सोमवार, 22 जुलाई 2013

पैरालंपिक में चूरू के देवेंद्र ने रचा इतिहास

पैरालंपिक में चूरू के देवेंद्र ने रचा इतिहास

नई दिल्ली। तमाम मुसीबतों से पार पाते हुए देवेंद्र झाझरिया ने देश के लिए पैरालंपिक विश्व चैम्पियनशिप का पहला स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। राजस्थान के चुरू जिले के निवासी देवेंद्र ने फ्रांस के ल्योन में चल रहे विश्व पैरालंपिक चैम्पियनशिप में भाला फेंक के एफ-47 वर्ग में स्वर्ण पदक हासिल कर लिया है।

32 वर्षीय देवेंद्र ने रविवार को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 57.04 मीटर दूर भाला फेंककर स्वर्ण पदक हासिल किया। एक दुर्घटना के कारण देवेंद्र का बांया हाथ काटना पड़ा था। भारतीय रेलवे में समूह घ के कर्मचारी देवेंद्र को पैरालंपिक में ईरान के मीरशेकरी अब्दुलरसूल से काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा। अब्दुलरसूल ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 52.62 मीटर दूर भाला फेंककर रजत पदक हासिल किया। मिस्त्र के इस्माइल महमूद (50.22 मीटर) को कांस्य पदक मिला।

देवेंद्र के शानदार प्रदर्शन से प्रसन्न भारतीय पैरालंपिक समिति (पीसीआई) के अध्यक्ष सुल्तान अहमद ने देवेंद्र को पांच लाख रूपये पुरस्कार स्वरूप देने की घोषणा की है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद अहमद ने कहा कि मैं मानता हूं कि देवेंद्र द्वारा स्वर्ण पदक जीतने से देश में पैरालंपिक खिलाडियों का हौसला बढ़ेगा। यहां देश में हमारे पास भरपूर मात्रा में प्रतिभा मौजूद है, तथा हमें उनका समर्थन करना होगा। खिलाडियों को प्रशिक्षण के लिए प्रदान की गई सहायता के लिए मैं खेल मंत्रालय और भारतीय खेल संघ (एसएआई) का आभारी हूं।

देवेंद्र के नाम इसके अलावा एफ-46 वर्ग में एथेंस पैरालंपिक-2004 में 62.15 मीटर भाला फेंकने का विश्व रिकॉर्ड भी है। देवेंद्र ने कहा कि खेल ऎसी चीज है, जिसमें पूरा जीवन कुछ घंटों में सिमट आता है, जहां एक या दो एकड़ के मैदान पर पूरे जीवन के मनोभावों को महसूस किया जा सकता है। भाला फेंक में द्रोणाचार्य सम्मान से सम्मानित कोच रिपुदमन सिंह औलक की निगाह देवेंद्र पर 1997 में पड़ी।

रिपुदमन सिंह ने देवेंद्र को बेहतर प्रशिक्षण सुविधाओं के लिए नजदीकी गांव कसाब ले गए। इसके बाद देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्द ही पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान में प्रशिक्षण लेने लगे। देवेंद्र ने कहा कि खेल किसी रंगमंच की तरह है, जहां पापी, संत हो सकता है तथा कोई सामान्य व्यक्ति हीरो भी बन सकता है।

देवेंद्र ने वर्ष भर अभ्यास करने की इजाजत देने के लिए भारतीय रेलवे का आभार व्यक्त किया। दूसरी तरफ उन्होंने व्यापारिक जगत की उदासीनता के लिए अपना गुस्सा भी प्रकट किया। उन्होंने कहा कि मैंने तीन-चार बार उनसे अपना प्रायोजक बनने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसलिए मैंने उनसे संपर्क करना छोड़ दिया। मैं समझता हूं कि केंद्र या राज्य सरकारों की अपेक्षा निजी क्षेत्र के पास खेलों में लगाने के लिए कहीं अधिक पैसा और संसाधन हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब हम उनसे संपर्क करते हैं तो वे मुश्किल से ही राजी होते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें