मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि मुस्लिम पसर्नल ला के तहत मस्जिद कमेटियों को तलाक से संबंधित फतवे जारी करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है.
न्यायाधीश अजित सिंह एवं संजय यादव की युगलपीठ ने जारी आदेश में कहा है कि तलाक के फैसले जारी करने का हक अदालतों को है. मस्जिद कमेटियों किसी भी तरह सिविल अदालत के रुप में कार्य नहीं कर सकती हैं.
भोपाल निवासी मोहम्मद जहीर खान कोटी की तरफ से वर्ष 2009 में दायर की गयी जनहित याचिका में कहा गया था कि राज्य शासन ने वर्ष 1980 में अधिसूचना जारी कर मस्जिद कमेटी भोपाल को भोपाल, रायसेन एवं सिहोर जिलों में स्थित मस्जिदों की देख-रेख की जिम्मेदारी दी थी.
याचिका में कहा गया है कि नियमों के अनुसार, मस्जिद कमेटी को तलाक के मामलों में दखल देने का हक नहीं था, लेकिन इसके बावजूद भी मस्जिद कमेटी ने दारुल कजा एवं दारुल इफतर नामक दो उप इकाईयों का गठन किया. दारुल कजा ईकाई तलाक के मामलों की सुनवाई करने तथा दारुल इफतर फतवे जारी करने लगे, जो अवैधानिक एवं नियम विरुद्ध है.
न्यायालय में लंबित प्रकरणों में भी मस्जिद कमेटी के द्वारा जारी तलाकनामे को दस्तावेज के रुप में प्रस्तुत किया गया. युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए मंगलवार को अपने फैसले में कहा है कि मस्जिद कमेटियां समानांतर अदालतें नहीं चला सकती है. वह आपसी सहमति के तहत दोनों पक्षों में समझौता करवाने के लिए स्वतंत्र है.
युगलपीठ ने संबंधित पक्षकारों को यह स्वंतत्रता दी है कि वह चाहे तो इन कमेटियों के फैसलों को सक्षम अधिकरण में चुनौती दे सकते है.
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