सोमवार, 1 अप्रैल 2013

300 मंदिरों में संरक्षित हो रहा देवताओं पर अर्पित जल



जयपुर।। राजस्थान के जयपुर में एक ज्योतिषी और सामाजिक कार्यकर्ता ने जल संरक्षण के लिए जो काम किया है, वह पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है। यहां के मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों को अर्पित किए जाने वाले जल के संरक्षण का अनूठा काम किया जा रहा है।
Mahashivratri
अपने चहेतों के बीच 'गुरुजी' के नाम से फेमस पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने पिछले 13 सालों में राजस्थान के करीब 300 मंदिरों में जल संरक्षण ढांचे का विकास किया है। समाज सेवा और ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए गौड़ को 'महाराणा मेवाड़ अवॉर्ड' सहित कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

हिंदू मंदिरों में भक्तों द्वारा अर्पित लाखों गैलन जल नालियों में बह जाता था। गौड़ ने बताया कि साल 2000 में उन्होंने अपना जलाभिषेक अभियान शुरू किया। 41 वर्षीय ज्योतिषी गौड़ ने बताया, 'मैंने गौर किया कि मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित जल पूरी तरह नालियों में बेकार चला जाता है। इसलिए मुझे इनका भूजल को रिचार्ज करने में इस्तेमाल करने की युक्ति सूझी।'इसके बाद उन्होंने मंदिरों खास कर शिवालयों में जल संग्रह करने का काम शुरू किया। जमीन में भेजने से पहले जल को कई फिल्टर चैंबरों से गुजारा जाता है। गौड़ ने कहा कि इस परियोजना के तहत मंदिरों में जन सहयोग से कई टैंक और बोरवेल का निर्माण कराया गया।
गौड़ ने कहा, 'कुछ मंदिरों में 30 फुट गहरा गड्ढा खोदने की जरूरत पड़ी ताकि मूर्तियों का जल सीधा वहां जमा हो सके। मूर्तियों पर चढ़ाए जाने वाले दूध को जमा करने के लिए पांच फुट के गड्ढे की अलग से जरूरत पड़ी।'

उन्होंने कहा, 'मुझे तब बेहद खुशी हुई जब कई वैज्ञानिक और भूजल विशेषज्ञ मेरी मदद के लिए सामने आए और 'शिक्षा समिति' नाम के एक संगठन को इस काम में आगे किया। इस संस्थान ने हिसाब लगाया कि शहर में 300 से ज्यादा मंदिर हैं जहां सावन के महीने में रोजाना कम से कम चार करोड़ 50 लाख लीटर जल भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं पर चढ़ाया जाता है।'

उन्होंने कहा कि इस बर्बादी के अलावा श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित जल और दूध का पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है।

गौड़ ने बताया, 'आम तौर पर मंदिर के नजदीक जल और दूध को बिना किसी बाधा के बहने दिया जाता है। इससे वातावरण दूषित होता है। मंदिर के चारों ओर मच्छर और मक्खियों के पलने का वातावरण तैयार हो जाता है।' जल संरक्षण के काम में आई कठिनाइयों के बारे में गौड़ ने बताया कि शुरू में इसके लिए पुजारियों को मना पाना आसान नहीं था।

उन्होंने कहा कि उनके प्रयास को कई पुजारियों ने संदेह की नजर से देखा। यहां तक कि जब उनके समर्थकों ने इस परियोजना के लिए धन जमा करना शुरू किया तब भी पुजारी आनाकानी करते रहे। लेकिन आज 300 मंदिर इस अभियान से जुड़े हैं।

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