जयपुर। पंचायत चुनाव के लिए शैक्षणिक योग्यता तय करने का मामला सोमवार को हाईकोर्ट में छाया रहा।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने श्ौक्षणिक योग्यता तय करने का विरोध करते हुए कहा कि जब राष्ट्रपति तक किसी जनप्रतिनिधि की श्ौक्षणिक योग्यता तय नहीं है तो सरपंच व अन्य पंचायत प्रतिनिधियों के लिए क्यों लागू की जा रही है?
उधर, सरकार ने तर्क दिया है कि अनपढ़ होने के कारण पंचायत प्रतिनिधियों को आपराधिक मामलों में फंसने से बचाने के लिए यह प्रावधान किया गया है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी व न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खण्डपीठ ने सोमवार को नौरती व अन्य की ओर से दायर करीब डेढ़ दर्जन याचिकाओं पर करीब पांच घंटे तक सुनवाई की, मंगलवार सुबह इस मामले में फिर सुनवाई होगी।
सोमवार को याचिकाकर्ताओं की बहस पूरी हो गई, राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता नरपतमल लोढ़ा ने बहस की शुरूआत की, लेकिन समय पूरा होने के कारण अधूरी रह गई।
सरपंचों के लिए नामांकन तो 17 से हैं
याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में कहा गया कि सरपंच लोकतंत्र के लिए पाठशाला है और याचिकाकर्ता महिलाएं पहले सरपंच-प्रधान रह चुकी हैं, लेकिन अब श्ौक्षणिक योग्यता के कारण चुनाव नहीं लड़ पा रही हैं।
सरपंच चुनाव की प्रक्रिया 17 जनवरी से शुरू होगी, जिला परिष्ाद व पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव के एक चरण के लिए अभी नामांकन होना है। ऎसे में हाईकोर्ट दखल कर सकता है।
पहले दो चरणों के लिए नामांकन की तारीख बढ़ाई जाए। हाल ही हुए शहरी निकाय चुनाव में ऎसी कोई श्ौक्षणिक योग्यता नहीं थी और सांसद- विधायक अनपढ़ बन सकते हैं, तो पंचायत प्रतिनिधियों के लिए ऎसी बाध्यता क्यों की गई? ऎसी क्या आपात स्थिति थी जो विधानसभा का सत्र बुलाए बिना ही अध्यादेश लाकर कानून में संशोधन करना पड़ा।
अनपढ़ होकर भी 700 को कम्प्यूटर प्रशिक्षण
"मैं अनपढ़ हूं, लेकिन बीस साल से कम्प्यूटर पर काम कर रही हूं और 700 महिलाओं को काम सिखा चुकी हूं।" अजमेर जिले के हरमाड़ा की सरपंच नौरती ने सोमवार को पंचायत चुनाव में श्ौक्षणिक योग्यता के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई के बाद मीडिया से बातचीत में यह प्रतिक्रिया दी।
नौरती ने कहा कि उन्होंने सरपंच रहते पंचायत का ऑडिट कराया, कम्प्यूटर पर वर्ड और टेली में काम करती है। पचास साल में उनसे पहले वाले सरपंचों से अधिक काम किया। उन्होंने श्ौक्षणिक योग्यता के मुद्दे पर कहा, मुश्किल से महिला घूंघट से निकलने लगी थी, सरकार पढ़ने का मौका देती तो पढ़कर फिर चुनाव लड़ती।
अजमेर जिले की तिलोनिया ग्राम पंचायत की सरपंच कमला भी श्ौक्षणिक योग्यता के कारण चुनाव के लिए अयोग्य हो गई है। नौरती और कमला ने एक साथ याचिका दायर की है।
याचिकाकर्ता ने विरोध में कहा
पंचायत प्रतिनिधि ब्यूरोक्रेट नहीं हैं, पंचायतों का अलग सचिवालय होता है।
अध्यादेश लाकर लोगों को राजनीतिक भागीदारी से रोका गया है।
58-59 साल की उम्र में कहां पढ़ने जाएं
महिला, वंचित वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा।
याचिकाकर्ता अनपढ़ महिलाओं को तो प्रेरणास्त्रोत बनाया जाए।
अध्यादेश लाने से पहले पढ़ने के लिए मौका नहीं दिया।
राजनीतिक कारणों से अध्यादेश लाया गया।
अनुसूचित क्षेत्रों में भी श्ौक्षणिक योग्यता की बाध्यता लागू कर दी है।
पंच की योग्यता ही तय नहीं की, जबकि वह उप सरपंच और कार्यवाहक सरपंच बन सकता है।
जवाब में सरकार के तर्क
अनपढ़ प्रतिनिधि होने के कारण जमीनी स्तर पर लोकतंत्र का लाभ नहीं मिल रहा। अनपढ़ होने के कारण बड़ी तादाद में प्रतिनिधि मुकदमे या अन्य कार्रवाई में फंसे हैं।
पंचायतों को 10 हजार करोड़ रूपए के कार्य आवंटित किए हैं, जिनके चेक सरपंच जारी करेंगे।
ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिष्ाद वाçष्ाüक कार्ययोजना व बजट तैयार करेंगे।
जिला परिष्ाद सीईओ व विकास अधिकारी की वाçष्ाüक रिपोर्ट पढ़े-लिखे जिला प्रमुख व प्रधान ही सही भर पाएंगे।
प्रमुख, प्रधान व सरपंच आरटीआई में अपील सुनते हैं, इनके अनपढ़ होने से कानून का सही पालन नहीं।
राजस्थान सेवा प्रदायगी की गारंटी अधिनियम में सरपंच को जिम्मेदारी, अनपढ़ होने से मकसद पूरा नहीं होगा। अनपढ़ प्रतिनिधि नेता होंगे तो शिक्षा से जुड़ी समस्याएं दूर नहीं होंगी।
चुनाव लड़ना मूलभूत अधिकार नहीं, राज्यपाल ने संविधान के तहत अध्यादेश जारी किया है।
सरपंच पढ़ा लिखा होगा, तो सरकार से जारी निर्देश और परिपत्रों को पढ़ पाएगा। -
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