कोच्चि. मुस्लिम शादी को धर्म के दायरे से बाहर लाकर केरल हाईकोर्ट ने ऐसी शादियों को सिविल कॉन्ट्रैक्ट यानी समझौता माना है जिसमें शारीरिक संबंध को कानूनी तौर पर मान्यता दी जाती है। इसी के साथ कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसी भी महिला को उसके वैवाहिक हक से लंबे समय तक अलग रखना 'क्रूरता' है। इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए विवादित साहित्यकार तस्लीमा नसरीन ट्वीट किया, 'सेक्स नहीं तो शादी नहीं।'
केरल हाईकोर्ट के दो जजों-पीसी कुरियाकोस और पीडी राजन की बेंच ने संजन एस की याचिका को खारिज कर दिया। अलपुजा के संजन एस ने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने संजन एस की पत्नी को तलाक लेने की मंजूरी दी थी। इस आदेश का आधार यह था कि संजन एस की पत्नी ने अपने पति पर आरोप लगाया था कि उसे तीन साल से ज्यादा समय तक सेक्स से वंचित रखा गया। जस्टिस राजन ने हाईकोर्ट के फैसले में कहा, 'मुस्लिम समाज में विवाह एक समझौता है। मुस्लिम विवाह को सिविल कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है जिसमें शारीरिक संबंध और बच्चे पैदा करने को कानूनी मान्यता दी जाती है।'
फैमिली कोर्ट के तलाक को मंजूरी दिए जाने के फैसले को बरकरार रखते हुए केरल हाईकोर्ट ने कहा, 'हमारी राय है कि पत्नी की इच्छा के बावजूद अगर पति ने अपनी पत्नी के साथ सेक्स करने से इनकार करता है तो यह क्रूरता का आधार है।' डिजाल्युशन मुस्लिम मैरेज एक्ट 1939 में तलाक के आधार का जिक्र है। इस एक्ट के सेक्शन 2 के मुताबिक अगर तीन साल तक पति किसी उचित कारण के अभाव में वैवाहिक जिम्मेदारियों को पूरी नहीं करता है तो यह तलाक का आधार बन सकता है। केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस सेक्शन का जिक्र किया है।
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