परंपरागत जल स्रोतों को संवारना जरूरी
भारत डोगरा, सामाजिक कार्यकर्ता
Add caption |
खबर है कि नई सरकार बड़ी सिंचाई परियोजनाएं शुरू करने पर विचार कर रही है। कृषि के संकट को देखते हुए किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना शायद इस समय की जरूरत भी है। लेकिन इसी के साथ यह भी जरूरी है कि हम जल संरक्षण की अपनी पुरानी परंपरा को न भूलें। देश के विभिन्न भागों में वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने के अपने-अपने तरीके रहे हैं, जो स्थानीय स्थितियों की बेहतर समझ पर आधारित हैं। इन परंपरागत जल संग्रहण उपायों को ठीक से समझ न पाने के कारण कई बार गंभीर गलतियां हो गई हैं व सोचे-समझे बिना कई ऐसे अमूल्य जल-संरक्षण स्रोतों को नष्ट कर दिया गया, जिनकी रक्षा कर उन्हें सुधारना चाहिए था।
ऐसी कई गलतियों के बाद धीरे-धीरे यह समझ बनी कि परंपरागत जल स्रोतों को सुधारकर कम लागत में ही जल संग्रहण का अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 2005 में इस कार्य के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की योजना पहली बार आरंभ की गई थी, लेकिन इसका बजट पर्याप्त नहीं था। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में इस योजना के बजट को काफी बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपये तक किया गया। पहले ऐसे जल-स्रोतों की रक्षा के कार्य में मुख्य रूप से जरूरी मरम्मत करने और जल-स्रोतों से मिट्टी व मलबा निकालकर सफाई करने पर ध्यान दिया जाता था। अब इसमें दो और पक्ष जोड़े गए हैं। पहला, स्रोत के जल-ग्रहण क्षेत्र को भी ठीक किया जाए, ताकि जल-स्रोत में वर्षा का पानी ठीक से पहुंच सके। दूसरा, जल-स्रोत से जहां सिंचाई होती है, कमांड क्षेत्र में भी जरूरी सुधार किए जाएं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या अतिक्रमण की है। तालाबों व अन्य जल-स्रोतों पर अतिक्रमण बहुत ज्यादा है।
अतिक्रमण की समस्या इतनी बढ़ जाने के कारण इसे सुलझाना कठिन होता जा रहा है। इसके लिए प्रशासन, जन-प्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को आपस में सहयोग कर जनता के बीच परंपरागत जल स्रोतों के महत्व को बताना चाहिए। जहां गरीब लोग मजबूरी में जल स्रोतों की भूमि पर रह रहे हैं, वहां उन्हें वैकल्पिक स्थान दिया जाना चाहिए। पर जहां शक्तिशाली असरदार लोगों ने जोर-जबर्दस्ती अतिक्रमण किया है, वहां सख्त कार्रवाई जरूरी हो सकती है। कुछ तालाब ऐसे हैं, जो कभी सिंचाई का बहुत बड़ा स्रोत रहे हैं, पर अब उनका उपयोग नहीं के बराबर है। देश भर में इसके बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे। ऐसी स्थितियों की मौके पर जांच कर फिर सिंचाई उपलब्ध करवानी चाहिए। केवल अतिक्रमण हटाने के लिए नहीं, अपितु सभी स्तरों पर इन जल-स्रोतों को नवजीवन देने का कार्य स्थानीय लोगों के सहयोग से होना चाहिए। इन जल-स्रोतों के बारे में स्थानीय लोगों, विशेषकर बुजुर्ग लोगों की समझ का बेहतर उपयोग होना चाहिए। इन जल-स्रोतों से उपलब होने वाली सिंचाई के जल का वितरण न्याय और समता के आधार पर होना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें