नई दिल्ली।। किडनी में स्टोन होना अब आम बीमारी है। छोटे बच्चों से लेकर युवाओं तक में यह बीमारी देखी जा रही है। लेकिन, गर्मी के दिनों में इसका अटैक बढ़ जाता है। अन्य कारणों के अलावा डिहाइड्रेशन की वजह से भी किडनी में स्टोन होने की संभावना बढ़ जाती है। गर्मी के दिनों में पसीना निकलने की वजह से शरीर में पानी की मात्रा कम होने लगती है। ऊपर से अगर लोग पानी कम पीते हैं, तो किडनी में स्टोन बनने की संभावना बढ़ जाती है। यूरोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि गर्मी के दिनों में किडनी स्टोन के मामले 40 पर्सेंट तक बढ़ जाते हैं।
आरजी स्टोन यूरोलॉजी एंड लेप्रोस्कोपी अस्पताल के चीफ यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर पंकज वाधवा का कहना है कि 25 से 45 वर्ष के बीच की आयु के ज्यादा मरीज देखे जाते हैं। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इसकी समस्या ज्यादा होती है। 25 पर्सेंट मरीजों की फैमिली हिस्ट्री होती है।
गर्म इलाके में ज्यादा होता है स्टोन
यूरोलॉजिस्ट डॉ. मनीष सिंगला का कहना है कि जो लोग गर्म वातावरण में काम करते हैं, उनमें किडनी का स्टोन होने की संभावना सबसे अधिक होती है। तापमान में 5 से 7 डिग्री के परिवर्तन से ही किडनी स्टोन के 30 पर्सेंट मामले बढ़ जाते हैं। भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे- दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र में किडनी के स्टोन के मामले अधिक देखे जाते हैं। इन इलाकों को 'स्टोन बेल्ट' भी कहा जाता है।
स्टोन यूरिनरी टै्रक के किसी भी हिस्से में हो सकता है, लेकिन ज्यादातर यह किडनी या यूरेटर में पाया जाता है। दरअसल स्टोन यूरिन में घुले हुए रासायनिक तत्वों के क्रिस्टल होते हैं। यह दाने के आकार के भी हो सकते हैं या फिर एक नींबू के आकार के। यूरेटर का स्टोन आमतौर से कैल्शियम, यूरिक एसिड की वजह से होते हैं, लेकिन 90 से 95 पर्सेंट कैल्शियम ऑक्ज्लेट की वजह से बनते हैं। किडनी में स्टोन के कोई लक्षण नहीं होते, जब तक कि वह यूरिनरी ट्रैक में रुकावट पैदा न कर दे। जब इसमें रुकावट होती है तो यूरिनरी ट्रैक फैल जाती है और खिंचाव के कारण मांसपेशियों में ऐंठन शुरू होने लगती है। इस वजह से पेट के निचले हिस्से और किडनी में तेज दर्द होने लगता है।
लक्षण
- यूरिन में ब्लड आना, यूरिन बार-बार आना या इसमें दुर्गंध आना
- बुखार, कंपकंपी, उल्टी आना
बचाव
गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीएं। पानी की यह मात्रा एक साथ पीनेके बजाए थोड़े-थोड़ुे समय पर पीएं। कम से कम हर घंटे एक ग्लास पानी पीना चाहिए। पानी के साथ भरपूरमात्रा में तरल पदार्थ ले सकते हैं। लेकिन प्रोटीन, सोडियम, फॉस्फोरस या कैफीन के इस्तेमाल से बचें।
इनसे रहें सतर्क
डॉक्टर के अनुसार कुछ दवाएं भी किडनी के स्टोन की गंभीरता को बढ़ा सकती हैं। आइबूप्रोफेन, मोटरिन औरअलिएवे जैसी दवा के प्रयोग से बचना चाहिए। बियर से किडनी के स्टोन घुल जाते हैं, यह एक गलत धारणा है,बल्कि सच तो यह है कि बियर ऑक्ज्लेट और यूरिक एसिड का बड़ा सोर्स है। इससे किडनी की समस्या बढ़ सकतीहै।
ट्रीटमेंट
किडनी के स्टोन का इलाज उसके आकार, उसके बनने के स्थान, प्रकृति और मरीज की हालत पर निर्भर करता है।इसका इलाज पारंपरिक विधि से या सर्जरी के द्वारा किया जाता है। छोटे आकार का स्टोन जिसका साइज 1.5सेमी से कम होता है, को लिथोट्रिप्टर के जरिए शरीर के बाहर से ही संवेदी तरंगों (शॉक वेव) के झटके से तोड़ाजा सकता है। इस विधि को एक्स्ट्राकोरपोरेअल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी कहा जाता है। इस तरीके से तोड़े गए स्टोनके छोटे-छोटे टुकड़े अगले कुछ दिनों में यूरिन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन 1.5 सेमी से बड़ेसाइज के स्टोन के लिए पर्कयुटेनीयस नेफ्रोलिथोट्रामी विधि का प्रयोग किया जाता है। यह एक की-होल सर्जरी है,जिसमें एक टनल बनाकर स्टोन को बाहर निकाला जाता है। लेप्रोस्टोपिक विधि का प्रयोग उन मामलों में कियाजाता है जहां अन्य तरीके सफल नहीं हो सकते।
- यूरिन में ब्लड आना, यूरिन बार-बार आना या इसमें दुर्गंध आना
- बुखार, कंपकंपी, उल्टी आना
बचाव
गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीएं। पानी की यह मात्रा एक साथ पीनेके बजाए थोड़े-थोड़ुे समय पर पीएं। कम से कम हर घंटे एक ग्लास पानी पीना चाहिए। पानी के साथ भरपूरमात्रा में तरल पदार्थ ले सकते हैं। लेकिन प्रोटीन, सोडियम, फॉस्फोरस या कैफीन के इस्तेमाल से बचें।
इनसे रहें सतर्क
डॉक्टर के अनुसार कुछ दवाएं भी किडनी के स्टोन की गंभीरता को बढ़ा सकती हैं। आइबूप्रोफेन, मोटरिन औरअलिएवे जैसी दवा के प्रयोग से बचना चाहिए। बियर से किडनी के स्टोन घुल जाते हैं, यह एक गलत धारणा है,बल्कि सच तो यह है कि बियर ऑक्ज्लेट और यूरिक एसिड का बड़ा सोर्स है। इससे किडनी की समस्या बढ़ सकतीहै।
ट्रीटमेंट
किडनी के स्टोन का इलाज उसके आकार, उसके बनने के स्थान, प्रकृति और मरीज की हालत पर निर्भर करता है।इसका इलाज पारंपरिक विधि से या सर्जरी के द्वारा किया जाता है। छोटे आकार का स्टोन जिसका साइज 1.5सेमी से कम होता है, को लिथोट्रिप्टर के जरिए शरीर के बाहर से ही संवेदी तरंगों (शॉक वेव) के झटके से तोड़ाजा सकता है। इस विधि को एक्स्ट्राकोरपोरेअल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी कहा जाता है। इस तरीके से तोड़े गए स्टोनके छोटे-छोटे टुकड़े अगले कुछ दिनों में यूरिन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन 1.5 सेमी से बड़ेसाइज के स्टोन के लिए पर्कयुटेनीयस नेफ्रोलिथोट्रामी विधि का प्रयोग किया जाता है। यह एक की-होल सर्जरी है,जिसमें एक टनल बनाकर स्टोन को बाहर निकाला जाता है। लेप्रोस्टोपिक विधि का प्रयोग उन मामलों में कियाजाता है जहां अन्य तरीके सफल नहीं हो सकते।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें