शनिवार, 13 जुलाई 2013

थार में उपजा अरब का खजूर

थार में उपजा अरब का खजूर

जोधपुर। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद थार के धोरों में अरबी खजूर के फल तैयार हो चुके हैं। इसकी पौध संयुक्त अरब अमीरात से लाई गई थी। अब करीब ग्यारह सौ पेड़ों पर लगे फल पक गए हैं। जुलाई के अंत तक पहली बार यह फसल बाजार में आएगी। कृषि विभाग के अधिकारी भी पैदावार को देखकर उत्साहित हैं, लेकिन मानसून में फसल को नुकसान की भी आशंका बनी हुई है।

इस लिहाज से तत्काल फ ल को बाजार में लाने की तैयारी चल रही है। दरअसल कृषि विभाग ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान योजना के तहत जैसलमेर के सगरा-भोजका में यह पेड़ लगाए। वर्ष 2009 में करीब 100 हेक्टेयर में 15 हजार 381 पौधे लगाए गए। इनमें से करीब ग्यारह सौ पौधे ऎसे हैं जिन पर पूरी तरह से फल पक कर तैयार हैं। अनुमान के मुताबिक प्रत्येक पेड़ पर लगभग पचास किलो खजूर लगा है, यानि करीब 550 क्विंटल। रमजान के महीने में इसकी खपत तेजी से हो सकती है।

गुजरात के खजूर से मुकाबला
जोधपुर सहित मारवाड़ में खजूर सबसे ज्यादा गुजरात से आता है। इसके अलावा मुंबई, राजकोट, पाकिस्तान, मदीना व अन्य अरब देशों से भी खजूर मंगाया जाता है। कृषि अधिकारियों का कहना है कि राजस्थान में तैयार खजूर की वैरायटी अरब देशों की तरह ही है। उनका स्वाद भी अच्छा है। कीमत भी कम होगी। अच्छी बात ये है कि थार का खजूर आपकों 40 रूपए किलो तक मिल सकेगा।

एक पेड़ से 70 साल तक कमाई
कृषि अधिकारियों के अनुसार जैसलमेर में लगाए गए एक पौधे पर वर्तमान में पचास किलो फल का होने का अनुमान है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ एक पौधा 250 किलो तक फल दे सकता है। यही नहीं एक पौधा करीब 70 साल तक उपज देने में सक्षम है। निजी तौर पर किसान यह फसल उगा सकते हैं। क्योंकि यह आर्थिक संबल प्रदान करने वाली फसल है। जैसलमेर, जोधपुर, नागौर, बाड़मेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर व चूरू में अगर किसान खजूर की खेती करना चाहें तो उन्हें पौधे लाने पर सरकार सब्सिडी देती है।

खजूर की वैरायटी व खासियत
यहां पर बरही, सघाई, जायली, खलास, खुनैशी व मेडजूल वैरायटी का खजूर लगाया गया है। यह पीला और हल्का लाल रंग लिए होता है। खाने में भी ये काफी स्वादिष्ट होते हैं।

सरकार देती है सब्सिडी
संयुक्त अरब अमीरात से पांच वैरायटी यहां लगाई गई थी। खजूर तैयार है और जल्द ही लोगों को खाने को मिलेगा। पौधों पर सरकार नब्बे प्रतिशत तक सब्सिडी देती है।
-वीरेन्द्रसिंह सोलंकी, उपनिदेशक होर्टीकल्चर, जोधपुर

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