मुख्यमंत्री की पहल पर ,अफीम की खेती के लिए बनेगी नई नीति
जयपुर, 13 सितम्बर। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे की पहल पर केन्द्र सरकार अफीम की खेती के लिए नई नीति बना रही है। केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन के अनुसार अगले कुछ सप्ताह में अफीम की बुआई का सीजन शुरू होने से पहले ही यह नीति घोषित हो जायेगी।
राजस्थान में चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, झालावाड़, बारां, कोटा, भीलवाड़ा व बाड़मेर में अफीम की खेती की जाती है लेकिन इसके लिए लाइसेंस व्यवस्था की खामियों के चलते बुआई क्षेत्र 10 वर्ष पहले के 26,000 हैक्टेयर के मुकाबले 5,800 हैक्टेयर रह गया है। 10 वर्ष पहले राज्य में 1.6 लाख किसान अफीम की खेती से जुड़े हुए थे, अब उनकी संख्या घटकर मात्र 46,000 रह गई है। राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश में भी अफीम की खेती की जाती है लेकिन वहां बुआई क्षेत्र बहुत कम है।
अफीम की वर्तमान नीति में सबसे बड़ी खामी लाइसेंस प्रक्रिया की है। जिन किसानों को अफीम उगाने का लाइसेंस मिलता हैं उनकी फसल मौसमी या अन्य कारणों से खराब हो जाने पर कोई मुआवजा नहीं मिलता और लाइसेंस भी निरस्त हो जाता है।
अफीम का उपयोग कई तरह की दवाईयां बनाने के अलावा खस-खस या पोस्त दाना बनाने में उपयोग होता है। देश में पोस्त दाने का उत्पादन मांग का मात्र 20 प्रतिशत है। इसलिए अफीम के किसान लगातार बुआई क्षेत्र बढ़ाने व लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग करते रहे हंै।
केन्द्रीय मंत्री श्रीमती सीतारमन के अनुसार किसानों की संख्या कम होने के बावजूद उनका मंत्रालय इस मुद्दे पर बहुत गम्भीर हैं और मुख्यमंत्री श्रीमती राजे से फोन पर चर्चा के तुरन्त बाद उन्होंने अपने विभाग, राजस्व विभाग व केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारियों को तुरन्त अफीम उत्पादन नीति की समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं।
इस संदर्भ में राजस्थान सहित अफीम उत्पादक अन्य राज्यों के किसानों, क्षेत्रीय सांसदों एवं विधायकों के साथ बैठक भी हो चुकी है। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि यह मामला पिछले कई वर्षों से लटका हुआ है लेकिन अब इसमें देरी नहीं होगी।
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जयपुर, 13 सितम्बर। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे की पहल पर केन्द्र सरकार अफीम की खेती के लिए नई नीति बना रही है। केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन के अनुसार अगले कुछ सप्ताह में अफीम की बुआई का सीजन शुरू होने से पहले ही यह नीति घोषित हो जायेगी।
राजस्थान में चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, झालावाड़, बारां, कोटा, भीलवाड़ा व बाड़मेर में अफीम की खेती की जाती है लेकिन इसके लिए लाइसेंस व्यवस्था की खामियों के चलते बुआई क्षेत्र 10 वर्ष पहले के 26,000 हैक्टेयर के मुकाबले 5,800 हैक्टेयर रह गया है। 10 वर्ष पहले राज्य में 1.6 लाख किसान अफीम की खेती से जुड़े हुए थे, अब उनकी संख्या घटकर मात्र 46,000 रह गई है। राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश में भी अफीम की खेती की जाती है लेकिन वहां बुआई क्षेत्र बहुत कम है।
अफीम की वर्तमान नीति में सबसे बड़ी खामी लाइसेंस प्रक्रिया की है। जिन किसानों को अफीम उगाने का लाइसेंस मिलता हैं उनकी फसल मौसमी या अन्य कारणों से खराब हो जाने पर कोई मुआवजा नहीं मिलता और लाइसेंस भी निरस्त हो जाता है।
अफीम का उपयोग कई तरह की दवाईयां बनाने के अलावा खस-खस या पोस्त दाना बनाने में उपयोग होता है। देश में पोस्त दाने का उत्पादन मांग का मात्र 20 प्रतिशत है। इसलिए अफीम के किसान लगातार बुआई क्षेत्र बढ़ाने व लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग करते रहे हंै।
केन्द्रीय मंत्री श्रीमती सीतारमन के अनुसार किसानों की संख्या कम होने के बावजूद उनका मंत्रालय इस मुद्दे पर बहुत गम्भीर हैं और मुख्यमंत्री श्रीमती राजे से फोन पर चर्चा के तुरन्त बाद उन्होंने अपने विभाग, राजस्व विभाग व केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारियों को तुरन्त अफीम उत्पादन नीति की समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं।
इस संदर्भ में राजस्थान सहित अफीम उत्पादक अन्य राज्यों के किसानों, क्षेत्रीय सांसदों एवं विधायकों के साथ बैठक भी हो चुकी है। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि यह मामला पिछले कई वर्षों से लटका हुआ है लेकिन अब इसमें देरी नहीं होगी।
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