महज़ 5 पैसे के भ्रष्टाचार का एक मामला को 4 दशक से खींच रहा है.
कुछ ऐसा ही एक मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है, जिसमें 41 साल पहले एक कंडक्टर ने गलती से एक महिला को 15 पैसे की बजाय 10 पैसे का टिकट दे दिया था.
टिकट चेकर ने कंडक्टर की इस लापरवाही को पकड़ लिया और उसे इस मामले में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. कंडक्टर ने अपनी नौकरी पाने के लिए अदालत का सहारा लिया.
श्रम अदालत व हाईकोर्ट एक बार इस कंडक्टर के पक्ष में फैसला दे चुकी हैं, परंतु डी.टी.सी. ने फिर से न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है, जिसके कारण मामला खींचता चला जा रहा है.
हालात ये हो चुके हैं कि अब अदालत चाहे तो भी इस कंडक्टर को नौकरी पर नहीं रखवा पाएगी क्योंकि उसकी वह रिटायरमेंट की उम्र को पार कर चुका है.
अब इस कंडक्टर ने कहा है कि कम से कम उसका मामला जब तक निपटे तब तक उसे पेंशन की सुविधा तो दे ही दी जाए. इसी मांग पर अपना जवाब दायर करते हुए डी.टी.सी. ने कहा है कि वह इस मामले के निपटने तक याचिकाकर्ता को नौकरी से जुड़ा कोई लाभ नहीं देंगे.
न ही उसे पेंशन दी जा सकती है क्योंकि जिस समय पेंशन की योजना शुरू की गई थी, उस समय वह नौकरी पर नहीं था. ऐसे में उसे पैंशन की सुविधा भी नहीं दी जा सकती है.
डी.टी.सी. के मायापुरी डिपो के रीजनल मैनेजर ने अपना यह जवाब अधिवक्ता सुमित पुष्करणा के जरिए न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अदालत में दायर किया है. न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई के लिए अब 12 अगस्त की तारीख तय की है.
क्या है ये पूरा मामला
यह मामला रणवीर सिंह यादव नामक डी.टी.सी. कंडक्टर से जुड़ा है. एक अगस्त 1973 को वह मायापुरी इलाके में चल रही एक बस पर तैनात था. इसी दौरान उसने एक महिला को 10 पैसे का टिकट दिया, जबकि दूरी के हिसाब से 15 पैसे का टिकट बनता था.
इसी दौरान बस में टिकट चैकर चढ़े और महिला का टिकट चैक किया तो यह गलती पकड़ी गई. पाया गया कि कंडक्टर की गलती से डी.टी.सी. को 5 पैसे का नुक्सान हुआ है, जिसके बाद यादव को निलंबित कर दिया गया.
विभागीय जांच के बाद यादव को 15 जुलाई 1976 को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. यादव ने इस फैसले को श्रम अदालत में चुनौती दी तो श्रम अदालत ने 6 जुलाई 1982 को उसके पक्ष में फैसला देते हुए उसे नौकरी पर रखने का आदेश दिया.
इस आदेश को डी.टी.सी. ने उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. 25 अप्रैल 2007 को न्यायालय ने डी.टी.सी. की याचिका को खारिज कर दिया. वर्ष 2008 में डी.टी.सी. ने दोबारा से पुनर्विचार याचिका दायर कर दी और यह मामला अभी तक विचाराधीन है.
अब यादव ने कहा था कि जब तक मामले का निपटारा नहीं हो जाता है, तब तक उसे पेंशन दी जाए.
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