गुरुवार, 4 जुलाई 2013

पचपदरा में प्रस्तावित रिफाइनरी रहने को ठौर नहीं,करोड़ों के मालिक



रहने को ठौर नहीं,करोड़ों के मालिक
जयपुर। मिलिए ओबाराम से...। इनकी दिहाड़ी मजदूर की जिन्दगी और तंगहाली पर मत जाइए,दरअसल ये एचपीसीएल की बाड़मेर जिले के पचपदरा में प्रस्तावित रिफाइनरी के निकट करोड़ों की जमीन के मालिक हैं। ये अलग बात है कि अपनी 140 बीघा जमीन के बारे में न तो ओबाराम कुछ जानते हैं और न ही कभी इस जमीन की खरीद-फरोख्त से हाथ बदलने वाले करोड़ों रूपयों में से एक फूटी कौड़ी भी उनकी जेब में जाएगी।


ये सच्चाई सिर्फ ओबाराम की ही नहीं,पचपदरा उप पंजीयन कार्यालय का रिकॉर्ड बताता है कि 2000 बीघा से ज्यादा जमीन दलित वर्ग के लोगों ने खरीदी। इन कागजी मालिकों को हमने ढूंढा, जब ये "करोड़पति" मिले तो पता चला कि उन्होंने न कभी पचपदरा की जमीन देखी और न उस पर उगने वाली रूपयों की फसल। 

और भी हैं लोग

अजिया, निवासी बागरा, बागुण्डी गांव में 55 बीघा जमीन
सूरजाराम, निवासी राजौद, बागुण्डी एवं खेड़ में 185 बीघा जमीन
पुसाराम, राजौद, नागौर, बागुण्डी में140 बीघा
किसनाराम, राजौद, बागुणडी में 30 बीघा
निमाजी, निवासी सिमरखिया, बाड़मेर पाटौदी एवं नवोड़ा बेरा गांव में 150 बीघा
फूलाराम, निवासी बागरा, कलावा में 30 बीघा
करनाराम, निवासी बागरा, खेड़ में 40 बीघा
ऎलीदेवी, निवासी लोणेरा, पाली, खेड़ गांव में 54 बीघा
बनवारी, निवासी खोरा, अलवर, खेड़ में 30 बीघा
तेजसिंह, निवासी गुलजार बाग, भरतपुर, खेड़ में 40 बीघा
कांतिलाल, निवासी बागरा, खेड़ एवं बागुण्डी में 60 बीघा

ये है जमीनों की कीमत

(दर रूपए प्रति बीघा में)

गांव डीएलसी बाजार कीमत (लाख में)
खेड़,बागुण्डी 1-3 लाख 15-17
कलावा 91 हजार 10-12
साजियाली 25 हजार 7-8
मेवा नगर 4.5 लाख 12-17
नेवाई 80 हजार 15-20



बाबूलाल पुत्र मकना मीणा

गांव :धनला,जिला पाली

हैसियत : गांव में आठ बीघा जमीन। खेती व मजदूरी करते हैं। एक बेटा दिहाड़ी मजदूर, दूसरा सहकारी समिति में अस्थायी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी।

रिफाइनरी के पास जमीन : खेड़ गांव में 54 बीघा।

मनैजर साब न ही पतो

संवाददाता : खेड़ गांव की जमीन खरीदने आया हूं।

बाबूलाल : साब, मैं म्हरा गांव रा मनैजर साब र हाथै पचपदरा ग्यो, बा न ही पतो जमीन कुण
री है।

बाबूलाल पुत्र आसाराम भील

गांव: बागरा, जिला जालौर।

हैसियत: गांव में दो बीघा जमीन। दिहाड़ी मजदूर है। परिवार गांव से बाहर खेत में एक झोंपड़ी में रहता है।

रिफाइनरी के पास जमीन : खेड़ और कलावा गांव में 87 बीघा जमीन।

म्हारै तो नाम री है

संवाददाता : पचपदरा के पास खेड़ और कलावा में आपकी जमीन है, बेचनी है?

बाबूलाल : म्हारै तो नाम री है। साब न ही पूछो।

धुकाराम पुत्र हीरा भील

निवासी: गांव साविदर, भीनमाल, जालौर।

पेशा- गांव के ही लक्ष्मण सिंह राजपुरोेहित के बेरे (खेत) पर मजदूरी।

बापजी म्हारी तो कौनी जमी

संवाददाता : पचपदरा के खेड़ और कलावा में आपकी 78 बीघा जमीन बिकाऊ है?

धुकाराम : (कान पकड़ कर घबराते हुए) बाप जी कसी जमीं? म्हारी तो कौनी जमी।

संवाददाता : पर, कागज तो आपके नाम है।

धुकाराम : मैं गांव से बार± ही कौनी गयो।

ओबाराम पुत्र वदा मेघवाल

गांव : बागरा, जालोर।

पेशा : दिहाड़ी मजदूरी। दोनों बेटे भी मजदूर।

हैसियत : एक टूटा-फूटा कमरा और एक कच्चा झोंपड़ा। गांव में दस बीघा जमीन। खेती केवल बरसाती।

कठे हैं म्हारी जमी

संवाददाता : क्या आपकी 140 बीघा जमीन बेचनी है?

ओबाराम : कठे हैं म्हारी जमी।

संवाददाता : बागुण्डी और खेड़ गांव में है ना।

ओबाराम : साब, म्हारी तो जमी खरीदबा की औकात ही कौनी।

क्यों हो रहा ये खेल

रिफाइनरी के आस-पास काफी जमीन दलितों की है,जो दलित वर्ग के लोग ही खरीद सकते हैं। भूमाफियाओं ने कानून से बचने के लिए ये गली निकाली है। मजदूरी,खेती या ऎसे ही छोटे-मोटे काम करने वाले गरीबों के नाम का इस्तेमाल कर जमीन खरीद ली जाती है।

ये है हकीकत

पंजीयन कार्यालय में जमीन के विक्रेता को आना जरूरी होता है। क्रेता के मौजूद रहने का कोई स्पष्ट नियम नहीं है। इसका फायदा उठाया जाता है। जमीन जिनके नाम पर खरीदी जाती है, उन्हें सौदे का पता ही नहीं होता, सिर्फ हस्ताक्षर, फोटो का इस्तेमाल होता है।

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