सोमवार, 16 दिसंबर 2013

दिलों ने तोड़ी सरहदें, बांधी रिश्तों की डोर!

जोधपुर।"दिल से लेकर बंट गए दर तक, गनीमत रही कि दरवाजा एक था" किसी शायर का ये शेर भारत-पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति पर भी बयां होता है। विभाजन के बाद भले ही मुल्क दो हो गए हों, लेकिन दिलों के दरवाजे अभी भी खुले हैं। दोनों मुल्कों के बीच शादी-ब्याह होना इस बात का पुख्ता सुबूत है कि सरहदें भले ही खिंच गई हों लेकिन दिल के दरवाजे से अभी आना-जाना लाजिमी है। बावस्ता इसी दरवाजे भारत की दो बेटियां पाकिस्तान की बहू बनने जा रही हैं।
बारात में ये पहुंचे

थार एक्सप्रेस में पाकिस्तान के कराची निवासी लियाकत आबाद के बेटे जुनैद अजीज (दूल्हा) और राहिल अजीज (दूल्हा), मां, बहन और दोस्तों के साथ आठ लोग रविवार को भगत की कोठी स्टेशन पहुंचे। इनका निकाह 17 दिसम्बर को रात 9 बजे बूंदी के ब्राह्मणों की हथाई निवासी जमील अहमद की पुत्री वजिया खान और शमशुद्दीन की बेटी हुमा खान के साथ निकाह होगा।



रिश्तों को कायम रखने के लिए चौथी शादी

दुल्हनों के सुर्ख चेहरे विवाह की खुशी जहां बयां कर रहे हैं, वहीं दूल्हों को भी अहसास है कि यह केवल दिलों का ही मेल नहीं, दो देशों और दो संस्कृतियों का समायोजन है। रविवार को पाकिस्तान से थार एक्सप्रेस में दूल्हा, उनके परिजन समेत आठ लोग भगत की कोठी पहुंचे। दूल्हों की मां कमर अख्तर और कोटा निवासी मामा अब्दुल हकीम जैदी ने बताया कि 66 साल पहले परिवार दो भागों में (बंूदी व कराची) बंट गया, लेकिन रिश्तों को कायम रखने के लिए यह चौथी शादी है। जैदी ने बताया कि वर्ष 2004 व 2008 में कराची से बारात बूंदी आई थी और वर्ष 2007 में कोटा से बारात कराची गई थी।

करगिल की खरोंच का जख्म

वष्ाü 1999 में कराची से बूंदी बारात आनी थी, लेकिन करगिल युद्ध की वजह से निकाह टल गया। जैदी ने बताया कि निकाह की पूरी तैयारियां हो गई थीं, कार्ड भी तैयार हो गए थे लेकिन युद्ध के कारण निकाह टालना पड़ा। आखिर वह निकाह वर्ष 2004 में संभव हो पाया।

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