मंगलवार, 13 अगस्त 2013

5 साल से अपने ही घर में कैद एक परिवार... l


खौफ के साये में बिजेंदर का परिवार

ये ना तो बिग बॉस का घर है और ना ही ये सब बिग बॉस के मेहमान. ये दिल्ली का एक आम परिवार है, पर पूरी दिल्ली से जुदा. क्योंकि दिल्ली का ये परिवार पिछले पांच सालों से अपने ही घर में कैद है. हालांकि बाकी दिल्ली की तरह इस घर के लोग भी सुबह उठते हैं, तैयार होते हैं लेकिन काम पर बाहर जाने की बजाय सबके सब बस इसी कमरे में बंद हो कर रह जाते हैं. खौफ ऐसा कि घर में कोई एक-दो नहीं, बल्कि 16 सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. जो यहां होने वाली हर हरकत को चौबीसों घंटे रिकॉर्ड करते हैं.

घर के रास्ते में, मेन गेट पर, बरामदे में और यहां तक कि लिविंग रूम में भी ये कैमरे हर वक्त चालू रहते हैं. यानी घर के अंदर की हर हरकत हर पल कैमरे में कैद होती रहती है. आलम ये है कि घर के बाहर कब सुबह होती है और कब शाम ढलती है. इन्हें पता तक नहीं नहीं चलता. और तो और इस घर के बच्चों ने भी इसी ख़ौफ़ के चलते स्कूल तक जाना छोड़ दिया है. छोटी बेटी कभी-कभार स्कूल चली भी जाती है, लेकिन बड़ी बेटी ने पिछले तीन सालों से स्कूल का मुंह तक नहीं देखा.

पर्व-त्यौहार के मौके पर दोस्त-रिश्तेदार जरूर आ जाते हैं, बधाइयां देकर चले जाते हैं लेकिन इस परिवार के लोग किसी के घर नहीं जा सकते. अब सवाल ये है कि आखिर वो कौन सा खौफ है, जिसने इस परिवार को पिछले पांच सालों से अपने ही घर में कैद कर रखा है. क्यों ये परिवार घर से बहर नहीं निकलता. क्यों इस परिवार के बच्चे स्कूल नहीं जाते. क्यों परिवार के बड़े काम पर बाहर नहीं निकलते. क्यों ये परिवार घर के अंदर 16 सीसीटीवी कैमरे के साए में जीने को मजबूर है.

केबल ऑपरेटर का काम करनेवाले बिजेंदर सिंह और उनके परिवार की जिंदगी पहले ऐसी नहीं थी बल्कि अब से पांच साल पहले उनका परिवार भी एक आम और खुशहाल जिंदगी जी रहा था. घर के लोग साथ रहते थे, साथ घूमने जाते थे, बच्चियां स्कूल जाती थीं लेकिन 12 नवंबर 2004 को बिजेंदर के साथ एक ऐसी वारदात हुई, जिसने सिर्फ बिजेंदर ही नहीं, बल्कि उनके कुनबे की दुनिया बदल दी.

इस रोज़ बदमाशों के एक गैंग ने बिजेंदर की जान लेने के लिए उनके दफ्तर पर धावा बोला. खुशकिस्मती से बिजेंदर तब वहां नहीं थे जिससे उनकी जान बच गई, लेकिन जाते-जाते बदमाशों ने बिजेंदर के एक मुलाजिम की गोली मार कर जान ले ली. ये हमला इलाके के शातिर बदमाश चंद्र प्रकाश उर्फ चंदू ने किया था.

दरअसल, बिजेंदर की दुकान पर हुआ ये हमला जबरन वसूली से इनकार करने का नतीजा था. बिजेंदर के केबल का कारोबार उन दिनों शबाब पर था और उनकी इसी तरक्की को बदमाशों की नजर लग गई. अब बिजेंदर ने अपने मुलाजिम के घरवालों को इंसाफ़ दिलाने की लड़ाई शुरू की.

पुलिस ने कातिलों के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज कर मामले की तफ्तीश शुरू की और बिजेंदर ने तमाम धमकियों की अनदेखी करते हुए चंद्र प्रकाश उर्फ चंदू के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी. इंसाफ़ की कसौटी पर बिजेंदर की ये गवाही चंदू की ताबूत में आखिरी कील साबित हुई और उसे सजा हो गई. पहले उन्हें सेशन कोर्ट में जीत मिली और फिर हाई कोर्ट में.

अब बिजेंदर ने चैन की सांस ली. उन्हें दो बातों का सुकून था. अव्वल तो ये कि उन्होंने मुश्किल से ही सही, लेकिन अपने मकतूल मुलाजिम को इंसाफ दिलाने में कामयाबी हासिल कर ली और दूसरा ये कि गुनहगार चंदू को सजा होने के बाद अब आने वाले दिनों में उन्हें कम से कम चंदू से कोई डर नहीं रहा.

कुछ सालों तक बिजेंदर की ये सोच सही साबित हुई लेकिन इसके बाद तकरीबन दो साल बाद फिर एक ऐसी बात हुई, जिसने बिजेंदर के पैरों तले जमीन खिसका दी. अचानक उनके मोबाइल पर एक अंजान नंबर से फोन आया. इधर, बिजेंदर ने फोन उठाया और उधर से दूसरी तरफ चंदू की आवाज गूंजी. लेकिन फिर ये कैसे मुमकिन था. क्योंकि सेशन कोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने भी चंदू की अपील खारिज कर दी थी और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. वो तो जेल में बंद था.

मोबाइल पर सुनाई पड़ी चंदू की आवाज ने बिजेंदर को चौंका दिया. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर चंदू उन्हें इस तरह फोन कैसे कर सकता है, क्योंकि वो तो जेल में बंद था और जेल में उसे कोई हफ्ते दस दिन नहीं, बल्कि ताउम्र रहना था, क्योंकि उसे उम्र कैद की सजा हुई थी.

पहले तो बिजेंदर ने इसे किसी की शरारत समझ कर भूलने की कोशिश की. लेकिन चंद रोज बाद जब उसके मोबाइल पर फिर एक दूसरे नंबर से फोन आया, तो वो उलझन में पड़ गया, क्योंकि इस बार भी दूसरी तरफ वही आवाज़ थी. फोन करनेवाले ने खुद को चंदू बताया और कहा कि उसने उसे बेशक सलाखों के पीछे पहुंचा दिया हो, लेकिन अगर जीना है तो अब वो उसकी मांग पूरी करने को तैयार हो जाए. फोन करनेवाला इस बार ढाई लाख रुपये मांग रहा था.

दूसरे फोन कॉल के बाद बिजेंदर के लिए अब इसे हल्के में लेने की कोई वजह नहीं बची, क्योंकि इस बार फ़ोन करनेवाले उसकी बात नहीं मानने पर उसे ना सिर्फ जान से मारने की धमकी दी, बल्कि ये भी कहा कि वो उनकी बेटियों को भी नहीं छोड़ेगा. इसके बाद बिजेंदर के मोबाइल पर एक के बाद एक कई फोन आए.

अब परेशान बिजेंदर ने पुलिस के दरवाजे पर पहुंचा लेकिन पहले तो पुलिस ने उसे चलता करने की कोशिश की, मगर बाद में अदालत के कहने पर उसने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली. तफ्तीश के सिलसिले में जब पुलिस ने उन नंबरों को सर्विलांस पर लिया, तो पता चला कि सभी के सभी नंबर ना सिर्फ तिहाड़ जेल के इलाके में एक्टिव थे, बल्कि इन्हीं नंबरों से बिजेंदर के मोबाइल पर फोन भी किया गया था.

लेकिन अजीब बात ये थी कि इस चौंकानेवाले सच के सामने आने के बाद भी पुलिस की कान में जूं नहीं रेंग रही थी. उधर, बिजेंदर के हाथ पांव फूलने लगे थे, क्योंकि उसे ये लगने लगा था कि जो शख्स जेल में बैठ कर एक नहीं, कई अलग-अलग नंबरों से फोन कर सकता है, वो जेल में बैठ कर ही उसे नुकसान भी जरूर पहुंचा जा सकता है और इसी बीच चंदू ने अपनी बातों को सही साबित करने के लिए वो काम कर दिखाया, जिसके बारे में बिजेंदर ने सोचा भी नहीं था.

रात के अंधेरे में गली में मौजूद बाइकरों की ये भीड़ महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि बाइकरों का ये गैंग चंदू की उन धमकियों का प्रैक्टिकल है, जो वो लगातार जेल में बैठे-बैठे बिजेंदर को देता रहा है. सीसीटीवी फुटेज में बाइकरों का एक गैंग संगम विहार में ठीक उसी जगह पर आकर रुकता है, जहां बिजेंदर का मकान है. इनमें हर बाइक पर दो से तीन लोग बैठे हैं, जो किसी को ढूंढ़ते हुए नज़र आते हैं. दरअसल, ये चंदू के वो गुर्गे थे, जो यहां बिजेंदर की तलाश में पहुंचे थे. पहले तो इनमें से एक बाइकर बिजेंदर के घर जा कर उनके बारे में पता करता है और जब घरवाले बिजेंदर के वहां नहीं होने की बात कहते हैं, तो बाइकरों का गैंग उनके दफ्तर के लिए रवाना हो जाता है लेकिन इसी बीच सीसीटीवी कैमरे मं वो तस्वीर कैद होती है, जिसे देख कर कोई भी हैरान रह जाएगा.
खौफ के साये में बिजेंदर का परिवार
ये देखिए बिजेंदर का पता करनेवाले बदमाश किस तरह खुलेआम हथियार लहराते हुए उसे ढूंढ़ रहे हैं. सीसीटीवी में अपनी हरकतों के कैद होने से बेखबर ये बदमाश जब बिजेंदर की तलाश में पहुंचे थे, तो उन्होंने बाकायदा अपने साथ हथियार ले रखे थे. खुशिकस्मती से उस रोज बिजेंदर तो नहीं मिले, लेकिन बदमाशों की ये हरकत सीसीटीवी में जरूर कैद हो गई.

हालांकि इतना होने के बावजूद पुलिस ने बिजेंदर को मिल रही चंदू की धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. उधर, धीरे-धीरे बिजेंदर और उसका पूरा परिवार खौफ के साए में जीने लगा. बेटियों को मिल रही धमकियों की वजह से उन्होंने अपनी बड़ी बेटी के स्कूल जाने पर भी रोक लगा दी और घर में ही ट्यूशन लगवा कर उसे पढ़ाने लगे. अपनी हिफाजत के लिए उन्हें निजी सुरक्षा गार्ड यानी पीएसओ तैनात करना पड़ा, जो अब भी हर वक्‍त किसी साए की तरह हमेशा उनके साथ रहता है और अब तक हाई कोर्ट ने भी इस मामले की नजाकत को भांपते हुए दिल्ली पुलिस को उन्हें 24 घंटे सुरक्षा मुहैया कराने का हुक्म दिया है.

इतना होने के बावजूद पुलिस की तफ्तीश में अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिससे चंदू का हौसला टूटे और बिजेंदर और उनका परिवार दूसरे तमाम लोगों की तरह एक आम जिंदगी जी सके.


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