शनिवार, 16 मार्च 2013

करोड़ों की मालकिन फटेहाल

करोड़ों की मालकिन फटेहाल

श्रीगंगानगर। बदन पर फटे पुराने कपड़े, उलझे हुए बाल जिनमें कई सालों से कंघी नहीं हुई। भीख में जो भी मिल जाए उसी से गुजारा। पगली समझ उसमें कोई भी दिलचस्पी नहीं लेता। लेकिन उसकी कहानी तो वाकई दिलचस्प है। सूरज की किरणें धरती पर पड़ने के साथ ही शहर की सड़कों पर भीख मांगने से उसकी दिनचर्या शुरू होती है और सांझ ढलने के साथ समाप्त। यह महिला अनपढ़-गंवार नहीं बल्कि अंग्रेजी साहित्य में एमए है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में उसने बच्चों को कई सालों तक शेक्सपियर, इलियट व वड्र्स वर्थ की कविताओं के अर्थ बताए।

मानसिक संतुलन खोने के बाद भी उसने इस भाषा पर पकड़ नहीं खोई। वह फर्राटे से अंग्रेजी बोलती है और उतनी ही तेजी से कलम चलाकर बहुत कुछ लिख भी देती है। इस महिला का नाम है अनिता मित्तल। मोहाली के सत्येन्द्र मित्तल के साथ 1986 में उसकी शादी हुई। ससुराल समृद्ध था। वैवाहिक जीवन की गाड़ी पटरी पर चल रही थी। परेशानी का दौर तब शुरू हुआ जब अनिता शादी के दो-तीन साल बाद भी मां नहीं बनीं। इस बात को लेकर ससुराल वालों ने ताने देने शुरू किए तो वह डिप्रेशन में आ गई और एक दिन उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। श्रीगंगानगर निवासी भाई ने उसका इलाज करवाया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। भाई ने ही यहां अग्रसेन नगर के पास जाखड़ कॉलोनी में मकान लेकर दिया तो अनिता और उसका पति मोहाली से यहां आकर रहने लगे।

पति की मौत से बिखरा घर
दो साल पहले पति की मौत हुई तो वह बिलकुल बिखर गई। नहाना-धोना बंद कर दिया और कई-कई दिन भूखी रहने लगी। रखरखाव और सफाई के अभाव में घर खंडहर होता जा रहा है। तन की सुध नहीं लेने से दोनों हाथों में संक्रमण हो चुका है। एक हाथ की अंगुलियां तो इतनी खराब हो गई है कि उसमें छोटे-छोटे छेद बन गए हैं। जख्मों को मैले कपड़े से ढांप कर रखने से संक्रमण बढ़ता जा रहा है।

सरकार की ओर से शुरू की गई नि:शुल्क उपचार और दवा योजना का फायदा उसे शायद ही मिले। किसी समाजसेवी संगठन ने भी उसकी सुध नहीं ली है। इस महिला के भाई ने बताया कि अनिता के पति के नाम मोहाली में करोड़ों की संपत्ति थी, जिस पर उसके परिवार वालों ने कब्जा कर लिया है। पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने उसे कभी संभाला नहीं। अनिता के पड़ोसियों का कहना है कि भाई कभी-कभार आकर उसे संभाल जाता है। उसने पास ही एक टिफिन सेंटर से अनिता के लिए दोनों वक्त का खाना शुरू करवा रखा है।

बहुत कम बोलती है
मानसिक संतुलन खोने के बाद अनिता बहुत कम बोलती है। दीन दुनिया से बेपरवाह अपनी धुन में रहती है। किसी ने कुछ खाने को दे दिया तो खा लेती है, नहीं तो इधर-उधर भटक कर फिर उस घर में आ जाती है, जिसके आंगन में उसके जीवन की कई यादें बिखरी हुई है।

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