नई दिल्ली। बीजेपी के तीन बड़े नेताओं के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन ने पार्टी को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है और कांग्रेस को फ्रंटफुट पर। स्टिंग ऑपरेशन में बीजेपी के बड़े नेता नरेंद्र मोदी की शह पर, उनके खासमखास अमित शाह को तुलसीराम प्रजापति फर्जी एनकाउंटर केस में बचाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं।
इस स्टिंग का हवाला देते हुए कांग्रेस ने कहा है कि मामला गंभीर है और इसलिए इसकी जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। पार्टी ने आरोप लगाया है कि स्टिंग ऑपरेशन से ये साफ हो गया है कि कानूनी प्रक्रिया में दखल देकर नरेंद्र मोदी के खास अमित शाह को बचाने की कोशिश हो रही है और चूंकि ये पूरा मामला मोदी की देखरेख में चल रहा था, इसलिए उन्हें अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है।
कांग्रेस ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर उस स्टिंग ऑपरेशन को दिखाया, जिसपर बवाल मचा है। पार्टी के मुताबिक नरेंद्र मोदी को इस पूरे मामले की जानकारी थी। सीडी में दिखाया गया है कि पार्टी के सांसद भूपेंद्र यादव एक खोजी पत्रकार से मिलकर इस बात की डील करते हैं कि तुलसी प्रजापति की मां नर्मदा बाई से एक सादा वकालतनामा हस्ताक्षर करा लाए ताकि वो इस केस में अपनी मर्जी का वकील रखकर उसे मैनेज कर सकें। वे इस स्टिंग ऑपरेशन में इसके लिए पैसे के लेनदेन और इंदौर में नर्मदा बाई की सुरक्षा के ठेके का जिक्र भी कर रहे हैं।
खोजी पत्रकार के स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया है कि बीजेपी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर इस पूरी साजिश का हिस्सा हैं। वे दावा कर रहे हैं कि उन्होंने इस ऑपरेशन की जानकारी नरेंद्र मोदी को दे दी है और मोदी ने कहा है कि हमें अमित शाह को ही रिपोर्ट करना है। स्टिंग के तीसरे किरदार बीजेपी में आरएसएस के नुमाइंदे और पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल हैं। रामलाल को पूरी जानकारी है कि अमित शाह को बचाने की कोशिशें कहां तक पहुंची हैं। वो खोजी पत्रकार को भरोसा भी दिलाते हैं कि प्रकाश जावड़ेकर उनका सहयोग करेंगे। जाहिर तौर पर बीजेपी को सांप सूंघ गया है और वो किसी तरह इसे साजिश साबित करने में जुटी है।
दरअसल स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया है कि कैसे बीजेपी की ये तिकड़ी मोदी की सहमति के साथ तुलसीराम प्रजापति का केस लड़ रही उसकी मां नर्मदा बाई को पटाकर उनसे एक वकालतनामा लिखवा रही है ताकि वो इस केस में अपना वकील खड़ा कर सकें। मतलब आरोपी अमित शाह का वकील मजबूती से केस लड़कर उन्हें बचाने में लगे और उसके खिलाफ लड़ रहा नर्मदा बाई का वकील केस को कमजोर कर उन्हें हराने में।
गौरतलब है कि तुलसी प्रजापति को 28 दिसंबर 2006 को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया गया था। ये मुठभेड़ बनासकांठा के छपरी गांव में हुई थी। तुलसी प्रजापति की मां नर्मदा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में मामले की सीबीआई जांच कराने की अपील की थी। जिसके बाद अप्रैल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया। जांच के बाद सीबीआई ने सितंबर 2012 में तुलसी प्रजापति मुठभेड़ मामले में अपनी चार्जशीट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी।
चार्जशीट में मुठभेड़ को फर्जी ठहराते हुए सीबीआई ने इसे परफेक्ट मर्डर बताया। सीबीआई के मुताबिक तुलसी की हत्या सोची-समझी साजिश का हिस्सा थी। सीबीआई ने इस साजिश का पहला आरोपी अमित शाह को बनाया। शाह पर हत्या, आपराधिक साजिश रचने, फर्जी दस्तावेज तैयार करने जैसे आरोप लगाए गए। चार्जशीट के मुताबिक शाह ने अपनी सत्ता का गलत इस्तेमाल किया।
सीबीआई के मुताबिक तुलसीराम को इसलिए मारा गया क्योंकि वो सोहराबुद्दीन और कौसर बी की हत्या का सबसे अहम गवाह था। कॉल डिटेल्स के आधार पर सीबीआई ने पाया कि तुलसी को दबोचने के लिए शाह ने करीब 380 फोन कॉल किए थे। अमित शाह ने ये कॉल आईपीएस अफसर राजकुमार पांडियन और डी जी वंजारा को किए थे। सीबीआई का आरोप है कि शाह ने जांच की दिशा भटकाने के लिए अफसरों पर दबाव भी बनाया।
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कहा था कि अमित शाह एक फिरौती रैकेट में सरगना हैं। सीबीआई ने कहा कि ये गिरोह नेता-पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ से चल रहा है। सीबीआई के मुताबिक तुलसी प्रजापति की मौत एक राजनीतिक हत्या थी, जिसे पूरी साजिश के साथ अंजाम दिया गया।
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