यह पराक्रम के प्रतीक ग्रह यानी मंगल पर विजय का अभियान है। चंद्रयान के बाद अब मंगलयान की बारी है। मंगल ग्रह को करीब से जानने की यह कोशिश अगर कामयाब होती है तो भारत अंतरिक्ष के मामले में एक बड़ी ताकत बनकर उभरेगा। जाहिर है, इस प्रॉजेक्ट से भारत की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं। भारत इस अभियान को अपने दम पर अंजाम तक पहुंचाने की ख्वाहिश रखता है और पूरी दुनिया की नजरें इस पर लगी हुई हैं।
आज है ऐतिहासिक दिन
मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को छोडे़ जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने अब आज यानी 5 नवंबर को इसे दिन में 2 बजकर 36 मिनट पर छोड़ने का फैसला किया है। इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया गया है। भारत के इस मिशन के लिए सरकार ने इसरो को 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था। भारत की जनता के साथ ही देश के स्पेस साइंटिस्ट्स इस अभियान को लेकर खासे उत्साहित हैं।
कैसे शुरू होगा सफर
मंगलयान को इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा जाएगा। इस वीइकल की लागत 110 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा है और इसका वजन 1350 किलो है। इसरो का कहना है कि पीएसएलवी मंगलयान को छोड़ने के लिए उपयुक्त है। कई देश अपने सैटलाइट छोड़ने के लिए इसका प्रयोग कर रहे हैं। वैसे, गौरतलब है कि अमेरिका और रूस ने अपने मंगल अभियान के लिए इससे बड़े रॉकेटों का प्रयोग किया था।
कैसा होगा सफर
मंगलयान को छोड़े जाने के बाद यह पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में भ्रमण करता रहेगा। सितंबर 2014 में यह मंगल की कक्षा के पास पहुंचेगा। मंगल ग्रह की कक्षा 327 गुणा 80,000 किलोमीटर की है। पृथ्वी की कक्षा को पार करने के लिए मंगलयान की गति 11 किलोमीटर प्रति सेकंड रखी जाएगी। मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के लिए इस गति को कम किया जाएगा।
क्या है मकसद
मंगलयान को सफलतापूर्वक छोड़कर भारत अंतरिक्ष के मामले में अपनी टेक्नॉलजी का लोहा मनवाना चाहता है। इसके साथ ही वह अपनी वैज्ञानिक उत्सुकता को भी शांत करना चाहता है। मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता है। वह यह भी पता लगाना चाहता है कि इस लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं। मीथेन गैस की मौजूदगी जैविक गतिविधियों का संकेत देती है। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया है। इसमें कई पावरफुल कैमरे भी शामिल हैं। इसरो का कहना है कि मंगलयान पर इससे ज्यादा वजन के उपकरण फिट करना संभव नहीं था, क्योंकि इससे इसे छोड़ने के लिए पीएसएलवी की बजाय ज्यादा पावरफुल रॉकेट की जरूरत होती और इससे इस मिशन पर होने वाला खर्च काफी ज्यादा बढ़ जाता। मंगल पर मीथेन की मौजूदगी का पता लगाने के लिए मंगलयान पर सेंसर भी लगे होंगे। ये सेंसर काफी संवेदनशील हैं और मीथेन की मात्रा कम होने पर पर भी उसका पता लगा सकते हैं।
खर्च कितना
इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब छह करोड़ 90 लाख डॉलर) है। अमेरिका भी मंगल अभियान पर अपना एक और स्पेसक्राफ्ट (मैवेन) भेजने की तैयारी कर रहा है और इस पर करीब 48 करोड़ 50 लाख डॉलर का खर्चा आएगा। मंगलयान और मैवेन अगले साल सितंबर में ही मंगल की कक्षा में पहुंचेंगे। इसरो के सैकड़ों कर्मचारी और वैज्ञानिक भारत के मंगल मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं।
चुनौतियां भी
अगर मंगलयान को किन्हीं कारणों से इस 19 नवंबर तक नहीं छोड़ा जा सका तो मंगल और पृथ्वी के रोटेशन से जुड़ी़ तकनीकी वजहों के कारण इसको फिर 5 साल बाद ही छोड़ा जा सकेगा। इसके साथ ही इसे रेडिएशन और कम तापमान से बचाने और मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए रॉकेट के इंजन को दोबारा चालू करने की चुनौती भी इसरो के वैज्ञानिकों के सामने है। इसके कारण मंगल को जानने के लिए छोड़े गए कई सैटलाइट्स बर्बाद हो गए हैं।
अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं। भारत इस अभियान को अपने दम पर अंजाम तक पहुंचाने की ख्वाहिश रखता है और पूरी दुनिया की नजरें इस पर लगी हुई हैं।
आज है ऐतिहासिक दिन
मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को छोडे़ जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने अब आज यानी 5 नवंबर को इसे दिन में 2 बजकर 36 मिनट पर छोड़ने का फैसला किया है। इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया गया है। भारत के इस मिशन के लिए सरकार ने इसरो को 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था। भारत की जनता के साथ ही देश के स्पेस साइंटिस्ट्स इस अभियान को लेकर खासे उत्साहित हैं।
कैसे शुरू होगा सफर
मंगलयान को इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा जाएगा। इस वीइकल की लागत 110 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा है और इसका वजन 1350 किलो है। इसरो का कहना है कि पीएसएलवी मंगलयान को छोड़ने के लिए उपयुक्त है। कई देश अपने सैटलाइट छोड़ने के लिए इसका प्रयोग कर रहे हैं। वैसे, गौरतलब है कि अमेरिका और रूस ने अपने मंगल अभियान के लिए इससे बड़े रॉकेटों का प्रयोग किया था।
कैसा होगा सफर
मंगलयान को छोड़े जाने के बाद यह पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में भ्रमण करता रहेगा। सितंबर 2014 में यह मंगल की कक्षा के पास पहुंचेगा। मंगल ग्रह की कक्षा 327 गुणा 80,000 किलोमीटर की है। पृथ्वी की कक्षा को पार करने के लिए मंगलयान की गति 11 किलोमीटर प्रति सेकंड रखी जाएगी। मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के लिए इस गति को कम किया जाएगा।
क्या है मकसद
मंगलयान को सफलतापूर्वक छोड़कर भारत अंतरिक्ष के मामले में अपनी टेक्नॉलजी का लोहा मनवाना चाहता है। इसके साथ ही वह अपनी वैज्ञानिक उत्सुकता को भी शांत करना चाहता है। मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता है। वह यह भी पता लगाना चाहता है कि इस लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं। मीथेन गैस की मौजूदगी जैविक गतिविधियों का संकेत देती है। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया है। इसमें कई पावरफुल कैमरे भी शामिल हैं। इसरो का कहना है कि मंगलयान पर इससे ज्यादा वजन के उपकरण फिट करना संभव नहीं था, क्योंकि इससे इसे छोड़ने के लिए पीएसएलवी की बजाय ज्यादा पावरफुल रॉकेट की जरूरत होती और इससे इस मिशन पर होने वाला खर्च काफी ज्यादा बढ़ जाता। मंगल पर मीथेन की मौजूदगी का पता लगाने के लिए मंगलयान पर सेंसर भी लगे होंगे। ये सेंसर काफी संवेदनशील हैं और मीथेन की मात्रा कम होने पर पर भी उसका पता लगा सकते हैं।
खर्च कितना
इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब छह करोड़ 90 लाख डॉलर) है। अमेरिका भी मंगल अभियान पर अपना एक और स्पेसक्राफ्ट (मैवेन) भेजने की तैयारी कर रहा है और इस पर करीब 48 करोड़ 50 लाख डॉलर का खर्चा आएगा। मंगलयान और मैवेन अगले साल सितंबर में ही मंगल की कक्षा में पहुंचेंगे। इसरो के सैकड़ों कर्मचारी और वैज्ञानिक भारत के मंगल मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं।
चुनौतियां भी
अगर मंगलयान को किन्हीं कारणों से इस 19 नवंबर तक नहीं छोड़ा जा सका तो मंगल और पृथ्वी के रोटेशन से जुड़ी़ तकनीकी वजहों के कारण इसको फिर 5 साल बाद ही छोड़ा जा सकेगा। इसके साथ ही इसे रेडिएशन और कम तापमान से बचाने और मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए रॉकेट के इंजन को दोबारा चालू करने की चुनौती भी इसरो के वैज्ञानिकों के सामने है। इसके कारण मंगल को जानने के लिए छोड़े गए कई सैटलाइट्स बर्बाद हो गए हैं।
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