जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बागियों से भरा पडा है। तकरीबन हर चुनाव में पार्टियों के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ बगावत की परंपरा रही है। देश आजाद होने के बाद कुछ वर्षो तक यहां की राजनीति पर राज परिवार का भी अच्छा असर रहा ,लेकिन समय के साथ जिले की राजनीति में राज परिवार की दखल कम होता चला गया।
निर्वाचन विभाग के अनुसार हुकुम सिहं पहली बार 1957 और दूसरी बार 1962 में विधानसभा चुनाव जीते थे। दो चुनाव को छोडकर पचास साल से राज परिवार के प्रत्याशी को फिर से जीतने का मौका नहीं मिला। इसका कारण यह बताया जाता है कि राजनीतिक पार्टियों ने जनता की पसंद के उम्मीदवार खडे नहीं किए। चुनाव से
पहले बागी प्रत्याशियों के लिए जैसलमेर चर्चित रहा है।
जैसलमेर में वर्ष 1985 से बागी प्रत्याशी का चलन शुरू हुआ ,जब कांग्रेस ने भोपाल सिहं को उम्मीदवार बनाया था। मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी मुल्तानाराम
बारूपाल को जितवा दिया। वर्ष 1990 में जनसंघ के नेताओं ने भाजपा और जनता दल के तालमेल का विरोध किया और उनके संयुक्त प्रत्याशी डां जितेन्द्र सिहं के खिलाफ जगत सिहं को खडाकर दिया। इस चुनाव में कांग्रेस ने गोवर्धन कल्ला को प्रत्याशी बनाया था ,जो इस बहुकोणीय मुकाबले में मामूली अंतर से चुनाव जीत गए। इसके अगले चुनाव में भी डां जितेन्द्र सिंह चुनाव नहीं जीत सकें।
डां सिहं भाजपा-जनता दल छोडकर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया ,लेकिन उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ मुस्लिम नेता फतेह मोहम्मद भी चुनाव में खडे हो गए और नतीजा यह हुआ कि भाजपा प्रत्याशी गुलाबसिहं रावलोत भारी बहुमत से चुनाव जीत गए। वर्ष 1998 में जैसलमेर की राजनीति ने करवट ली। भाजपा ने डां जितेन्द्र सिहं को उम्मीदवार बनाया जिसका स्थानीय नेता संागसिहं भाटी ने विरोध किया। उनकी बगावत के कारण डां सिहं तीसरे नंबर पर पहुंच गए और कांग्रेस के गोवर्धन कल्ला ने जैसलमेर सीट जीत ली।
वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गोवर्धन कल्ला को टिकट देने से इंकार कर दिया और जनक सिहं को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस के फैसले का स्थानीय स्तर पर विरोध हुआ और मेघवाल समाज के नेता डां रामजीराम निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में आ गए। डां रामजीराम के चुनाव मैदान में आने से कांग्रेस की संभावनाओं को खत्म कर दिया ओर भाजपा के सांगसिहं भाटी चुनाव जीत गए। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में स्थानीय स्तर पर असंतोष था। कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने से गोवर्धन कल्ला नाराज थे और भाजपा का टिकट नही मिलने से किशनसिहं भाटी नाराज थे। दोनों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडा और दोनों ही पराजित हुए ,लेकिन इससे भाजपा के छोटूसिहं भाटी को जीतने का मौका मिल गया।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रतियाशी सुनीता भाटी को पार्टी की गुटबंदी के कारण चुनाव हारना पडा था और गोवर्धन कल्ला बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतर गए थे। इस विधानसभा चुनाव में जैसलमेर जिले के दोनों विधानसभा जैसलमेर व पोकरण से कांग्रेस व भाजपा ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं पर जैसलमेर विधानसभा से बागियों की परम्परा कायम रखते हुए भाजपा के पूर्व विधायक सांगसिहं ने टिकट ना मिलने पर बगावती तेवर अपनाते हुए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है।
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