सिकंदर शैख़
ब्याज पर पैसे लेने और देने का रिवाज सदीयों पुराना है, पुराने ज़माने में महाजन , सूदखोर ये धंधा करते थे , जिसमे जरूरत मंद गरीब आदमियों को उनकी जरूरत पर पैसा उधार दिया जाता था जिस पर महाजन ब्याज लेता था , अगर ब्याज समय पर नहीं भरा जाता या रकम नहीं आती थी तो उस गरीब को परेशां किया जाता था या फिर उसके घर से बैलों की जोड़ी या फिर सोने चांदी के गहने उस रकम मय ब्याज के एवज में वसूले जाते थे , जिन लोगों को इस बारे में नहीं पता है उन्हें महबूब खान की नर्गिस अभिनीत फिल्म " मदर इंडिया " देखनी चाहिए, तो उन्हें इस धंधे की अमानवीयता , भयावहता साफ़ नज़र आ जायेगी।
ये तो बात थी उस ज़माने की, मगर आज ये धंधा पूरे जोशो खरोश से वापिस पनप गया है, और इस वजह से कई गरीब ख़ुदकुशी कर अपनी इहलीला समाप्त कर चुके हैं जिसका ताज़ा उदहारण इस 9 जून को बाड़मेर में एक युवक द्वारा की गयी ख़ुदकुशी है, जिसमे उसके पिता ने साफ़ इलज़ाम लगाये हैं की उसके बेटे ने ब्याज पर पैसे लिए थे मगर समय पर नहीं चुकाने और ब्याज दर ज्यादा होने से पैसा बढ़ जाने और उन लोगों द्वारा पैसा भरने के लिए बार बार धमकाने से उसने डर के मारे आत्महत्या कर ली।
सवाल ये है की हमें जरूरत क्या है ब्याज पर पैसा लेने की?
हाँ ये सही है की गरीब आदमी जिसका कोई बैंक अकाउंट नहीं होता,जो सुबह भूखा उठता है दिन भर मजदूरी कर कमाता है और जो मिलता है उसी से दिन भर का भोजन जुटा पाता है, अब अगर उसके घर में कोई विवाह या ऐसा ही कोई आयोजन हो तो उसको पैसे की आवश्यकता रहती है जिसके लिए उसे कही से भी बैंक लोन तो उपलब्ध हो नहीं पाता है , तब वो इन जैसे लोगों के चंगुल में फंसता है और 1 0 से 1 5 की (मिती ) ब्याज दर पर पैसा ले आता है। जो पैसा दे रहा है उसको भी ये पता है की ये इसको नहीं चुका पायेगा मगर फिर भी वो उसको पैसा देता है और जब लेने की बारी आती है तो वो गरीब इसको चुका नहीं पाता है और ये माफिया या तो उसके घर पर कब्ज़ा करेंगे या फिर उसके गहने छीन लेंगे। अब जो बेचारा अपनी इज्ज़त की खातीर इनको दे दे तो ठीक और जो नहीं देता है उसे इतना परेशां किया जाता है की आखिर में अपनी जान से हाथ धो बैठता है।
पुलिस क्यों नहीं करती है कार्यवाही-
ऐसा नहीं है की आज के ये ब्याज माफिया पुलिस की नज़र में नहीं है, इन सबकी की ख़बरें पुलिस के पास है मगर सूत्र कहते हैं की ऐसे लोगों की रात इन पुलिस वालों के साथ ही रंगीन होती है जहां पर खाना-पीना सब होता है तो अब वो इन माफियों पर हाथ क्यों डाले ? जरूरत है तो पुलिस को इन लोगों पर सीधी कार्यवाही करने की ताकि कोई और गरीब इनके लालच में ना आये तथा बाद में अपनी जान से हाथ न धो बैठे।
बदलती जीवन शैली -
आज का ये दौर पैसे का दौर है बाड़मेर जैसलमेर जैसे पिछड़े इलाके अब पिछड़े नहीं रहे, कई निजी कंपनियों के यहाँ आने से लोगों को रोजगारी भी मिली है और पैसा भी बाधा है , अकेले बाड़मेर की ही बात करें तो बाड़मेर ने पैसे के मामले में बहुत तरक्की कर ली है , आज वहां मर्सडीज बेंज, पोर्श , हार्डले-डेविडसन, जैसी गाड़ियां दिखना आम बात हो गयी है , इसकी वजह है की लोगों ने भूमि आवाप्ति से और निजी कम्पनियो से इतना पैसा कम लिया की अब शानो-शौकत से ज़िन्दगी बीता रहे हैं , मगर कुछ लोग ऐसे भी है जिनको ये सब नसीब नहीं है , तो ऐसे युवा इस लाइफस्टाइल को जीने के लिए अपने खर्चे बढ़ा रहे हैं। मगर घर की स्थिति उन्हें इसकी इजाज़त नहीं देती है , जिसके लिए वो इअसे ब्याज माफियों के चंगुल में फंसते है जो हर गली मोहल्ले में मिल जायेंगे जो आपको महंगे ब्याज पर सहज रकम उपलब्ध करवा देंगे , भटके युवा पैसा ले तो लेते हैं मगर चुकाने की बात आती है तो वो फंस जाते हैं, ब्याज मूल से भी ऊपर चढ़ जाता है, फिर दौर शुरू होता है घर से गहने चुराने का , चोरी करने का, क्योंकि और कोई रास्ता तो होता नहीं है , और ये ब्याज माफिया उसके धमकाने से लेकर मारपीट तक करते हैं जिससे तंग आकर या तो ये युवा चोरियां कर के इनके पैसे चुकाता है या फिर ख़ुदकुशी कर ब्याज के एवज में अपनी जान दे देता है ...
कैसे रुकेंगे ऐसे अवैध काम-
ये सवाल में आप सबके लिए छोड़ जाता ,हूँ आप ही इसका हल निकालें और समाज में तेज़ी से फैल रही इस बिमारी का इलाज़ बताएं ...
ब्याज पर पैसे लेने और देने का रिवाज सदीयों पुराना है, पुराने ज़माने में महाजन , सूदखोर ये धंधा करते थे , जिसमे जरूरत मंद गरीब आदमियों को उनकी जरूरत पर पैसा उधार दिया जाता था जिस पर महाजन ब्याज लेता था , अगर ब्याज समय पर नहीं भरा जाता या रकम नहीं आती थी तो उस गरीब को परेशां किया जाता था या फिर उसके घर से बैलों की जोड़ी या फिर सोने चांदी के गहने उस रकम मय ब्याज के एवज में वसूले जाते थे , जिन लोगों को इस बारे में नहीं पता है उन्हें महबूब खान की नर्गिस अभिनीत फिल्म " मदर इंडिया " देखनी चाहिए, तो उन्हें इस धंधे की अमानवीयता , भयावहता साफ़ नज़र आ जायेगी।
ये तो बात थी उस ज़माने की, मगर आज ये धंधा पूरे जोशो खरोश से वापिस पनप गया है, और इस वजह से कई गरीब ख़ुदकुशी कर अपनी इहलीला समाप्त कर चुके हैं जिसका ताज़ा उदहारण इस 9 जून को बाड़मेर में एक युवक द्वारा की गयी ख़ुदकुशी है, जिसमे उसके पिता ने साफ़ इलज़ाम लगाये हैं की उसके बेटे ने ब्याज पर पैसे लिए थे मगर समय पर नहीं चुकाने और ब्याज दर ज्यादा होने से पैसा बढ़ जाने और उन लोगों द्वारा पैसा भरने के लिए बार बार धमकाने से उसने डर के मारे आत्महत्या कर ली।
सवाल ये है की हमें जरूरत क्या है ब्याज पर पैसा लेने की?
हाँ ये सही है की गरीब आदमी जिसका कोई बैंक अकाउंट नहीं होता,जो सुबह भूखा उठता है दिन भर मजदूरी कर कमाता है और जो मिलता है उसी से दिन भर का भोजन जुटा पाता है, अब अगर उसके घर में कोई विवाह या ऐसा ही कोई आयोजन हो तो उसको पैसे की आवश्यकता रहती है जिसके लिए उसे कही से भी बैंक लोन तो उपलब्ध हो नहीं पाता है , तब वो इन जैसे लोगों के चंगुल में फंसता है और 1 0 से 1 5 की (मिती ) ब्याज दर पर पैसा ले आता है। जो पैसा दे रहा है उसको भी ये पता है की ये इसको नहीं चुका पायेगा मगर फिर भी वो उसको पैसा देता है और जब लेने की बारी आती है तो वो गरीब इसको चुका नहीं पाता है और ये माफिया या तो उसके घर पर कब्ज़ा करेंगे या फिर उसके गहने छीन लेंगे। अब जो बेचारा अपनी इज्ज़त की खातीर इनको दे दे तो ठीक और जो नहीं देता है उसे इतना परेशां किया जाता है की आखिर में अपनी जान से हाथ धो बैठता है।
पुलिस क्यों नहीं करती है कार्यवाही-
ऐसा नहीं है की आज के ये ब्याज माफिया पुलिस की नज़र में नहीं है, इन सबकी की ख़बरें पुलिस के पास है मगर सूत्र कहते हैं की ऐसे लोगों की रात इन पुलिस वालों के साथ ही रंगीन होती है जहां पर खाना-पीना सब होता है तो अब वो इन माफियों पर हाथ क्यों डाले ? जरूरत है तो पुलिस को इन लोगों पर सीधी कार्यवाही करने की ताकि कोई और गरीब इनके लालच में ना आये तथा बाद में अपनी जान से हाथ न धो बैठे।
बदलती जीवन शैली -
आज का ये दौर पैसे का दौर है बाड़मेर जैसलमेर जैसे पिछड़े इलाके अब पिछड़े नहीं रहे, कई निजी कंपनियों के यहाँ आने से लोगों को रोजगारी भी मिली है और पैसा भी बाधा है , अकेले बाड़मेर की ही बात करें तो बाड़मेर ने पैसे के मामले में बहुत तरक्की कर ली है , आज वहां मर्सडीज बेंज, पोर्श , हार्डले-डेविडसन, जैसी गाड़ियां दिखना आम बात हो गयी है , इसकी वजह है की लोगों ने भूमि आवाप्ति से और निजी कम्पनियो से इतना पैसा कम लिया की अब शानो-शौकत से ज़िन्दगी बीता रहे हैं , मगर कुछ लोग ऐसे भी है जिनको ये सब नसीब नहीं है , तो ऐसे युवा इस लाइफस्टाइल को जीने के लिए अपने खर्चे बढ़ा रहे हैं। मगर घर की स्थिति उन्हें इसकी इजाज़त नहीं देती है , जिसके लिए वो इअसे ब्याज माफियों के चंगुल में फंसते है जो हर गली मोहल्ले में मिल जायेंगे जो आपको महंगे ब्याज पर सहज रकम उपलब्ध करवा देंगे , भटके युवा पैसा ले तो लेते हैं मगर चुकाने की बात आती है तो वो फंस जाते हैं, ब्याज मूल से भी ऊपर चढ़ जाता है, फिर दौर शुरू होता है घर से गहने चुराने का , चोरी करने का, क्योंकि और कोई रास्ता तो होता नहीं है , और ये ब्याज माफिया उसके धमकाने से लेकर मारपीट तक करते हैं जिससे तंग आकर या तो ये युवा चोरियां कर के इनके पैसे चुकाता है या फिर ख़ुदकुशी कर ब्याज के एवज में अपनी जान दे देता है ...
कैसे रुकेंगे ऐसे अवैध काम-
ये सवाल में आप सबके लिए छोड़ जाता ,हूँ आप ही इसका हल निकालें और समाज में तेज़ी से फैल रही इस बिमारी का इलाज़ बताएं ...
HD SE JYADA BYAJ VASULNE WALO PR KARYWAHI HONI CHAHIYE OR SJA B..
जवाब देंहटाएंJYADA BYAJ VASULNE WALO KO SJA HONI CHAHIYE
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