बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

स्त्री रूप में गणपति



कन्याकुमारी के पास शुचिंद्रम में स्थित ‘थानुमलायन’ या ‘स्थानुमलायन’ मंदिर अकेला ऐसा मंदिर माना जाता है, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों को समर्पित है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही शैव और वैष्णव दोनों संप्रदाय के भक्त इस मंदिर में आकर आराधना करते रहे हैं। कन्याकुमारी से कुछ ही किलोमीटर दूर त्रिवेंद्रम जाने वाले रास्ते पर तमिलनाडु और केरल की सीमा के पास स्थित शुचिंद्रम नामक जगह के नाम में ही इस का अर्थ छुपा है। मान्यता है कि भगवान इंद्र को यहां पर पाप-मुक्त अर्थात पवित्र किया गया था। उसी शब्द ‘शुचि’ और ‘इंद्र’ से इस जगह का नाम पड़ा। मान्यता है कि इंद्र देव यहां रात को होने वाली ‘अर्धजामा पूजा’ में स्वयं उपस्थित होते हैं।

एक कथा यह भी है। इसी स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनुसूया की पतिव्रत की परीक्षा लेने के लिए उनके सम्मुख साधु रूप में आकर यह शर्त रखी थी वे निर्वस्त्र होकर भिक्षा दें, तभी वे उसे स्वीकार करेंगे। तब उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से त्रिमूर्ति को बालक रूप में बदल कर उनकी शर्त मानी थी।
यहां के मुख्य गर्भगृह में भगवान की पूजा लिंग रूप में होती है। लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर इस परिसर में हैं। भगवद्गीता के दृश्यों को भी यहां उकेरा गया है, जिनमें पार्थसारथी कृष्ण को त्रिदेव के रूप में दिखाया गया है। साथ ही यहां गणपति के स्त्री रूप को भी देखा जा सकता है। भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल मूर्ति भी भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनती है। इस मंदिर में स्थित अलंकार मंडपम में विशाल पत्थरों से बने खंभे हैं, जिनकी विशेषता यह है कि ये संगीतमय खंभे हैं, जिनके बीच में आवाज संगीत के सात सुरों में गूंजती-सी लगती है। अंजनी पुत्र हनुमान की ग्रेनाइट पत्थर के एक ही टुकड़े से बनी काफी ऊंची मूर्ति ‘आंजनेय’ विशेष रूप से दर्शनीय है।

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