गुरुवार, 13 मार्च 2014

यहां होते है बिना दुल्हन के फेरे!



सियाणा (जालोर)। बदलते दौर में होली के रंगों से लोगों का मोह भंग जरूर हो रहा है, लेकिन मारवाड़ में कई परम्पराएं आज भी संस्कृति का जीवंत परिचय देती नजर आती हैं। एक परम्परा ऎसी है, जिसमें बच्चे को दूल्हा बनाया जाता है। पाठ रस्म के मारवाड़ी गीत गाए जाते हैं।

होली के पांच दिनों पूर्व ही शुरू होने वाली इस रस्म में बच्चे के लिए "सोनारो बाजोटियो हीरे पन्ने जडियो...", "आइए-आइए लग्न परणावु थाने.." समेत विवाह गीत तरंगीत करती है। ठिठोलियों के बीच गीतो के पूरे होने पर गीत गाने वाली महिलाओं को गुड़ बांटा जाता है।

बच्चे के लिए ननिहाल से नानी व मामी कपड़े व आभूषण, गुड़ व माता के लिए कपडे लाती है। गांव के मित्र व अन्य भी बच्चे की ढूंढ़ पर कपडे व गुड़ लाते हैं। ढोल-थाली के थाप के बीच होली के दूसरे दिन नवजात के घर गैरिए आकर होली फाग के डॉयलॉग के साथ बच्चे को दूल्हा बनाकर पाठ बिठाकर ढूंढ़ने की रस्म अदा करते हैं।

निकलती है बारात
ढूंढ़ महोत्सव की शाम को नवजात दूल्हे की एक बारात सी निकलती है। इसमें परिजन व अन्य पड़ोसी गीत-गाते होलिका दहन पहुंचते हैं। वहां पर बिन दुल्हन नवजात को फेरे दिए जाते हैं।

शाम के समय होलिका दहन स्थल पर नवजात व महिलाओं की भीड़ नजर आती है। नवजात के फेरे के बाद होलिका दहन भस्म का सिर पर टीका लगाया जाता है। उस समय गलियों में फाग गीत की धूम सी लगती है।

दुबारा निकलती है बारात
मान्यता है, कि जिस युवक की शादी हो जाती है, उसको शादी के बाद पहली होली पर फिर से दूल्हा बनना पड़ता है। वैसे यह परम्परा लुप्त होने के कागार पर है। फिर भी ग्रामीण क्षेत्र में कुछ दूल्हे होलिका दहन स्थल पर आते हैं। बिन दुल्हन निकली यह बारात होलिका दहन आकर रूकती है।

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