बुधवार, 8 मई 2013

पोतों की चिंता और रोटी के जुगाड़ में दादी भूली हंसी

पोतों की चिंता और रोटी के जुगाड़ में दादी भूली हंसी

सीकर। बूढ़ी आंखों में बहते आसू.....मासूम पोते को गोद में लेकर दुलारती नाथी अब हंसी भूल गई। उसे हर समय चिंता है दो बहुओं और उनके बच्चों के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की। पोलोग्राउंड में टूटे-फूटे घर में कोने में बैठी नाथी बस इतना ही कह पाती है कि 15 वर्ष पहले बड़ा बेटा काल का ग्रास बन गया। एक महीने पहले छोटे रमेश की लाश सड़क पर पड़ी मिली। रमेश की मौत हादसा या हत्या इसकी पुलिस जांच कर रही है, लेकिन नाथी के लिए बड़ी समस्या है कि रमेश के तीन बच्चों के लिए रोटी की व्यवस्था कहां से होगी। बड़े भाई के बच्चों की व्यवस्था रमेश करता था। अब तो उनका भी सहारा छिन गया है।

कौन बनेगा सहारा
रमेश के जाने के बाद परिवार के सभी लोगों के सामने आर्थिक संकट आ गया है। पत्नी मीना का रो-रोकर बुरा हाल है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को अब यहीं चिंता सता रही है कि परिवार का अब कौन सहारा बनेगा। घर पर छोटा बेटा आकर मीना से पिता के बारे में पूछता है तो कुछ कहने की बजाय उसकी आंखों से आसंू छलक पड़ते हैं। हालांकि रमेश के दो छोटे भाई भी है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर है।

राज में नहीं हुई सुनवाई
हादसे के बाद कई जगह गुहार लगा चुका परिवार आर्थिक स्थिति से टूटने के बाद इंसाफ के लिए भी भटक रहा है। रमेश की हत्या की आशंका जताकर परिजन पुलिस से जांच करने की गुहार लगाते है, लेकिन पुलिस उन्हें टकरा कर लौटा देती है। एक महीना बीत जाने के बाद भी पुलिस अभी तक कॉल डिटेल भी नहीं निकलवा पाई है। परिजन इस मामले में उद्योग मंत्री से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं।

यह था मामला
दस अप्रेल को मौत के शिकार हुए रमेश के तीन बेटे हैं। सबसे बड़ा पांच साल का विक्रम, मंझला ढाई साल का संजू व सबसे छोटा छह माह का सोनू। घर पर कमाने वाला रमेश ही एकमात्र व्यक्ति था। रमेश पर बड़े भाई के परिवार के सदस्यों का गुजारा चलाने की भी जिम्मेदारी थी।

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