प्रथम चुनाव से लेकर अब तक मतदान करते आये हें
पचहत्तर वर्ष के रतनलाल अवस्थी बताते है कि पहले चुनाव में प्रभाव से वोट पड़ते थे।अब धनबल, जाति और बाहुबल का सामंजस्य तो हो रहा है लेकिन खुशी की बात यह हैकि लोग विकास की बात खुलकर करने लगे है।मीडिया ने इतनी जागरूकता लाईहै कि आम आदमी को अपना मताधिकार बड़ा लगने लगा है। 63 वर्षीय जैसलसिंह खारवाल ने भी दस विधानसभाओं में मत दिए है। वे यह मानते है कि खरे और सच्चे लोग राजनीति से अब तक दूर रहे हंै। धन हावी जरूर हुआ हैलेकिन जागरूकता यह स्वरूप आने वाले समय में लोकतंत्र को मजबूत करेगा।राजनीति से सीधी जुड़ी और पहले चुनावों में ही सक्रिय रह चुकी अस्सी वर्षीय जिला प्रमुख मदनकौर ने राजनीति का प्रत्येक दौर देखा है।वो कहती है कि जागीरी प्रथा खत्म होने के बाद लोकतंत्रलागू हुआ। उस समय मतदाता तक पहुंचना मुश्किल होता था। कार्यकर्ता इतने नहीं होते थे। बूथ पर लोग नहीं मिलते थे।अब तो हर बूथ पर कार्यकर्ता है।हर घर में जागरूकता है।सत्तर प्रतिशत मतदान होने लगा है।
यह चाहते हैं बुजुर्ग
तेरह विधानसभा के चुनाव देख चुके बुजुर्गो को खलता है कि चुनावों में माहौल खराब हो जाता है। धनबल का बहुत ज्यादा प्रयोग हो रहा है। प्रत्याशी और पार्टियां इतन खर्च करती है कि फिर वसूली होती है।यह नहीं होना चाहिए।
ऎसे भी लड़ते थे चुनाव
ऊंट गाड़े हुआ करते थे।गाडिया तो देखने को नहीं थी। संदेश पहुंचते थे, अधिकांश जगह सभाएं नहीं होती थी। मतदान के दिन भी लोग पूरे नहीं पहुंच पाते थे।मतदान में भागीदारी बहुत कमजोर थी।
यह है आंकड़ा
80 की उम्र पार करने वाले जिले में 31506 मतदाता है। इसमें महिलाओं की संख्या 20754 है और पुरूष 10806 है। बाड़मेर व सिवाना में 1952, चौहटन,गुड़ामालानी व पचपदरा में 1957, शिव में 1967 व बायतु में 2008 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ है।
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