पटना। बिहार की राजनीति में चौंकाने वाले घटनाक्रम के तहत एक दूसरे के धुर विरोधी रहे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक हो गए हैं। लालू यादव ने जीतन कुमार मांझी के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड की सरकार को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की है।
लालू यादव ने कहा,साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता और बिहार से दूर रखने के लिए जदयू को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की है। बिहार के नए मुख्यमंत्री अति पिछड़ी जाति से हैं इसलिए हमें वह मंजूर है। बिहार विधानसभा में जब मांझी विश्वास मत हासिल करेंगे तब लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के विधायक पक्ष में मतदान करेंगे।
उधर भाजपा का कहना है कि नरेन्द्र मोदी की लहर को रोकने के लिए जदयू ने राजद से हाथ मिलाया है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने पहले ही जदयू सरकार को समर्थन देने की घोषणा कर दी थी। 243 सदस्यीय विधानसभा में जदयू के 117 विधायक हैं। भाजपा के 88 और राजद के 21 विधायक हैं। भाजपा के दो, राजद के तीन विधायकों के इस्तीफे और एक सीट खाली होने के कारण विधानसभा की प्रभावी स्ट्रेंथ 237 रह गई है।
पिछले हफ्ते नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा ले लिया था। जदयू को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 2 सीटें मिली थी। 2009 में जदयू को 20 सीटें मिली थी। राष्ट्रीय जनता दल ने जदयू से अच्छा प्रदर्शन करते हुए चार सीटें जीती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद को चार सीटें ही मिली थी। लालू यादव को भरोसा था कि मुस्लिम और यादव वोट बैंक के कारण उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेगी लेकिन उनका एम-वाई समीकरण काम नहीं कर पाया। भाजपा गठबंधन ने बिहार में 31 लोकसभा सीटें जीती। कांग्रेस के खाते में दो और एनसीपी के हाथ में सिर्फ एक सीट आई।
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