जैसलमेर का ऐतिहासिक दिन विजय दशमी
लीलू सिंह भाटी बड्डा --
मुम्म्ह्द बिन तुगलक था ! जैसलमेर की किले आक्रमण कर के विजय प्राप्त कर ली मुगलों ने ! बाद में मुग़ल शासक ने गडसी जी दिल्ली आने के ली
ख़त लिखा ! गड्सी जी के साथ श्री पनराज लूणकरण जी दिल्ली गये !
तब मुग़ल शासक ने गड्सी जी से कहा की आपसे और आपके साथियों से
में तीन सर्ते रखता हु अगर आप जीत गए ! तो जैसलमेर की किले की चाबियों वापस दी जाएगी ! तब गड्सी जी ने योध्दा श्री पनराज जी बात की
श्री पनराज ने कहा की मातर भूमि की रक्षा करना हमारा धर्म है ! गड्सी जी ने मुग़ल शासक मुम्म्ह्द बिन तुगलक कह दिया हमें आपकी सर्ते मजूर
है पहली सर्त - इक़ा पठान नाम के पहलवान से बल युध्द करना होगा ! श्री पनराज से कहा गया !श्री पनराज ने इका पठान पहलवान बल युध्द में
पसाद दिया हाथ तोड़ दी गए श्री पनराज ने दूसरी सर्त - बलवान हाथी गेट पर था कोई भी व्यक्ति गेटके से अन्दर जिन्दा नही गुस सकता ! उस मर देता था ! यह भी सर्त श्री पनराज ने पूरी की हाथी की सुण्ड पकड़ मार गिरा श्री पनराज जी ने तीसरी सर्त -महारावल गड्सी जी के सामने रखी उसमे हाथी खड़ा उसमे लोह के सरियों से बीधा हुआ था एक़ ही जटके में करना होगा ! महारावल जी यह सर्त पुरी कर दी ! मुग़ल शासक ने कहा ऐसे योध्दा
मैंने कही नही देखा ! गडसी जी से कहा आपको क्या चाहिय वह मांगों वह मिलेगा ! महारावल गडसी जी मुह्जे कुछ नही चाहिय मुह्जे केवल मेरी मातर भूमि चाहिय तब मुग़ल शासक ने प्रसन्नता पूर्वक जैसलमेर की किले चाबियों सोप दी गयी है ! उस दिन विजय दशमी का दिन था ! जैसलमेर के इतिहास का अहम् है श्री पनराज को महारावल जी प्रसन्न होकर भूर्ज दिया सुनली डूंगर पर जन्हा गौ मातर भूमि रक्षक जुन्झार श्री पनराज देवस्थान है ! विजयदशमी के दिन दोनों वीरो की पूजा -अर्चना की जाती है ! जय जैसान जय जैसान जय माँ स्वन्गिया
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