गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

भाजपा सरकार द्वारा राजस्थान पंचायत राज (द्वितीय संशोधन) मूलभावना के खिलाफ पायलट

भाजपा सरकार द्वारा राजस्थान पंचायत राज (द्वितीय संशोधन) मूलभावना के खिलाफ पायलट 


जयपुर, 25 दिसम्बर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री सचिन
पायलट ने आज प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता को
सम्बोधित करते हुए राज्य की भाजपा सरकार द्वारा राजस्थान पंचायत राज
(द्वितीय संशोधन) अध्यादेश-2014 को पंचायत राज संस्थाओं की स्थापना की
मूलभावना के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश के माध्यम से जिला
परिषद् एवं पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के लिए
शैक्षणिक अनिवार्यता 10वीं कक्षा उत्तीर्ण होना तथा सरपंच का चुनाव लडऩे
वाले प्रत्याशियों के लिए 8वीं कक्षा पास होना अनिवार्य किया गया है। यह
अध्यादेश भेदभाव बढ़ाने वाला है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 17 के
समानता के अधिकार के विरुद्ध है। इसे पंचायत राज चुनाव के ठीक पहले लागू
किया जाना सभी प्रत्याशियों व राजनैतिक पार्टियों व जनता के हित में नहीं
है। जनगणना-2011 के आँकड़ों से सुस्पष्ट है कि राजस्थान राज्य की
साक्षरता दर राष्ट्रीय साक्षरता दर से कम है (राष्ट्रीय साक्षरता दर 74
प्रतिशत है जिसके अनुपात में राजस्थान की साक्षरता दर सिर्फ 66 प्रतिशत
है)। ग्रामीण साक्षरता दर तो राज्य की साक्षरता दर से 5 प्रतिशत और कम
होकर 61 प्रतिशत ही है तथा ग्रामीण महिलाओं की साक्षरता दर इससे भी बहुत
ज्यादा कम 45.8 प्रतिशत ही है। इसी क्रम में ग्रामीण क्षेत्रों में
अनुसूचित जाति की साक्षरता दर इसकी भी आधी है तथा अनुसूचित जाति की
महिलाओं की साक्षरता दर ग्रामीण क्षेत्रों में 31 प्रतिशत से भी कम है।
इस साक्षरता दर का तात्पर्य उन लोगों से है जो न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता
भी नहीं रखते वरन् केवल लिख व पढ़ सकते है। इसलिए इस अध्यादेश के माध्यम
से लाखों लोग राजस्थान में पंचायत चुनावों में भाग लेने से वंचित हो
जायेंगे। इस अध्यादेश की सबसे बड़ी मार महिलाओं व अनुसूचित जाति के चुनाव
लडऩे के इच्छुक उम्मीदवारों पर पड़ेगी। इस वजह से ये अध्यादेश 73वें
संविधान संशोधन की मूल भावना के भी खिलाफ है जिसका उद्देश्य आरक्षण देकर
हाशिये पर रहने वाले  तबकों की राजनीतिक भागीदार सुनिश्चित कर उन्हें
मुख्य धारा से जोड़ा जाए।
श्री पायलट ने आज प्रेस को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह गौरतलब है कि
राजस्थान से इतर किसी भी राज्य में पंचायत राज के प्रतिनिधियों के लिए
ऐसी कोई शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता अनिवार्य नहीं है। जब शैक्षणिक
योग्यता के मापदण्डों का निर्धारण विधानसभा एवं लोकसभा के उम्मीदवारों के
लिए नहीं है तो पंचायत राज के स्तर पर इसे बाध्यकारी बनाया जाना स्वत: ही
विवादास्पद प्रतीत होता है क्योंकि नियमों में परिवर्तन ऊपर से नीचे की
तरफ हो तभी उसके परिणाम सुखद होते हैं। यदि भाजपा के वर्तमान विधायकों की
शैक्षणिक योग्यता पर दृष्टि डाली जाये तो आश्चर्यचकित आँकड़े सामने
आयेंगे क्योंकि भाजपा के 160 विधायकों में से 23 विधायक स्वत: ही अयोग्य
हो जायेंगे। इसी प्रकार यदि प्रदेश के भाजपा सांसदों की शैक्षणिक योग्यता
पर गौर किया जाये तो 25 में से दो सांसद अयोग्य घोषित होंगे। उन्होंने
कहा कि क्या भाजपा में इतना साहस है कि इन्हें अयोग्य करार कर राजनैतिक
भागीदारी से वंचित कर सकें। इसलिए यह बड़ा प्रश्न है कि पंचायत राज
संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों के प्रति ऐसा षडय़ंत्र क्यों रचा जा रहा है और
भाजपा का इस प्रावधान को ठीक चुनाव के पहले लागू किये जाने के पीछे
निहितार्थ क्या है ?
इसी प्रकार वर्तमान पंचायत समिति सदस्यों पर शैक्षणिक योग्यता के इन
मापदण्डों को लागू किया जाये तो अनुसूचित जाति के 77.43 प्रतिशत,
अनुसूचित जनजाति के 70.01 प्रतिशत, ओ.बी.सी. के 71.04 प्रतिशत और सामान्य
के 60.65 प्रतिशत यानी कुल 70.49 प्रतिशत पंचायत समिति सदस्य अयोग्य
घोषित हो जायेंगे। इसी प्रकार जिला परिषद सदस्यों पर शैक्षणिक योग्यता के
इन मापदण्डों को लागू किया जाये तो अनुसूचित जाति के 60.52 प्रतिशत,
अनुसूचित जनजाति के 63.24 प्रतिशत, ओ.बी.सी. 53.12 प्रतिशत और सामान्य के
48.03 प्रतिशत यानी कुल 55.08 प्रतिशत जिला परिषद सदस्य अयोग्य घोषित हो
जायेंगे।
अनुभव बताता है कि एक जनप्रतिनिधि के लिए सिर्फ उसकी शैक्षणिक योग्यता ही
उसके सफल सार्वजनिक जीवन में कार्य निष्पादन का मापदण्ड नहीं होता।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस सदैव दलितों व महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण
की पक्षधर रही है। इसलिए कांग्रेस इस विभेदकारी अध्यादेश के खिलाफ है।
प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए श्री पायलट ने कहा कि प्रदेश की भाजपा
सरकार द्वारा राजीव गाँधी सेवा केन्द्रों का नाम बदलकर अटल सेवा केन्द्र
रखे जाने का निर्णय भाजपा सरकार की संकीर्ण मानसिकता का द्योतक है।
श्री पायलट ने कहा कि जब-जब भाजपा की सरकार केन्द्र व राज्य में बनती है
तो उनके नेता अपनी विचारधारा को थोपने के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस
सरकारों द्वारा जारी योजनाओं, कार्यक्रमों एवं उपलब्धियों का नाम बदलकर
अपने नेताओं के नाम लागू कर वाह-वाही लूटने का ओछा काम करते है। सालभर से
प्रदेश में भाजपा की सरकार है और एक वर्ष का कार्यकाल किसी भी योजना या
कार्यक्रम को बनाकर अंजाम देने के लिए पर्याप्त होता है। परन्तु भाजपा
सरकार ने इस दौरान कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया जिसे वह पूर्व
प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी को उनके जन्मदिन पर समर्पित कर सके।
इसलिए राजीव गांधी सेवा केन्द्रों का नाम बदलकर अटल सेवा केन्द्र रखने का
निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव
गाँधी देश की एकता व अखण्डता के लिए शहीद हुए, उनकी शख्सीयत
अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर सद्भावना की प्रतीक है। ऐसे में एक महान् नेता जो
भारत में सूचना-प्रौद्योगिकी के प्रणेता थे, जिन्होंने 21वीं सदी के
उन्नत भारत की परिकल्पना की नींव रखी, उनके नाम से संचालित सेवा
केन्द्रों के नाम बदलना किसी भी दृष्टि से उचित व स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने कहा कि सरकार को स्कूलों के समानीकरण पर भी यू-टर्न लेना पड़ा
है जिससे स्पष्ट हो गया है कि सरकार की यह नीति विसंगतिपूर्ण थी।
उन्होंने कहा कि सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों पर वेट भी वापस लेना
पड़ेगा क्योंकि इससे जनता पर महँगाई की मार बढ़ी है।

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