बुधवार, 5 जून 2013

विश्व पर्यावरण दिवश पर कई कार्यक्रम आयोजित


कुदरत को सहेजना आज की जरूरत


- विश्व पर्यावरण दिवश पर कई कार्यक्रम आयोजित 

- चित्र प्रदर्शनी से दी पर्यावरण बचाने की सीख

बाड़मेर , "मानव की भौतिक तरक्की के साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की गति बढ़ती जा रही है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के हम जंगलों की सफाई करते जा रहे हैं।पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अहम भूमिका निभाते पेड़ों की संख्या में दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है। सड़क और घर बनाने के लिए धड़ाधड़ पेडों पर कुल्हाड़ी चल रही है। जंगल कटते जा रहे हैं, जल के स्रोत नष्ट हो रहे हैं, वनों के लिए आवश्यक वन्य प्राणी भीविलीन होते जा रहे हैं। औद्योगीकरण ने खेत-खलिहान और वन-प्रान्तर निगल लिए। वन्य जीवोंका आशियाना छिन गया। कल-कारखाने धुआं उगल रहे हैं और प्राणवायु को दूषित कर रहे हैं। यह सब ख़तरे की घंटी है।" यह कहना है चोहटन प्रधान शमा खान का .चोहटन प्रधान ने यह बात स्थानीय स्नातोकोतर महाविधालय में विश्व पर्यावरण दिवश के मोके पर आयोजित विचार संगोष्ठी और चित्र प्रदर्शनी में कही .सीसीडीयू के आईईसी कंसल्टेंट अशोक सिंह राजपुरोहित ने बताया की विश्व पर्यावरण दिवश स्थानीय स्थानीय स्नातोकोतर महाविधालय में विचार संगोष्ठी और चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया . इस विचार संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कोलेज प्राचार्य एम् आर गढ़विर ने कहा की भारत की सत्तर प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। अब वह भी शहरों में पलायन हेतु आतुर है जबकि शहरी जीवन नारकीय हो चला है। वहां हरियाली का नामोनिशान नही है। उनकी जगह बहुमंजिली इमारतों के जंगल पसरते जा रहे हैं। शहरी घरों मे कुएं नहीं होते, पानी के लिए ब़ाहरी स्रोत पर निर्भर रहना पड़ता है। इस मोके पर प्रोफ़ेसर आदर्शकिशोर ने अपने विचार रखते हुए कहा कि गांवों से पलायन करने वालों की झुग्गियां शहरों की समस्याएं बढ़ाती हैं। यदि सरकार गांवों कोसुविधा-संपन्न बनाने की ओर ध्यान दे तो वहां से लोगों का पलायन रूक सकता है। वहां अच्छीसड़कें, आवागमन के साधन, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल व अन्य आवश्यक सुविधाएं सुलभ हों तथाशासन की कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं का लाभ आमजन को मिलने का पूरा प्रबंध हो,तो लोग पलायन क्यों करेंगे ? गांवों में कृषि कार्य अचछे से हो, कुएं-तालाब, बावड़ियों की सफाईयथा-समय हो, गंदगी से बचाव के उपाय किये जाएं। संक्षेप में यह कि वहाँ ग्रामीण विकासयोजनाओं का ईमानदारी-पूर्वक संचालन हो तो ग्रामों का स्वरूप निश्चय ही बदलेगा और वहाँ के प्रयावरण से प्रभावित होकर शहर से जाने वाले नौकरी-पेशा भी वहां रहने को आतुर होंगे। इस मोके पर छात्र संघ अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर ने कहा की धरती का तापमान निरंतर बढ़ रहा है इसलिए पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं।जंगलों से शेर, चीते, बाघ आदि गायब हो चले हैं। भारत में 50 करोड़ से भी अधिक जानवर हैंजिनमें से पांच करोड़ प्रति वर्ष मर जाते हैं और साढ़े छ: करोड़ नये जन्म लेते हैं। वन्य प्राणीप्राकृतिक संतुलन स्थापित करने में सहायक होते हैं। उनकी घटती संख्या पर्यावरण के लिएघातक है। जैसे गिद्ध जानवर की प्रजाति वन्य जीवन के लिए वरदान है पर अब 90 प्रतिशतगिद्ध मर चुके हैं इसीलिए देश के विभिन्न भागों में सड़े हुए जानवर दिख जाते हैं। जबकिऔसतन बीस मिनट में ही गिद्धो का झुंड एक बड़े मृत जानवर को खा जाता था।पर्यावरण की दृष्टि से वन्य प्राणियों की रक्षा अनिवार्य है। इसके लिए सरकार को वन-संरक्षणऔर वनों के विस्तार की योजना पर गभीरता से कार्य करना होगा। वनो से लगे हुए ग्रामवासियोंको वनीकरण के लाभ समझा कर उनकी सहायता लेनी होगी तभी हमारे जंगल नए सिरे से विकसित हो पाएंगे। इससे पहले विश्व पर्यावरण दिवश सम्बंधित विषयों पर सवाल जवाब प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसके विजेताओ को इनामो से नवाजा गया .




चित्र प्रदर्शनी रही ख़ास



स्थानीय स्नातोकोतर महाविधालय में विश्व पर्यावरण दिवश के अवशर पर सीसीडीयू के आईईसी अनुभाग द्वारा एक चित्र प्रदर्शनी का आयॉजन किया गया . जिसका उद्घाटन चोहटन प्रधान शमा खान ने किया . इस चित्र प्रदर्शनी में आम जनता को कुदरत को सहेजने और जीवन को खुशहाल बनाने के सम्बंधित चित्रों को खूबसूरती से लगया गया था . इस प्रदर्शनी में जल बचाने , जनसंख्या नियन्त्रण ,पर्यावरण जागरूकता सम्बंधित चित्रों का प्रदर्शन किया गया . इस प्रदर्शनी को देखते हुए अतिथियों ने कहा कि जिस तरह हमारा पर्यावरण प्रतिदिन प्रदूषित हो रहा है, ऐसे में जरूरी है कि हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करें. प्रतिदिन बढ़ रहे प्रदूषण के फलस्वरूप कभी चिलचिलाती गरमी तो कभी बेमौसम बरसात का सामना करना पड़ता है. ठंडे इलाके गरम होते जा रहे हैं. पहाड़ों की बर्फ पिघल रही है, जिसके चलते नदियों का पानी बढ़ता जा रहा है और मैदानी इलाकों को अपने में समा रहा है. जैसे-जैसे मानव तरक्की की ओर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे पर्यावरण को नुकासन पहुंचता जा रहा है. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों की सफाई की जा रहा है. पेड़ जो कि पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अहम भूमिका निभाते हैं वो दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं. सड़क और घर बनाने के लिए धड़ाधड़ पेडों पर कुल्हाड़ी चल रही है.

इन्होने रखे विचार-

स्थानीय स्नातोकोतर महाविधालय में विश्व पर्यावरण दिवश के अवशर पर आयोजित विचार संगोष्ठी में अतिथियों के अतिरिक्त डाक्टर हुक्म राम सुथर , डाक्टर पीडी सिघल , रोशन अली छिपा ,मोलवी मीर मोहमद , रमेश शर्मा , प्रोफ़ेसर पांचा राम चोधरी , पंकज कुमार , डाक्टर भरत चोधरी ने अपने विचार रखे . वही इस कार्यक्रम में डाक्टर अरुणा , डाक्टर भी एल सोनी , डाक्टर संतोष गढ़विर , बाबूलाल , देवाराम , अंशु परमार , लीला लखारा , जयराम मोजूद रखे कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन संपत कुमार जैन ने किया .

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