रविवार, 30 जून 2013
लक्ष्मीनाथ मंदिर ...जन जन का मंदिर
लक्ष्मीनाथ मंदिर ...जन जन का मंदिर
जैसलमेर नाथ सम्प्रदाय के प्रति अपने कृतज्ञता के भाव के कारण यहाँ के शासक राजतिलक के समय योगी द्वारा प्रदत्त भगवा वस्र पहनकर उनके मठाधीश के हाथ से मुकुट धारण करते रहे हैं। देवराज के पौत्र विरजराज लांझा (११ वीं सदी) के समय के कुछ शिलालेख प्राप्त होते हैं, जो किन्ही मंदिर के स्थापना से संबंधित है, शिलालेख संस्कृत में हैं तथा श्री शिव, श्री मतछण देव्य आदि शब्द से युक्त होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि ये शिव, विष्णु मंदिर प्रचुरता में मिलते हैं, ये शक्ति देवी दुर्गा के विभिन्न रुपों में हैं, जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग प्रत्येक अवसर पर जैसे विवाह व पुत्त जन्म आदि के अवसर पर सर्वप्रथम पूजते हैं।
जैसलमेर में सनातन धर्म का प्राचीन मंदिर दुर्ग पर स्थित आदि नारायण का है, जो टीकमराय के मंदिर के नाम से विख्यात है, यहाँ विष्णु की अष्ठ धातु की प्रतिमा स्थापित है। रावल लक्ष्मण के समय (१३९६ से १४३७ ई.) यहाँ सन् १४३७ ई. में एक विशाल मंदिर स्थापित किया गया तथा इसमें विष्णु की प्रतिमा, लक्ष्मीनाथ के रुप में स्थापित की गई। वस्तुतः यह लक्ष्मी विष्णु दोनों की युगल प्रतिमा है। मंदिर के गर्भ गृह के गोपुर पर दशावपार के सभी देवी देवताओं का बहुत ही सुंदर शिलालेखन हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में रावल लक्ष्मण के अतिरिक्त जैन पंचायत पुष्करणा ब्राहम्मण समाज, महेश्वरी समाज, भाटिया समाजश् खन्नी, सुनार, दरजी, हजूरी, राजपूत आदि सातों जातों द्वारा निर्माण में सहयोग दिये जाने से यह जन-जन का मंदिर कहलाता है व सभी लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ प्रतिदिन दर्शन के लिए जाते हैं। रावल लक्ष्मण ने जैसलमेर राज्य की संपूर्ण सत्ता भगवान लक्ष्मीनाथ के नाम पर स्वयं उसके दीवन के रुप में कार्य करने की घोषणा की थी।
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