नई दिल्ली। सैकड़ों साल तक भारतीय मस्तिष्क और तेजस्विता की पहचान रहा नालंदा विश्वविद्यालय सालों बाद इतिहास की धूल झाड़कर एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है। दुनिया में भारत के ज्ञान-विज्ञान की चमक का प्रतीक नालंदा विश्वविद्यालय में 821 साल बाद आज एक बार फिर पढ़ाई शुरू हो गई। अभी यहां इतिहास और पार्यावरण विज्ञान पढ़ाया जाएगा, लेकिन भविष्य में यहां कुल सात विषयों में उच्च अध्ययन होगा। फिलहाल यहां 15 छात्रों को प्रवेश दिया गया है जबकि एक हजार छात्रों ने आवेदन किया था।
शुरुआत में यहां जापान और भूटान के एक-एक छात्रों सहित कुल 15 छात्रों को प्रवेश दिया गया है। अभी सिर्फ इतिहास और पर्यावरण विज्ञान पढ़ाया जाएगा। आगे चलकर सात विषयों में उच्च अध्ययन और शोध की व्यवस्था होगी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्राचीन विश्वविद्यालय से 12 किलोमीटर दूर राजगीर में हुई है।
विश्वविद्यालय के कुलपति गोपा सबरवाल ने बताया कि आज से यहां फिर से पढ़ाई शुरू हो गई है। यहां दो विषय पढ़ाया जाएगा और कोशिश है कि बाकी विषय भी जल्द ही शुरू किया जाय। डीन अंजना शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय किराये के मकान में शुरू किया गया है। भवन बन रहा है और जल्द ही तैयार हो जाएगा।
मालूम हो कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 413 ईस्वी में हुई थी और 780 साल तक यह बौद्ध धर्म, दर्शन, चिकित्सा, गणित, वास्तु, धातु और अतंरिक्ष विज्ञान के अध्ययन का विश्वप्रसिद्ध केंद्र रहा। 1193 में हमलावरों ने इस विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर दिया था। फिलहाल 11 शिक्षकों के साथ राजगीर कन्वेंशन सेंटर में पढ़ाई शुरू हुई है। यहां चुने गये छात्रों को लग रहा है कि वे इतिहास का हिस्सा बन रहे हैं।
जापानी छात्र ह्युमिन किन के मुताबिक हम लोगों का आज से क्लास शुरू हो गया। अच्छा लग रहा है। छात्रा
सबिता के मुताबिक अब धीरे-धीरे इसका विस्तार होगा। हम लोग बहुत खुश हैं।
वैसे, विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन 14 सितम्बर को होना है। नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2006 में इसकी कल्पना की थी ।साल 2010 में इसकी स्थापना के लिए संसद में कानून बना। राजगीर की पहाड़ियों की तलहटी में 455 एकड़ में विश्वविद्यालय का स्थायी परिसर बनना है।
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