जयपुर। भैरव या स्थानीय भाषा में भैंरू नाम से जाने जाने वाले इस भैरवनाथ की उपासना से धन की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इनकी उपासना का फल भी शीघ्र मिलता है।
यह भैरव हैं स्वर्णाकर्षण भैरव। भैरव का यह सात्विक रूप मुख्य रूप से उपासक को धन-धान्य का आशीर्वाद देता है।
धार्मिक पुस्तकों में मिले वर्णन के अनुसार स्वर्णाकर्षण भैरव पाताल में निवास करते हैं। इनकी उपासना का समय रात्रि 12 बजे से 3 बजे तक है। उपासकों का कहना है कि इनकी उपस्थिति का अनुमान गंध के माध्यम से किया जाता है। इसी कारण श्वान को इनकी सवारी बताया गया है जो गंध सूंघने में माहिर होता है।
मान्यता यह भी है कि काल भैरव के 40 दिनों तक दर्शन करने से हर मानोकामना पूर्ण होती है। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12 राशियों को जोड़कर बने इन दिनों को चालीसा कहते हैं। आम तौर पर भैरव का विशेष दिन रविवार माना गया है। इसी दिन भैरव नाथ को प्रसन्न करना और विशेष पूजा करने का विधान है।
शिवजी के प्रिय हैं भैरवनाथ
भैरवजी भगवान शिव के अतिप्रिय और विश्वासपात्र हैं। कुछ विद्वान उन्हें प्रकारांतर से शिव का अवतार मानते हैं। प्रचलित मान्यता के अनुसार भैरव जी शिव जी के सर्वप्रधान गण हैं। शिव दरबार के अध्यक्ष अथवा मुख्य सचिव। उन्हें शिवजी के गणों में सर्वोच्च अधिकारी माना जाता है। प्रत्येक शिव मंदिर की अदृश्य रूप में देखभाल श्री भैरवजी ही करते हैं। जहां भी शिवमंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरव जी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। जहां नहीं की जाती, वहां मानसिक रूप से उनकी उपस्थिति की कल्पना करके उनकी पूजा की जाती है। शिवजी के गणों में वीरभद्र का भी नाम प्रसिद्ध है, किन्तु वह केवल अनुचर हैं, जबकि भैरवजी स्वयं समर्थ और देवतुल्य अधिकार सम्पन्न हैं।
-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें