जयपुर। दफ्तर में साथियों के तानों के कारण नेत्रहीन कनिष्ठ लिपिक (एलडीसी) से जज बन गया। राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती में चयनित भीलवाड़ा निवासी ब्रह्मनन्द शर्मा की नियुक्ति तीन माह से अटकी हुई थी, लेकिन पिछले सप्ताह हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ने राज्य के पहले इस नेत्रहीन जज की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है।
पूर्णपीठ के फैसले से बेखबर शर्मा नियुक्ति के लिए चक्कर काट रहे हैं, राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती की मेरिट में जगह पाने के बावजूद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ की सहमति नहीं मिल पाने से नियुक्ति अटकी हुई थी। पूर्णपीठ ने 20 नवम्बर को आरजेएस में चयनित 114 में से 112 अभ्यर्थियों को तो नियुक्ति की अनुमति दे दी थी, लेकिन शर्मा की नियुक्ति नेत्रहीनता के कारण अटक गई थी।
नहीं मानी हार
शर्मा ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि उनका परिवार ग्रामीण परिवेश में रहता है और उनके परिवार में न तो कोई जज है और न ही वकील है, पिताजी सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। लोगों की सोच बदलने और उन जैसे लोगों को न्याय दिलाने के लिए जज बनने का सपना देखा था, जो पूरा हो रहा है।
जज बनने का ख्याल मन में कैसे आया?
- भीलवाड़ा में सार्वजनिक निर्माण विभाग के दफ्तर में 1996 से एलडीसी हूं। दफ्तर में सभी के हीनता की भावना से देखते थे, इसी कारण ऊंचा पद हासिल करने की ठानी।
क्या पहली बार में ही चयन हो गया?
- पहली बार 2008 में आरजेएस के लिए आवेदन किया, सफलता नहीं मिलने पर 2011 की भर्ती में फिर शामिल हुआ और इस बार सफल हो गया।
जज बनने पर चुनौतियों का कैसे सामने करेंगे?
- जज बनने पर चुनौती तो सामने होंगी, लेकिन कोर्ट में बैठने का मौका मिलते ही उदाहरण बनने की ठान रखी है।
पूर्णपीठ के फैसले से बेखबर शर्मा नियुक्ति के लिए चक्कर काट रहे हैं, राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती की मेरिट में जगह पाने के बावजूद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ की सहमति नहीं मिल पाने से नियुक्ति अटकी हुई थी। पूर्णपीठ ने 20 नवम्बर को आरजेएस में चयनित 114 में से 112 अभ्यर्थियों को तो नियुक्ति की अनुमति दे दी थी, लेकिन शर्मा की नियुक्ति नेत्रहीनता के कारण अटक गई थी।
नहीं मानी हार
शर्मा ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि उनका परिवार ग्रामीण परिवेश में रहता है और उनके परिवार में न तो कोई जज है और न ही वकील है, पिताजी सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। लोगों की सोच बदलने और उन जैसे लोगों को न्याय दिलाने के लिए जज बनने का सपना देखा था, जो पूरा हो रहा है।
जज बनने का ख्याल मन में कैसे आया?
- भीलवाड़ा में सार्वजनिक निर्माण विभाग के दफ्तर में 1996 से एलडीसी हूं। दफ्तर में सभी के हीनता की भावना से देखते थे, इसी कारण ऊंचा पद हासिल करने की ठानी।
क्या पहली बार में ही चयन हो गया?
- पहली बार 2008 में आरजेएस के लिए आवेदन किया, सफलता नहीं मिलने पर 2011 की भर्ती में फिर शामिल हुआ और इस बार सफल हो गया।
जज बनने पर चुनौतियों का कैसे सामने करेंगे?
- जज बनने पर चुनौती तो सामने होंगी, लेकिन कोर्ट में बैठने का मौका मिलते ही उदाहरण बनने की ठान रखी है।
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