गुरुवार, 2 मई 2013

बंदूक की जगह पिस्टल पहली पसंद

बंदूक की जगह पिस्टल पहली पसंद

बाड़मेर। रेगिस्तान मे तेल उत्खनन से आई आर्थिक उन्नति के बाद शौक भी परवान चढ़ने लगे हंै। लग्जरी गाडियो के साथ अब हथियार लाइसेस लेने वालों में "पिस्टल" रखने की चाह बढ़ी है। पहले हथियार के नाम पर अधिकांश लोगों के पास बारह बोर बंदूक ही थी और कुछ के पास रिवाल्वर। बीते आठ साल में बीस से ज्यादा लोगों ने रिवाल्वर और पिस्टल खरीदे हंै।

बंदूकें हजारों में
जिले में बंदूक के लाइसेंस हजारो में है। 1965 व 1971 के युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में लाइसेस जारी हुए। इसके बाद भी लगातार बंदूक के लिए लाइसेंस जारी होते रहे हैं।

कीमत डेढ़ से दस लाख तक
रिवाल्वर की कीमत डेढ़ लाख के करीब है लेकिन नए पिस्टल खरीदने वालों ने साढ़े पांच से दस लाख तक के अत्याधुनिक विदेशी पिस्टल खरीदे हैं।

उद्योगपति और नेता भी
रिवाल्वर और पिस्टल खरीदने वालों में उद्योगपति और राजनेता हैं, जिन्होंने नए लाइसेंस लिए हैं और सुरक्षा के तौर पर अत्याधुनिक पिस्टल खरीदे है।

लाइसेंस के बाद कोई भी हथियार
शस्त्र लाइसेंस जारी होने के एक साल के भीतर हथियार खरीदना जरूरी होता है। इस हथियार को लाइसेंस जारीकर्ता यानि जिला कलक्टर के यहां रजिस्टर्ड करवाना पड़ता है। जिसमें हथियार का प्रकार और उनकी अन्य जानकारी दर्ज होती है।

समृद्धि व प्रतिष्ठा वजह
समय बदला है, साथ ही आर्थिक समृद्धि आई है। इस कारण सुरक्षा व सामाजिक प्रतिष्ठा के लिहाज से महंगे हथियार खरीदे जा रहे हैं। पिस्टल की सार-संभाल आसान है।
एडवोकेट किरण मंगल

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