सोमवार, 27 अप्रैल 2015

लंगा और मंागणिहारों ने 100 से अधिक देशों में बिखेरा लोक कला संस्कृति का जादू

लंगा और मंागणिहारों ने 100 से अधिक देशों में बिखेरा लोक कला संस्कृति का जादू

 
 समुदाय के 250 से अधिक कलाकार कर चुके है विदेशों की यात्रा 
 बाड़मेर
बाड़मेरकी लोक कला संस्कृति का संगम सात समंदर पार भी देखने को मिल रहा है। मांगणियार समुदाय के 250 से अधिक लोक कलाकार सैकड़ों देशों की यात्रा कर अपने संगीत सुरों का जादू बिखेर चुके हैं।
इनमें अनवर खां, नगा खां, फकीरा खां, स्वरूप खां के नाम प्रमुख है। इन कलाकारों को एक हजार से अधिक गाने कंठस्थ याद है। इन कलाकारों की पूरी आजीविका भी इस लोक संगीत पर टिकी हुई है।
रेतीले धोरों के सुरों संगीत को सात समंदर पार भी ख्याति मिल रही है। सीमावर्ती दुर्गम इलाकों से लेकर ढाणियों और शहरों तक गूंजती लोक लहरिया अपने अाप में अनूठी कला है। जैसलमेर और बाड़मेर जिले में रहने वाले मांगणियार ऐसा समुदाय है जिसका हर सदस्य परंपरागत लोक संगीत का संवाहक है। गाने-बजाने का मौलिक हुनर इनकी वंश परम्परा का मूल हिस्सा बन चुका है, जो आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित है। ये कलाकार संगीत लोक कला के बल पर दुनिया के कई मुल्कों में अपने लोक संगीत की छाप छोड़ चुके हैं।
मांगणियार संगीत की विभिन्न शैलियों में उनका गायन बेमिसाल है। मुख्य रूप से कल्याण, कमायचा, दरबारी, तिलंग, सोरठ, बिलवाला, कोहियारी, देश, करेल, सुहाब, सामरी, बिरवास, मलार आदि का गायन हर आयोजन को ऊंचाई देता है।
ख्यातिप्राप्त
अनवरखां : 60देशों की 300 यात्राएं की बईयागांव के अनवर खां जन्म से सुरों के जादूगर रहे हैं। शुरूआत में गांव की ढाणियों में कला संगीत का परचम लहराया। धीरे-धीरे दुनिया भर में पहचान मिल गई। अनवर खां ने अब तक 60 देशों की 300 से अधिक यात्राएं की है। झिंगारो थियेटर ग्रुप में 490 से अधिक प्रोग्राम पेश किए है। फिल्म रंग रसिया में भी खां प्रस्तुति दे चुके है। 26 जनवरी 15 अगस्त के मौके पर दिल्ली में राजपथ पर होने वाले कार्यक्रम में भी तीन बार अपनी कला का हुनर बिखेरा है। अब तक राजस्थान संगीत रत्न सहित कई अवार्ड प्राप्त किए हंै।
सबसे बुजुर्ग
नगाखां : 76की उम्र में कंठस्थ याद है 1000 गाने कलाकारकॉलोनी में रहने वाले नगा खां 76 साल की उम्र में भी सुरों ताल में कमी नहीं रही है। अब तक फ्रांस, आस्ट्रेलिया, स्वीट्जरलैंड, जर्मनी, अमेरिका, हांगकांग, बैंकाक, चीन, पेरिस, सहित 40 से अधिक देशों की यात्रा कर चुके है। रिदम आफ राजस्थान, पर्यटन विभाग भारत सरकार के सहयोग से झिंगारों थियेटर ग्रुप के माध्यम से कई देशों की यात्रा की। मांगणियार लोक कला संगीत के बल पर अपनी पहचान बनाई। एक विदेश यात्रा पर करीब 60 से 80 हजार रुपए कमा रहे है।
सबसे युवा
स्वरूपखां : लोककला को बनाया कॅरियर जैसलमेरके स्वरूप खां लोक कला संगीत के सुरों का जादू देश-विदेश के अलावा फिल्मों में बिखेर रहे हैं। पहले इंडियन आइडल और अब पीके फिल्म में धाक जमा चुके है। अब तक सूफी और राजस्थानी तरानों को आवाज देने वाले गायक स्वरूप ने अब तक 17 देशों की यात्राएं हैं। स्वरूप खां इंडियन आइडल के अंतिम चार में भी पहुंचे थे। अब फिल्म इंडस्ट्रीज में भी उनके सुरों की पहचान होने लगी है। फिलहाल वे मुम्बई में ही है और सुरों से कैरियर तक का सफर तय किया है। 

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