रविवार, 12 अक्तूबर 2014

देवी ने खुद किया बलि लेने से इनकार



सिराज हलके के चिऊणी गांव में देवी हिडिम्बा ने अपने मंदिर की स्थापना के वार्षिक आयोजन पर बलि लेने से इनकार कर दिया। देवी ने खुद आगे बढ़कर अपने प्रतिनिधियों को कहा कि भविष्य में मंदिर परिसर में बलि प्रथा पर पूर्णतया रोक लगाई जाए। देवी हिडिम्बा का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब हाईकोर्ट के फैसले के बाद देव समाज में बलि प्रथा को लेकर बहस छिड़ी हुई है।

जिले के सराज विकास खंड की अत्यंत दुर्गम पंचायत चिऊणी में हिडिम्बा देवी परिसर में शनिवार व रविवार को वार्षिक स्थापना समारोह था। प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के बाद देवी के हरियान यानी भक्त दुविधा में थे कि मंदिर परिसर में बलि दी जाए या नहीं, हालांकि देवलुओं ने पूर्ण तैयारियां कर रखी थी। देवी ने देवलुओं के असमंजस को समझते हुए बलि लेने से इन्कार कर दिया।

मंदिर कमेटी के सचिव रामचंद्र ने बताया कि करीब ढाई सौ साल पुराने पौराणिक मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद यहां वर्षगांठ मनाई जा रही थी। परंपरा के अनुसार मंदिर के वार्षिक समारोह में पांच बकरों/मेढ़ों की बलि दी जानी थी, लेकिन देवी हिडिम्बा के आशीर्वाद से बलि देने की नौबत ही नहीं आई। लोगों ने भी देवी के आदेश का माना और मंदिर में कोई बलि नहीं चढ़ाई।

उन्होंने बताया कि देवी ने भविष्य में मंदिर परिसर में बलि प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। देवी हिडिम्बा महाबली भीम की पत्‍‌नी और घटोत्कच्च की माता है। इनका एक प्रसिद्ध मंदिर मनाली में है।

पहले इसी मंदिर में चिऊणी पंचायत के सराहु में स्थित देवी हिडिम्बा मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में मंदिर परिसर में 31 बलियां दी गई थी। पूरे क्षेत्र में लगभग 150 बकरों की बलि चढ़ी थी। गत वर्ष मंदिर के शुद्धीकरण को 27 बकरों के अलावा एक सुअर, एक मछली, एक मशैकड़ा (केकड़ा) और एक पेठे की बलि दी गई लेकिन इस बार देवी ने किसी भी प्रकार की बलि लेने से इनकार कर दिया। मंदिर में स्थापना वर्षगांठ की समस्त कार्रवाई नारियल काटकर पूरी गई।

-शेर सिंह उर्फ नागणू, देवी के कुल पुरोहित।

पशुबलि पर फैसले के इंतजार में देव समाज

राष्ट्रीय स्यवयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाहक डा. वीर सिंह रागड़ा ने कहा कि कानून की नजरों में सब बराबर हैं। कोई मुस्लिम हो या सिख या फिर ईसाई, कानून सब पर एक समान लागू होता है। उनके अनुसार, जब कोर्ट ने पशु बलि पर रोक लगा दी है, तो सभी समुदायों को अपनी धार्मिक आस्थाओं में बदलाव करना ही चाहिए।

उन्होंने कहा, 'पशुओं की हत्या करना पूर्णत: गलत है।' डॉ. रांगड़ा के अनुसार, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले का फैसला बिलकुल सही है। आरएसएस के स्वयं सेवक पशु बलि के संबंध में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के साथ हैं। हालांकि अभी अब मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है। वहां जो भी फैसला होगा सबको स्वीकार होना चाहिए। पशुओं को जीने का अधिकार है। इस दुनिया में सबको जीने का अधिकार है।

पशु बलि के खिलाफ लगाए हैं होर्डिग्स

प्रशासनिक अधिकारियों के साथ कारदार संघ बैठक कर रहा है। देवताओं के शिविरों में पशु बलि प्रतिबंध को लेकर करीब एक लाख पर्चे बांटे गए हैं। देवताओं के स्थान पर पशुबलि के खिलाफ होर्डिग लगाए गए हैं।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पशुबलि पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद अब देवी देवता कारदार संघ की नजरें उच्चतम न्यायालय कै फैसले पर लगी हैं। वास्तव में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू में नौ अक्टूबर को लंका दहन के दौरान निभाई जाने वाली प्रथा में पशुबलि दी जाती है। कारदार संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि दशहरे में लंका दहन से पहले दायर याचिका पर फैसला आ जाएगा।

जिला कारदार संघ के अध्यक्ष दोतराम कहते हैं कि उन्होंने याचिका में अधिवक्ता के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पक्ष रखा है कि महाराष्ट्र में भी पशु बलि पर छूट दी गई है तो उसी आधार पर उन्हें भी इस प्रथा को निभाने की छूट मिलनी चाहिए। आठ अक्टूबर तक फैसला आ जाएगा, इस बारे में भी उन्हें मंगलवार को 11 बजे तक इस पर तस्वीर साफ हो पाएगी। दशहरे में लंका दहन के अंतिम दिन नौ अक्टूबर को पशु बलि की पारपंरिक परंपरा निभाई जाती है। पशुबलि पर लगे प्रतिबंध से देव समाज में भी माहौल अलग बना हुआ है। 26 सितंबर को नगर में पशुबलि को लेकर देव संसद (जगती) बुलाई गई। देवताओं ने जगती में फैसला सुनाया है कि वे पुरानी परंपरा को नहीं छोड़ नई को नहीं अपनाएंगे। अब देशभर के लोगों व मीडिया की भी नजरें लंका दहन पर टिकी हुई हैं। सोमवार को जिला कारदार संघ के अध्यक्ष दोत्तराम की अध्यक्षता में हुई बैठक में मुद्दा छाया रहा। बैठक में क्या निर्णय लिए गए, इस पर बोलने के लिए कोई सदस्य तैयार नहीं है।

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