जैसलमेर। पाकिस्तान सीमा से सटा खूबसूरत जिला जैसलमेर अतिक्रमणो के आगोश मे आकर सिकुड़ता जा रहा है। प्रशासन मौन है, भू-माफिया सक्रिय हैं और राजनीतिक संरक्षण हावी है। बेशकीमती जमीन पर गिद्धदृष्टि बनाए अतिक्रमियो की नापाक हरकतें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं, लेकिन इन्हे रोकने का साहस अभी तक प्रशासनिक तंत्र नहीं जुटा पाया है। समय-समय पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है। यही कारण है कि नियम व कायदो को ताक पर रखकर अतिक्रमण व अवैध कब्जो के लिए जैसलमेर पसंदीदा स्थली बनती जा रही है।
कड़वा सच यह है कि चाहे कोई भी सरकार हो या कैसा भी बोर्ड हो, कोई कड़ा कदम उठाने को तैयार नहीं है। नेता, भू-माफिया और अधिकारी की मौजा ही मौजा है, लेकिन गरीब तबके का वह व्यक्ति सबसे ज्यादा परेशान है, जिसे रहने के लिए छोटा सा भूखंड भी नहीं मिल पा रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जैसलमेर मे आए दिन अवैध कब्जो व अतिक्रमणो के मामले सामने आ रहे हैं और कई बार झगड़े तक की नौबत आ रही है, लेकिन निराशाजनक यह है कि सब कुछ जानते हुए भी जिले के अधिकारी, नगरपरिषद व जनप्रतिनिधि आंखे मूंदे हुए हैं।
इसी का यह नतीजा है कि करोड़ों की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जों का सिलसिला सतत रूप से चलता ही जा रहा है। शहर की जमीन पर भू-माफियो व अतिक्रमियो की काली नजर से आम आदमी मायूस है। ये अतिक्रमण व अवैध कब्जे ही हंै, जिनके कारण जैसलमेर की विश्वस्तरीय ख्याति प्राप्त सुंदरता प्रभावित हो रही है। रसूखदार व प्रभावी अतिक्रमियों के अवैध कब्जों को हटाने के लिए अभी तक प्रशासनिक तंत्र ने साहस नहीं दिखाया है। केवल कागजों में चेतावनी देने की कार्यवाही हो रही है। जहां देखो वहां अतिक्रमणों की बाढ़ आई हुई है। अतिक्रमणों में नगरपरिषद के कुछ लोगो के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
कच्ची बस्तियो मे आलीशान इमारते
कच्ची बस्ती का नाम लेते ही झुग्गी झोपड़ी, कच्चे मकान, समूह मे खेलते अधनंगे बच्चे, एक छोटे से आशियाने मे समूह मे रहते लोग व आधारभूत सुविधाओ का टोटा.. कुछ ऎसी ही तस्वीर दिमाग मे बनती है। ऎसे मे यदि जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे जाकर देखें तो ऑलीशान इमारतो को देखने के बाद यह समझा जा सकता है कि माजरा आखिर क्या है? जैसलमेर की कच्ची बस्तियों में गिनती के ही कच्चे मकान हैं। गरीबों को दिए गए 900 रूपयों के भूखण्डो पर आलीशान इमारतें, दुकानें व होटल बन गए हैं।
न तो कोई इन्हे रोकने वाला है और न ही नगर परिषद कोई एतराज कर रही है। गफूर भट्टा व बबर मगरा कच्ची बस्तियो को वर्ष 2002 मे समाप्त कर उन्हे क्रमश: शास्त्री व नेहरू कॉलोनी के रूप मे मान्यता दी गई थी। 15 अगस्त 1998 तक के काबिज लोगो को 20 गुणा 45 के भूखंड आवंटित किए गए थे। इन दो कॉलोनियो की नगर नियोजक की ओर से निर्मित नक्शो के आधार पर बसावट की गई थी, लेकिन उसके बाद वर्ष 2004 मे इसी कॉलोनी मे नए सर्वे कराए गए । इसी दुबारा सर्वे के कारण अतिक्रमण बढे और लोगो को गलत-सलत करने का मौका मिला।
बढ़ने लगीं कच्ची बस्तियां
जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे मकान के लिए अनुदान देने संबंधी योजनाओ के बाद तो इन बस्तियो मे अवैध कब्जो का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पहले जहां शहर मे छह कच्ची बस्तियां थीं, वहीं इनकी संख्या वर्तमान मे बढ़कर 13 तक पहुंच गई है। एक सर्वे मे नाम जुड़ने के बाद कुछ लोगो ने और कब्जा कर लिया और अगले सर्वे मे नाम जुड़ाने की कवायद शुरू कर दी। ऎसे मे यह समस्या दिन-ब-दिन लाइलाज बीमारी के रूप मे सामने आ रही है।
यहां भी हिमाकत
भू-माफियो की गोचर, ओरण, पड़त भूमि व वन विभाग के क्षेत्र पर काली नजरें गड़ चुकी हैं। गांव में मवेशी चराने वाले ग्वालो के साथ भू-माफिया आए दिन मारपीट करते रहते हंैं।
भू-माफियो की ओर से कहीं भी खाली जमीन, गोचर ओरण या फिर पड़त भूमि दिखते ही वहां अवैध काश्त कर फसल बुवाई कार्य शुरू कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग व राज्य राजमार्गो पर बसे गांवों में बड़ी संख्या में अतिक्रमण हो रहे हंै तथा अतिक्रमी बेखौफ होकर यहां दुकान व मकान निर्माण करवा रहे हैं। यही नहीं दिनोंदिन बढ रहे भू-माफिया जगह-जगह सरकारी जमीनों पर अवैध निर्माण करवाकर उन्हें बेचने का गोरखधंधा कर रहे हैं।
भूमाफियों ने अतिक्रमण कर जमीनों को बेचने का व्यवसाय बना रखा हैं, इस गोरखधंधे में इन भूमाफियों ने लाखों रूपए के वारे न्यारे कर दिए। बरसाती नदियों के साथ चारों तरफ हुए अतिक्रमणो के कारण कई बार बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं।
खाली पड़ी ओरण भूमि पर एक के बाद एक अतिRमण इसलिए हो गए, क्योंकि अतिक्रमण के दौरान स्थानीय प्रशासन ने कभी भी कड़ी कार्रवाई नहीं की।
करोड़ों रूपए की सैकड़ों बीघा जमीन पर भू-माफियाओं की ओर से अवैध निर्माण करवाकर, पत्थर डालकर तथा राजस्व, ओरण, गोचर आदि भूमि पर अवैध काश्त कर अतिक्रमण किया जा रहा है। -
कड़वा सच यह है कि चाहे कोई भी सरकार हो या कैसा भी बोर्ड हो, कोई कड़ा कदम उठाने को तैयार नहीं है। नेता, भू-माफिया और अधिकारी की मौजा ही मौजा है, लेकिन गरीब तबके का वह व्यक्ति सबसे ज्यादा परेशान है, जिसे रहने के लिए छोटा सा भूखंड भी नहीं मिल पा रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जैसलमेर मे आए दिन अवैध कब्जो व अतिक्रमणो के मामले सामने आ रहे हैं और कई बार झगड़े तक की नौबत आ रही है, लेकिन निराशाजनक यह है कि सब कुछ जानते हुए भी जिले के अधिकारी, नगरपरिषद व जनप्रतिनिधि आंखे मूंदे हुए हैं।
इसी का यह नतीजा है कि करोड़ों की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जों का सिलसिला सतत रूप से चलता ही जा रहा है। शहर की जमीन पर भू-माफियो व अतिक्रमियो की काली नजर से आम आदमी मायूस है। ये अतिक्रमण व अवैध कब्जे ही हंै, जिनके कारण जैसलमेर की विश्वस्तरीय ख्याति प्राप्त सुंदरता प्रभावित हो रही है। रसूखदार व प्रभावी अतिक्रमियों के अवैध कब्जों को हटाने के लिए अभी तक प्रशासनिक तंत्र ने साहस नहीं दिखाया है। केवल कागजों में चेतावनी देने की कार्यवाही हो रही है। जहां देखो वहां अतिक्रमणों की बाढ़ आई हुई है। अतिक्रमणों में नगरपरिषद के कुछ लोगो के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
कच्ची बस्तियो मे आलीशान इमारते
कच्ची बस्ती का नाम लेते ही झुग्गी झोपड़ी, कच्चे मकान, समूह मे खेलते अधनंगे बच्चे, एक छोटे से आशियाने मे समूह मे रहते लोग व आधारभूत सुविधाओ का टोटा.. कुछ ऎसी ही तस्वीर दिमाग मे बनती है। ऎसे मे यदि जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे जाकर देखें तो ऑलीशान इमारतो को देखने के बाद यह समझा जा सकता है कि माजरा आखिर क्या है? जैसलमेर की कच्ची बस्तियों में गिनती के ही कच्चे मकान हैं। गरीबों को दिए गए 900 रूपयों के भूखण्डो पर आलीशान इमारतें, दुकानें व होटल बन गए हैं।
न तो कोई इन्हे रोकने वाला है और न ही नगर परिषद कोई एतराज कर रही है। गफूर भट्टा व बबर मगरा कच्ची बस्तियो को वर्ष 2002 मे समाप्त कर उन्हे क्रमश: शास्त्री व नेहरू कॉलोनी के रूप मे मान्यता दी गई थी। 15 अगस्त 1998 तक के काबिज लोगो को 20 गुणा 45 के भूखंड आवंटित किए गए थे। इन दो कॉलोनियो की नगर नियोजक की ओर से निर्मित नक्शो के आधार पर बसावट की गई थी, लेकिन उसके बाद वर्ष 2004 मे इसी कॉलोनी मे नए सर्वे कराए गए । इसी दुबारा सर्वे के कारण अतिक्रमण बढे और लोगो को गलत-सलत करने का मौका मिला।
बढ़ने लगीं कच्ची बस्तियां
जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे मकान के लिए अनुदान देने संबंधी योजनाओ के बाद तो इन बस्तियो मे अवैध कब्जो का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पहले जहां शहर मे छह कच्ची बस्तियां थीं, वहीं इनकी संख्या वर्तमान मे बढ़कर 13 तक पहुंच गई है। एक सर्वे मे नाम जुड़ने के बाद कुछ लोगो ने और कब्जा कर लिया और अगले सर्वे मे नाम जुड़ाने की कवायद शुरू कर दी। ऎसे मे यह समस्या दिन-ब-दिन लाइलाज बीमारी के रूप मे सामने आ रही है।
यहां भी हिमाकत
भू-माफियो की गोचर, ओरण, पड़त भूमि व वन विभाग के क्षेत्र पर काली नजरें गड़ चुकी हैं। गांव में मवेशी चराने वाले ग्वालो के साथ भू-माफिया आए दिन मारपीट करते रहते हंैं।
भू-माफियो की ओर से कहीं भी खाली जमीन, गोचर ओरण या फिर पड़त भूमि दिखते ही वहां अवैध काश्त कर फसल बुवाई कार्य शुरू कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग व राज्य राजमार्गो पर बसे गांवों में बड़ी संख्या में अतिक्रमण हो रहे हंै तथा अतिक्रमी बेखौफ होकर यहां दुकान व मकान निर्माण करवा रहे हैं। यही नहीं दिनोंदिन बढ रहे भू-माफिया जगह-जगह सरकारी जमीनों पर अवैध निर्माण करवाकर उन्हें बेचने का गोरखधंधा कर रहे हैं।
भूमाफियों ने अतिक्रमण कर जमीनों को बेचने का व्यवसाय बना रखा हैं, इस गोरखधंधे में इन भूमाफियों ने लाखों रूपए के वारे न्यारे कर दिए। बरसाती नदियों के साथ चारों तरफ हुए अतिक्रमणो के कारण कई बार बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं।
खाली पड़ी ओरण भूमि पर एक के बाद एक अतिRमण इसलिए हो गए, क्योंकि अतिक्रमण के दौरान स्थानीय प्रशासन ने कभी भी कड़ी कार्रवाई नहीं की।
करोड़ों रूपए की सैकड़ों बीघा जमीन पर भू-माफियाओं की ओर से अवैध निर्माण करवाकर, पत्थर डालकर तथा राजस्व, ओरण, गोचर आदि भूमि पर अवैध काश्त कर अतिक्रमण किया जा रहा है। -
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