रविवार, 31 मार्च 2013

दिल्ली की तरफ बढ़े मोदी के कदम

दिल्ली की तरफ बढ़े मोदी के कदम

नई दिल्ली। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की छह साल बाद बीजेपी की संसदीय समिति में वापसी हो गई है। भाजपा का यही संसदीय समिति 2014 के आम चुनाव की अगुआई करेगी। समिति ही पार्टी में फैसले लेने वाली सबसे ताकतवर समिति है। संसदीय बोर्ड में वह अकेले मुख्यमंत्री हैं। इससे साफ हो गया है कि केंद्रीय राजनीति में मोदी का कद बढ़ चुका है और अगले लोकसभा चुनाव में उनकी बड़ी भूमिका होने जा रही है। राजनीतिक गलियारे में मोदी की वापसी को भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने की ओर उनके बढ़ते कदम के तौर पर देखा जा रहा है। दीगर बात है कि पिछली बार भी राजनाथ सिंह ने ही मोदी को पार्टी के संसदीय बोर्ड में लेकर आए थे लेकिन एक साल बाद ही मोदी को हटाना पड़ा था।

दागी अमित शाह का कद बढ़ा

इतना ही नहीं बल्कि उनके करीबी माने जाने वाले गुजरात के नेता अमित शाह को महासचिव बनाया गया है। 2005 में हुए सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद शाह को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वरूण गांधी के खिलाफ, 2009 के आम चुनाव के दौरान घृणास्पद भाषण देने के लिए दो मामले दर्ज किए गए थे। इस महीने के प्रारम्भ में उन्हें हालांकि आरोपमुक्त कर दिया गया था।

मोदी पर सहमत नहीं थे आडवाणी-सुषमा!

सूत्रों के अनुसार मोदी को एकमात्र सीएम के तौर पर संसदीय बोर्ड में लाने के फैसले को सुषमा और आडवाणी ने एक बार फिर से चुनौती दी थी। मगर मोदी का नाम आखिर तक मजबूती से चला। भाजपा अध्यक्ष ने जेटली से भी भेंट कर उनसे उनकी राय ली। दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद धर्मेन्द्र प्रधान को भी बतौर महासचिव बरकरार रखने का फैसला हुआ।

अंतिम समय तक उहापोह की स्थिति

अंतिम समय में संघर्ष के चलते टीम राजनाथ की घोषणा शनिवार को रूक गई और रविवार को वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की। राजनाथ ने शनिवार को अपने पदाधिकारियों की सूची को लेकर सुषमा स्वराज और अरूण जेटली से मंत्रणा की थी। सूत्रों के अनुसार नरेंद्र मोदी को इकलौते मुख्यमंत्री के तौर पर संसदीय बोर्ड में लाने और धर्मेन्द्र प्रधान को दोबारा से महासचिव बनाने का अंतिम विरोध हुआ। धर्मेन्द्र की जगह प्रभात झा के नाम की चर्चा चली, लेकिन उनके नाम को पार्टी नेताओं का सर्मथन नहीं मिला है। उनके लिए महज संघ के सुरेश सोनी प्रयासरत रहे। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी उन पर आपत्ति थी। इसलिए झा को उपाध्यक्ष पद ही मिल सका।

वरूण के विरोध में कटियार!

राजनाथ सिंह की नई टीम बनने के साथ ही मतभेद भी शुरू हो गए। पूर्व उपाध्यक्ष और पूर्व महासचिव विनय कटियार ने वरूण गांधी को महासचिव बनाए जाने पर परोक्ष रूप से अपनी नाराजगी जताई है। रामजन्मभूमि आंदोलन के सक्रिय नेता रहे विनय कटिहार का कहना है कि "गांधी" सरनेम का सबको फायदा मिलता है चाहे वह कांग्रेस में हो या भाजपा में।

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