बाड़मेर. महात्मा ईसरदास बारहठ
धूमधाम से मनेगी 555वीं जयंती, भादरेस में बहेगी भक्तिरस की सरिता
बाड़मेर भादरेस नगर में महात्मा ईसरदास बारहठ की 555वीं जयंती गुरुवार को उत्साह के साथ मनाई जाएगी। भादरेस के चारण कुल चिंतामणी ईसरा सो परमेश्वरा से विभूषित ईसरदास बारहठ का 555 वां जन्म दिवस सुबह नौ बजे हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इससे पूर्व बुधवार को भजन संध्या, काव्य पाठ, चिरजाएं की प्रस्तुति देने के लिए गुजरात के प्रसिद्ध भजन गायक व स्थानीय गायक कलाकार शिरकत करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अलग-अलग कमेटियों का गठन किया गया है।
मंदिर को रोशनी से सजाया गया। विशाल टेंट, पानी, बिजली की व्यवस्था की गई है। कार्यक्रम कंकू केसर मां गढ़वाड़ा राजसमंदर, पूज्य श्री सुआ बाईसा जुडिय़ा जोधपुर व स्वामी प्रतापपुरी महाराज तारातरा मठ के सानिध्य में आयोजित होगा। भादरेस में स्थित महात्मा ईसरदास मंदिर की सजावट की जा रही है। समारोह स्थल पर छाया,पानी के माकूल प्रबंध किए जा रहे हैं। कार्यकर्ता कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तैयारियां में जुटे हैं। मंदिर समिति सदस्यों ने बताया कि बुधवार को रात्रि जागरण में प्रसिद्ध भजन गायक शानदार प्रस्तुतियां देंगे। गुरुवार सुबह 7.30 बजे हवन व महाआरती होगी। इसी दिन 9.30 बजे 12 बजे तक व्याख्यान एवं विचार गोष्ठी होगी। दोपहर 12 से सांय 4 बजे तक महाप्रसादी वितरित की जाएगी।
ये है ईसरदास की मान्यताएं व चमत्कार
ईसर नाम अराधियां, कष्ट न व्यापे कोय।
जो चावे सुखमीवरों, हरिरस चित में होय।।
संत शिरोमणि, भक्तवर, महात्मा कवि ईसरदास जो ईसरा परमेश्वर के नाम से जगत प्रसिद्ध है। लोक देवता बाबा रामदेव की तरह ईसरदास भी सभी जातियों के देवता माने जाते हैं। इनके चमत्कारों की फेहरिस्त काफी लंबी है। काव्य ग्रंथों के उल्लेख के अनुसार भादरेस में दीपावली के मेराइये (दीपक) व होली की ज्योति स्वत: ही प्रज्ज्वलित होते हैं। ईसरदास जी के बाजरी के भंडार की जली हुई बाजरी भक्तों को आज भी खोदने पर मिलती है। जिनको बाजरी मिलती है उनके घर में जली बाजरी रखने पर भखारी की बजारी ईसरदास जी के परचे से कभी खत्म नहीं होती है। ईसरदास का धूप करके इनके नाम की तांती बांधने पर बिच्छू का जहर तुरंत उतर जाता है। ईसरदास की सच्ची श्रद्धा से पूजने व उनकी आराधना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। गुजरात में ईसरदास ने मांडण भक्त के सामने पल में मांस व शराब का अपनी करामात से प्रसाद व अमृत बना दिया। गुजरात के आयरो द्वारा राज्य का कर समय पर नहीं भरा जाने पर ईसरदास ने इसके चांद उगने तक अपनी जमानत दी। चांद उगने के दिन भी रकम नहीं हो सकती तो ईसरदास ने अपनी करामात से चन्द्रमा को छिपा दिया। जिसके कारण बादशाह ने उन्हें ईसरा परमेश्वर की उपाधि दी। अमरेली के राजा विजाजी सरवैया के पुत्र कर्ण की सांप डसने से मौत हो गई। अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट जा रहे थे। उस वक्त ईसरदास ने अर्थी श्मशान घाट पर रुकवा दी। देवताओं की आराधना करके उनको जीवित किया।
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