीन इस दरवाजे से गुजर कर जियारत करता है। ईदुलफितर, ईदुलजुहा और ख्वाजा उस्मान हारूनी के उर्स के मौके पर एक-एक दिन के लिए यह दरवाजा खोला जाता है।
यूं हुआ जन्नती दरवाजे का निर्माण
दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने बताया कि मुस्लिम धर्मावलंबी पश्चिम में रुख कर नमाज अदा करते हैं। जन्नती दरवाजे का रुख इसी दिशा में होने से इसे विशेष धार्मिक महत्व मिला। धार्मिक स्थल मक्का के इसी दिशा में होने से जन्नती दरवाजा को मक्की दरवाजा भी कहा जाता है। इन्हीं मान्यताओं के चलते दरवाजे से निकलना जन्नत नसीब होने के बराबर माना जाता है। जन्नती दरवाजे का निर्माण ख्वाजा हुसैन नागौरी ने करवाया था। मुगल बादशाह शहंशाह ने सन् 1643 में इसे मुकम्मल कराया। यह भी कहा जाता है कि ख्वाजा साहब स्वयं इस रास्ते से ही अपने हुजरे में आते-जाते थे।
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