मंगलवार, 31 मार्च 2015

रिफाइनरी : जमीन और पैसा दोनों में कटौती चाहती है सरकार



रिफाइनरी : जमीन और पैसा दोनों में कटौती चाहती है सरकार


पूर्व सरकार ने रिपोर्ट के अगले ही दिन कर लिया था एमओयू

पिछली सरकार ने 1 हजार एकड़ जमीन ज्यादा दी : प्राइस वाटर कूपर्स

पालिटिकल रिपोर्टर। जयपुर


कंसलटेंसीफर्म प्राइस वाटर कूपर्स ने एचपीसीएल रिफाइनरी की अंतरिम समीक्षा रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। हालांकि फुल रिपोर्ट तैयार होने में 2 महीने और लग सकते हैं। रिपोर्ट पर सरकार ने सोमवार सुबह एचपीसीएल अफसरों के साथ बैठक की। बैठक में वित्त विभाग, पेट्रोलियम प्रमुख सचिव भी मौजूद रहे। रिपोर्ट में रिफाइनरी प्रोजेक्ट पर पूर्व सरकार के एमओयू की वित्तीय समीक्षा की गई है। सरकार ने कहा कि एचपीसीएल इस रिपोर्ट के आधार पर अपने एमओयू की समीक्षा करे। साथ ही सरकार ने प्राइस वाटर कूपर्स से कहा है कि वह अप्रैल में ही इस मामले में रिफाइनरी की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार करने वाली कंसलटेंसी कंपनी एसबीआई कैप्स के साथ बैठक करे।

रिपोर्टमें ये आपत्तियां आईं

प्रोजेक्टके लिए जितनी जमीन की जरूरत थी उससे करीब 1 हजार एकड़ ज्यादा जमीन रिफाइनरी को दी गई है। इसके अलावा रिपोर्ट में एचपीसीएल को 15 साल के लिए हर वर्ष 3800 करोड़ रुपए के इंटरेस्ट फ्री लोन पर भी सवाल उठाए गए हैं। एचपीसीएल ने यह लोन प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिए नहीं बल्कि अपने कैश प्रॉफिट को 5 हजार करोड़ रुपए के स्तर पर बनाए रखने के लिए मांगा था। इसके अलावा सरकार ने एचपीसीएल से यह भी पूछा है कि वह अपना मार्जिन प्रोफिट किस राशि पर रखना चाहती है।

प्रोजेक्टकॉस्ट 37 हजार और कर्ज 57 हजार का

एमओयूके मुताबिक रिफाइनरी की प्रोजेक्ट कॉस्ट 37 हजार मानी गई। जबकि सरकार की ओर से इसकी एवज में उसने सरकार से 15 सालों तक करीब 57 हजार करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त कर्ज मांगा था। वहीं 37 हजार में 1/3 हिस्सा इक्विटी और 2/3 लोन का था। इक्विटी में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी राजस्थान की ओर 74 प्रतिशत एचपीसीएल की मानी गई। इधर, सरकार ने एचपीसीएल से दूसरे राज्यों में रिफाइनरी को दी जा रही सहायता की भी रिपोर्ट मांगी थी। इसके मुताबिक उड़ीसा, पंजाब, मध्यप्रदेश और गुजरात में स्थापित रिफाइनरियों में वहां की सरकारों की तरफ से वैट, सीएसटी, एंट्री टैक्स में छूट दी जा रही है। वहीं राजस्थान में इन सबकी एवज में एचपीसीएल ने 3800 करोड़ रुपए का इंटरेस्ट फ्री लोन मांगा।

पूर्ववर्ती गहलोत सरकार की ओर से इस एमओयू को साइन करने के लिए जितनी जल्दबाजी दिखाई गई उसे लेकर भी मौजूदा सरकार आपत्ति जता रही है। एचपीसीएल ने 18 फरवरी 2013 को रिफाइनरी के लिए एसबीआई कैप्स की रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इसके बाद 19 फरवरी को यह रिपोर्ट पेट्रोलियम सचिव सुधांश पंत के पास गई। इसके बाद 20 फरवरी को इस रिपोर्ट पर मंत्री, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के साइन भी हो गए। इससे साफ होता है कि सरकार ने इस रिपोर्ट का अध्ययन ही नहीं किया। एचपीसीएल की ओर से सरकार को जो रिपोर्ट पेश की गई उसमें 10 सालों तक उत्पाद बिक्री के आंकड़ों को समान दिखाया गया। यानी रिपोर्ट के आधार पर यह माना गया कि 10 सालों तक रिफाइनरी से तैयार माल की बिक्री में कोई अंतर नहीं आएगा। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आए उतार-चढ़ाव से एक साल में ही प्रदेश को क्रूड से मिलने वाली रॉयल्टी पर करीब 1500 करोड़ रुपए का फर्क आया है। इसके अलावा कुल आय, कॉस्ट ऑफ फीड स्टॉक, ग्रोस रेवेन्यू मार्जिन के आंकड़ों को भी 10 सालों के लिए समान ही रखा गया। जबकि इन सब पर बाजार की दशाओं का असर होता है।

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