रविवार, 21 जुलाई 2013

हेमी बनी थार जिले की पहली महिला बस परिचालक

हेमी बनी थार जिले की पहली महिला बस परिचालक 

बाड़मेर। बाड़मेर के तिलक बस स्टैंड पर दोपहर सवा एक बजे रोडवेज बस आकर रुकती है। तभी टिकट खिड़की के पास खड़ी एक महिला आवाज देकर सभी को टिकट लेकर बस में चढऩे को कहने लगी। सभी एकाएक नजरे आवाज की तरफ करते हैं और नजर रुक सी जाती है। हेमी चौधरी ने रविवार से बाड़मेर की पहली महिला बस कंडक्टर के रूप में अपना कार्य शुरू किया। रोडवेज की ओर से आयोजित परिचालक भर्ती परीक्षा में सफलता हासिल कर हेमी ने सफलता की नई इबारत लिखी। कंडक्टरी जैसा कठिन पेशा अपनाना कभी हेमी ने सोचा भी नहीं था, लेकिन मन में सरकारी नौकरी हासिल करने की ललक ने इसे आसान बना दिया।

दस साल से परीक्षा देती रहीं 

मन में बस एक ही चाह, मुझे सरकारी नौकरी लेनी ही है। पिछले दस साल से नौकरी के लिए होने वाली सभी परीक्षाएं देने वाली हेमी ने आखिरकार सफलता की कहानी लिख ही दी।


बायतु भीमजी की रहने वाली हेमी चौधरी ने दसवीं तक की पढ़ाई नियमित स्कूल में अध्ययन कर पूरी की। इसके बाद बारहवीं व बीए स्वयंपाठी (प्राइवेट) के रूप में पास की। ये सिलसिला यहीं नहीं रुका और उसने शिक्षक बनने की चाह में बीएड भी की।


और बन गई कंडक्टर

हेमी ने सभी परीक्षाओं की तैयारी अपने बलदेव नगर स्थित पीहर में रहकर की। अब शिक्षक बनने का सपना देखने वाली हेमी ने थर्ड ग्रेड, सैकंड ग्रेड, हैड मास्टर सहित विभिन्न भर्तियों में अपना भाग्य आजमाया। पटवारी, एलडीसी, ग्रामसेवक सहित किसी भी भर्ती परीक्षा को नहीं छोड़ा। हमेशा सफलता कुछ कदमों की दूरी पर रह जाती थी। पहली बार रोडवेज की ओर से परिचालक पदों के लिए महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान होने पर हेमी ने इसके लिए आवेदन किया और चयनित हो गई।


महिलाओं के लिए कोई काम कठिन नहीं

आधी दुनिया आज प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है। बकौल हेमी चौधरी महिला के लिए दुनिया का कोई भी काम कठिन नहीं है। अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर वह असंभव को भी संभव कर सकती है। हेमी ने बताया कि पीएचईडी में कार्यरत अपने पिता मोतीराम, बड़ी बहन रामू चौधरी (ग्रामसेवक) ने सफलता के लिए प्रेरित किया।

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