मूंडवा में उठे तीन जनाजे पावा में दो अर्थियां
एक दिन में आधा दर्जन हादसों से शोक मग्न हो गए जिले के कई शहर और गांव
मूंडवा को सुबह सड़क हादसे में मूंडवा के तीन लोगों की मौत की खबर जिसने भी सुनी स्तब्ध रह गया। वो निकले तो थे घर से मेहनत मजदूरी करने के लिए, मगर घर से करीब डेढ़ दो किलोमीटर दूर जाते ही उनकी हो गई। बेकाबू ट्रक ने मूंडवा के इन तीन युवकों की जिंदगी लील ली और सात मासूम बच्चों को अनाथ करने के साथ ही तीन सुहागिनों की मांग उजाड़ दी। इस घटना से पूरा कस्बा शोकमग्न हो गया।
थानाधिकारी अनिल विश्नोई ने बताया कि मूंडवा के नागौरी फलसा निवासी बाबू खां तेली के दो पुत्र मेहबूब व मईनुद्दीन तथा शौकत पीर साहब के पुत्र सैय्यद सरफराज मेहनत मजदूरी करके परिवार का गुजर बसर कर रहे थे। रोजाना नौ बजते ही घर से निकलते और दिन ढलते वापस आ जाते। बाईपास लक्ष्मी होटल के आगे घुमाव पर एक ट्रक ने इनकी मोटरसाइकिल को चपेट में ले लिया। चालक ने ट्रक रोका नहीं और मोटर साइकिल को करीब तीस चालीस फीट तक घसीटता चला गया। मोटर साइकल बुरी तरह उसमें फंस गई तो चालक ट्रक छोड़कर भाग गया। तीनों युवकों के सिर बुरी तरह कुचल गए। दो भाइयों के सिर तो पूरी तरह पिस गए केवल धड़ बाकी रहा, जबकि तीसरे का आधा सिर और एक हाथ कुचल गया। तीनों को पहचान पाना मुश्किल हो गया था। मोटर साइकल और उनके कपड़ों से पहचान हो पाई। मौके पर पहुंचे थानाधिकारी अनिल विश्नोई ने तुरंत जाम से बचने के लिए वहां खड़े तमाशबीनों और वाहनों को निकाला। शवों को अन्य वाहन से राजकीय अस्पताल की मोर्चरी तक पहुंचाया। घटना की सूचना मिलने पर बड़ी संख्या में कस्बेवासी अस्पताल पहुंच गए। हर कोई इस घटना से व्यथित नजर आया।
सात बच्चों को अब नहीं मिल पाएंगे उनके पिता
मेहबूब अली के दो पुत्र वसीम (13) व शराफत अली (11) हैं। मईनुद्दीन के दो संतान खुशबू (14) व रिजवान (10) तथा सैय्यद सरफराज के तीन संतान उजमा बानो (3), अलसीमा बानो (6), सोहैल खान (2) हैं। इन सातों ने पिता के काम से लौटकर आने पर अरमान संजोए होंगे। मगर इन मासूमों को क्या मालूम अब उनके पिता कभी दिखाई नहीं देंगे। वे किसकी गोदी में खेलेंगे और किससे अपने लिए खिलौने मांगेंगे। यह बात जब लोगों को याद आई तो उनकी आंखों से भी आंसू निकल पड़े।
कस्बे में सन्नाटा
तीनों युवक अपनी व्यवहार कुशलता के लिए जाने जाते थे। परिचितों मित्रों ने बताया कि वे सीधे अपने रास्ते जाते थे और आते थे। बिना वजह न तो कहीं रुकते और न ही किसी से बतलाते थे केवल अपने काम से ही मतलब रखते थे। जब उनका जनाजा उठ रहा था तो हर कोई उनकी व्यावहारिकता की चर्चा कर रहा था। पूरे मोहल्ले की दुकानें बंद थी। जो मेहनत मजदूरी पर जाते हैं वे घटना के बारे में सुनकर काम से लौट आए। सबने अपने काम की छुट्टी कर ली। जब इनका जनाजा उठा तो पूरे मोहल्ले में सन्नाटा छा गया। (
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