बुधवार, 26 जून 2013

ओलम्पियन मजदूरी को मजबूर



ओलम्पियन मजदूरी को मजबूर

श्रीगंगानगर। गांव की गलियों में जब उसकी साइकिल चलती है तो लगता है जैसे वह उड़ रही है। उसकी रफ्तार देख गांव वाले उसे रफ्तार का जादूगर कहते हैं।
शंघाई में हुए विशेष ओलम्पिक में भारत को गोल्ड मैडल दिलाने वाला यह रफ्तार का जादूगर है सादुलशहर के गांव लाधूवाला का राजेश वर्मा। राजेश सरकारी नौकरी न मिल पाने से निराश हो मनरेगा में मजदूरी कर रहा है। नौकरी के 10 किमी दूरी 15 मिनट में तय
विमंदित बालकों की संस्था तपोवन मनोविकास विद्यालय के छात्र राजेश ने वर्ष 2007 में शंघाई में हुए अंतरराष्ट्रीय विशेष ओलम्पिक में हिस्सा लिया। राजेश ने राष्ट्रीय स्पर्द्धा में 10 किलोमीटर दूरी 16 मिनट में पूरी की, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धा में यही दूरी 15 मिनट में पूरी कर गोल्ड मैडल जीता। शंघाई से वापसी पर घोषणाएं तो बहुत हुई पर पूरी एक भी नहीं हो पाई। तत्कालीन सरपंच ने उसे नि:शुल्क भूखंड देने की घोषणा की जो आज तक नहीं मिला।

कर्ज लेकर साइकिल खरीदी
बेटे का शौक देखकर पिता धनराज वर्मा ने बीपीएल चयनित होने के बावजूद कर्ज लेकर साइकिल खरीदी। चितौड़गढ़ में 1991 में हुई राज्य स्तरीय बहुविकलांग खेलकूद प्रतियोगिता में तीन स्वर्ण पदक जीतने के बाद तो वह लगातार सफलता हासिल करता गया।
लिए जयपुर तक चक्कर लगा चुका है, परन्तु उसे निराशा ही हाथ लगी। राजेश का कहना है कि विमंदित समझ कर उसे कोई काम नहीं देता। सरकारी नौकरी मिल जाए तो वह मां-बाप की सेवा कर पाएगा।

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