माउंट आबू। देलवाड़ा क्षेत्र की संतोष कुंवर ने जीवित रहते हुए अपनी एक आंख दान कर दी। दरअसल, मंदिर से लौटते वक्त संतोष कुंवर पर शनिवार को मादा भालू और उसके दो बच्चों ने हमला कर दिया था।
बुरी तरह घायल हुई संतोष की एक आंख निकल गिर गई थी। उसका मोबाइल भी गिर गया था, जिसे ढूंढ़ने उसका बेटा किशोरसिंह 14 घंटे बाद वहां पहुंचा। बेटे को वहां मां की आंख मिल गई। नेत्र चिकित्सक ने जांच कर आंख को सुरक्षित बताया।
घायल महिला के आंख के समीप का हिस्सा बुरी तरह जख्मी होने से प्रत्यारोपण संभव नहीं था। इस पर परिजनों ने इसे दान कर दिया है। रात भर सड़क से अनेक वाहन गुजर जाने के बावजूद आंख का सुरक्षित रहना अचरज ही है। वहां के डॉक्टरों के मुताबिक इस तरह जीवित नेत्रदान का दुनिया में यह संभवत पहला मामला है।
करिश्मा कुदरत का या...
भालू के वार से आंख इतनी सुरक्षित निकली कि कोई चिकित्सक नहीं निकाल सकता और जिस कोण से यह जंगल में लकड़ी पर गिरी थी, उसी कोण पर लैब में इसे रखा जाता है। बारिश ने डिस्टिल वाटर का काम किया। आंख निकालने के बाद डॉक्टर डिस्टिल वाटर में ही इसे धोकर सोल्यूशन में रखते हैं। माउण्ट आबू का तापमान इसके लिए मुफीद था। (नेत्र सर्जन सुधीरसिंह के मुताबिक ये वो कारण रहे, जिसके चलते आंख 14 घंटे तक सुरक्षित रही। आमतौर पर लैब में ही आंख को सुरक्षित रखा जा सकता है)
बुरी तरह घायल हुई संतोष की एक आंख निकल गिर गई थी। उसका मोबाइल भी गिर गया था, जिसे ढूंढ़ने उसका बेटा किशोरसिंह 14 घंटे बाद वहां पहुंचा। बेटे को वहां मां की आंख मिल गई। नेत्र चिकित्सक ने जांच कर आंख को सुरक्षित बताया।
घायल महिला के आंख के समीप का हिस्सा बुरी तरह जख्मी होने से प्रत्यारोपण संभव नहीं था। इस पर परिजनों ने इसे दान कर दिया है। रात भर सड़क से अनेक वाहन गुजर जाने के बावजूद आंख का सुरक्षित रहना अचरज ही है। वहां के डॉक्टरों के मुताबिक इस तरह जीवित नेत्रदान का दुनिया में यह संभवत पहला मामला है।
करिश्मा कुदरत का या...
भालू के वार से आंख इतनी सुरक्षित निकली कि कोई चिकित्सक नहीं निकाल सकता और जिस कोण से यह जंगल में लकड़ी पर गिरी थी, उसी कोण पर लैब में इसे रखा जाता है। बारिश ने डिस्टिल वाटर का काम किया। आंख निकालने के बाद डॉक्टर डिस्टिल वाटर में ही इसे धोकर सोल्यूशन में रखते हैं। माउण्ट आबू का तापमान इसके लिए मुफीद था। (नेत्र सर्जन सुधीरसिंह के मुताबिक ये वो कारण रहे, जिसके चलते आंख 14 घंटे तक सुरक्षित रही। आमतौर पर लैब में ही आंख को सुरक्षित रखा जा सकता है)
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