सोमवार, 1 अप्रैल 2013
महिलाओं और कन्याओं ने अदीत रोटे का त्योहार पारंपरिक रूप से मनाया
सूर्य देव की पूजा कर सुख समृद्धि मांगी
महिलाओं और कन्याओं ने अदीत रोटे का त्योहार पारंपरिक रूप से मनाया
जैसलमेर अदीत रोटे का त्योहार रविवार को हर्षोल्लास से मनाया गया। सूर्य भगवान को समर्पित यह त्योहार होली के बाद आने वाले पहले रविवार को मनाया जाता है। रविवार (आदित्यवार) को महिलाओं ने सूरज भगवान को चढ़ाने के लिए रोटा बनाया और पूजा-अर्चना और कथा वाचन के साथ भगवान को भोग लगाकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया। जैसलमेर में यह त्योहार परंपरागत रूप से मनाया जाता रहा है। इस त्योहार पर भाई अपनी बहिनों को मिठाई या मिठाई के लिए पैसे देते हैं। यह त्योहार मां और बेटी साथ मिलकर मनाते हैं। इस त्योहार को मनाने के पीछे सुख-समृद्धि की कामना छुपी है। रविवार को जैसलमेर में महिलाओं ने मिलकर इस त्योहार को परंपरागत रूप से मनाया। महिलाओं ने समूह में या अपनी बेटी या बहू के साथ इस त्योहार को मनाया। अदीत रोटा रविवार को ही मनाया जाता है। रविवार को स्थानीय भाषा में अदितवार भी कहते हैं। अदीत रोटा का संबंध भी रविवार से ही है।
कैसे मनाया त्योहार को
सुबह उठकर महिलाओं ने नित्य कार्यों से निवृत्त होकर रसोई की साफ-सफाई की और गेहूं के आटे को गोंद कर उसका बड़ा रोटा बनाया। इस रोटे को घी-शक्कर या दही के साथ ग्रहण करने से पूर्व भगवान भास्कर को अघ्र्य देकर उसका प्रसाद चढ़ाया । बाद में रोटा ग्रहण किया गया। इसके साथ ही त्योहार से संबंधित कथा का वाचन किया गया।
क्या है अदीत रोटे की कहानी
मां-बेटी सामूहिक रूप से अदीत रोटा मना रही थी। मां का रोटा बन चुका था और बेटी का बना नहीं था। तभी साधू आता है। बेटी मां के रोटे से कुछ हिस्सा साधू को दे देती है। मां गुस्सा होती है। बेटी अपने रोटे का कुछ भाग देना चाहती है, मगर मां कहती है ला मेरे सागी रोटे का कोर..बेटी दु:खी होकर घर से निकल जाती है। जंगल में उसे राजकुमार मिलता है और उससे ब्याह रचा लेता है। अगले साल फिर अदीत रोटा का त्योहार आता है। रानी बनी बेटी रोटा बनाती है। रोटा सोने का बन जाता है। राजकुमार इसका कारण पूछता है। बेटी कहती है, मेरे पीहर से आया है। राजकुमार कहता है मैंने तो तुझे जंगल से उठाया था, चल मुझे पीहर दिखा। रानी भगवान सूरज से प्रार्थना करती है। जंगल में बस्ती बस जाती है। राजा वहां पहुंचता है तो उसका खूब आदर सत्कार होता है। बाद में राजा लौट आता है तो बस्ती भी उठ जाती है। राजा के सैनिक शिकायत करते हैं कि वहां तो कुछ भी नहीं है। राजा सारी बात रानी से पूछता है। रानी पूरी कहानी सच-सच बता देती है। तब से अदीत रोटे से सभी लड़कियां राजकुमार जैसे वर और राजघराने जैसे घर की कामना में यह त्योहार मनाती आ रही है।
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