3 पुलिसकर्मियों को फांसी,5 को उम्रकैद
लखनऊ। केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत ने गोंडा में 1982 में हुए फर्जी मुठभेड़ मामले में शुक्रवार को तीन पुलिसर्मियों को फांसी की सजा सुनाई। अदालत ने पांच पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की भी सजा दी।
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने पिछले 29 मार्च को सभी आठ पुलिस वालों को दोषी करार दिया था। विशेष न्यायाधीश ने गोंडा के माधोपुर थाना प्रभारी आर.बी. सरोज, हेड कांस्टेबल रामनायक और सिपाही रामकरन को फांसी की सजा दी। दारोगा नसीम अहमद, सिपाही मंगल सिंह, परवेज हुसैन, राजेन्द्रप्रसाद सिंह तथा प्रेम नारायण पांडेय को आजीवन कारावास की सजा दी गई है।
सजा पाये सभी पुलिस वाले अभी जेल में हैं। गोंडा के माधोपुर में 13 मार्च 1982 को पुलिस उपाधीक्षक के.पी.सिह दबिश के लिए गए थे। कथित मुठभेड़ में पुलिस उपाधीक्षक समेत 13 लोगों की मौत हो गई जिसमें बारह ग्रामीण थे। गांव वालों की मौत को पुलिस ने मुठभेड़ बताया। सीबीआई ने इस पूरे मामले की जांच की और मुठभेड़ को फर्जी पाया।
सीबीआई ने 19 पुलिस वालों को इस मामले में अभियुक्त बनाया जिसमें दस की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। हेड कांस्टेबल प्रेम सिंह को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया। अदालत ने फांसी की सजा पाए तीनों पुलिस वालों को पुलिस उपाधीक्षक समेत सभी गांव की हत्या का मुख्य दोषी माना तथा आजीवन कारावास की सजा पाने वाले पुलिस वालों को हत्या का षडयंत्रकारी पाया।
गोंडा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक यशपाल सिंह ने कहा था कि पुलिस उपाधीक्षक के.पी.सिंह अपराधियों की गोलियों का शिकार हुए जबकि उनकी पत्नी विभा सिंह ने कहा कि उनके पति की साजिश के तहत पुलिस वालों ने ही हत्या की है क्योंकि कुछ बड़े अधिकारी उनके पति से प्रसन नहीं थे। उस वक्त तत्कालीन पुलिस अधीक्षक यशपाल सिंह का नाम भी साजिशकर्ता में आया लेकिन बाद में उनके नाम को हटा दिया गया।
मृत पुलिस उपाधीक्षक की पत्नी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने सीबीआई से इसकी जांच के आदेश दिए। सीबीआई ने जांच में पाया कि पुलिस उपाधीक्षक की हत्या साजिश के तहत की गई थी। पुलिस उपाधीक्षक की बेटी तथा बहराईच की जिलाधिकारी किंजल सिंह ने इसे न्याय की जीत बताया है। वह दोषी पुलिसवालों को सजा सुनाए जाने वक्त अदालत में मौजूद थीं।
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