अपने को ही दीप बनाओ - डा. वर्मा
हास्य -व्यंग्य काव्य गोष्ठी सम्पन्न
बाड़मेर। अन्तर प्रांतीय कुमार साहित्य परिषद द्वारा स्थानीय पेंशनर्स समाज भवन में लखनऊ के ख्यातिनाम हास्य व्यंगयकार डा. गिरीश कुमार वर्मा 'डण्डा लखनवी' के मुख्य आतिथ्य, कन्हैयालाल वक्र की अध्यक्षता एवं सीताराम व्यास 'राहगीर' के विशिष्ट आतिथ्य मे हास्य व्यंग्य काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुर्इ।
गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए मुकेश बोहरा 'अमन' ने 'मिटटी का दीया' और 'मैने देखा है', तिलोकाराम मायला ने 'तुझमें विलीन हो जाऊं' गोरधनसिंह ने 'लपरकते-लपरकते बाबो आयो' कमल शर्मा 'राही' ने 'प्याज आसमान की तरफ दौड़ रहा है', रेवंताराम मायला ने 'नैन सू नैन मिलाऐ' तथा गणेश कैला ने 'क्या से क्या हो गया' कविताऐं सुनाकर श्रोताओं को हास्य रस में डूबोया। दीपसिंह भाटी बंधड़ा ने अपनी राजस्थानी छन्दस कविता ' महके चारो मोर' सुनाकर डींगल एवं राजस्थानी भाषा संस्कृति का अनुपम परिदृश्य प्रस्तुत किया। अशोक भूणिया ने 'बेटी की पुकार' मुरली खण्डेलवाल ने 'घर जमार्इ', प्रताप पागल ने 'मैं शायर न बना होता तो तहसीलदार होता' स्वरूप पंवार ने 'गुलो को आज बहारो की बात कहने दो' गीत प्रस्तुत किया। कृष्ण कबीर ने 'समुद्र तट पर टहलते हुए एक गिलास पानी मांगा', सीताराम व्यास 'राहगीर' ने 'ख्याल मुझको सोने नहीं देते', गोष्ठी संयोजक गौतम संखलेचा 'चमन' ने 'इनकम टैक्स रेड' एवं परिषद अध्यक्ष डा. बंशीधर तातेड़ ने 'अगर तुम जल्दी आ जाती तो अच्छा होता' प्रस्तुतियां दी।
इस दौरान कन्हैयालाल वक्र ने प्रेम को परिभाषित कैसे करे' कविता प्रस्तुत की। मुख्य अतिथि डा. वर्मा ने हास्य व्यंग्य की कविताओं के साथ ' अपने को ही दीप बनाओ' गीत एवं रामायण में हनुमानजी के साहस एवं वीरता पूर्ण कार्य को छन्दस कविता में प्रस्तुत कर गोष्ठी को ऊचार्इयां प्रदान की। गोष्ठी के प्रारम्भ में मां शारदा की पूजा-अर्चना के बाद डा. वर्मा का शाल ओढाकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर साहित्यकारों के अतिरिक्त कर्इ कविता प्रेमी उपसिथत थें।
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