सोमवार, 4 अगस्त 2014

मौत के लिए आरक्षित है यह स्थान

काशी शहर जिसकी जड़ें खुद इतिहास भी नहीं समेट सकता, जो परंपराओं से भी प्राचीन है। ज़ो महागाथाओं से भी परे है, जटाधारी बाबा शिव की इस नगरी काशी के एक बेहद भीड़भाड़ भरे इलाके में एक कोने में एक अनोखी इमारत है जिसके कमरे ‘‘मौत के लिए आरक्षित’’ हैं ।मौत के लिए आरक्षित है यह स्थान
इस दो मंजिला इमारत ‘‘काशी लाभ मुक्ति भवन’’ में ऐेसे बुजुर्ग डेरा डाले हुए हैं जो आध्यात्मिक मुक्ति की तलाश में अपनी जिंदगी के अंतिम दिन यहां बिताना चाहते हैं।
इस मंदिरनुमा इमारत के दस कमरों में से एक कमरे में 85 वर्षीय शांति देवी एक चादर में लिपटी लेटी हुई हैं । उनके कोने वाले कमरे में अगरबत्तियों की खुशबू महक रही है। यह कमरा इसी परिसर के भीतर एक छोटे से मंदिर के पास है जहां सुबह और शाम के समय चहल-पहल कुछ अधिक बढ़ जाती है ।

बिहार के नेवादा से यहां लाई गई देवी अपने कमरे की खिड़की के समीप लेटी अधिकतर समय मंत्रों का जाप करती रहती हैं । यहां हर मरीज के साथ एक पुजारी है । देवी का पुजारी भी नियमित रूप से उनका हालचाल जानने उनके पास आता रहता है ।

देवी के मुंह में दांत नहीं बचे हैं और वह मुश्किल से ही बोल पाती हैं । वह कहती हैं, ‘‘ हर घड़ी बीतने के साथ मैं बेचैन होती जाती हूं । मुझे मोक्ष हासिल करने में मदद की खातिर मेरे परिवार के लोग यहां हैं और मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहती। मुझे पता है कि काशी नगरी मुझे शांति से अपने अंदर समाहित कर लेगी।’’

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