बुधवार, 20 मार्च 2013
बहुमुखी प्रतिमा के धनी - श्री मणिप्रभसागरजी
फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी जन्म दिवस पर
बहुमुखी प्रतिमा के धनी - श्री मणिप्रभसागरजी
-भूरचन्द जैन, बाड़मेर
राष्ट्रीय संतों की श्रृंखला में जैन उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर जी का नाम उनके ओजस्वी, उज्जवल, आदर्श व्यकितत्व के कारण गिना जाता है । जो बचपन से वैराग्य धारण करते हुए जैन शासन की जमकर प्रभावना कर रहे है । जैन संस्कृति को सदियों तक जीवित रखने के लिये कर्इ नवोदय तीर्थों को खड़ा कर रहे है । जैन धर्म की संत परम्परा को बढ़ाने के लिये कर्इ जैन साधु साधिवयों को दीक्षित कर अनुकरणीय प्रयास किया है । नैतिक जीवन जीने के लिये जनसमुदाय हेतु आपकी प्रेरणा से शिक्षण संस्थाओं चल रही हंै । मानव सेवा के लिये अस्पतालों का निर्माण संचालन आपकी प्राथमिकता बनती जा रही हैं । जैन तीर्थों की रक्षा, सुरक्षा, जीर्णोद्धार के साथ उसकी महिमा को बढ़ाने आप द्वारा प्रेरित संघ यात्राओं की लम्बी सूची है । ज्ञान की आराधना, उपासना आपके जीवन का अंग बन गया है जिससे प्रभावित होकर कर्इ पुस्तकों का लेखन आपकी अनूठी पहल है । जैन धार्मिक गतिविधियों ही आपके जीवन का ध्येय बन चुका है । आपके उपदेश प्रेरणा से कर्इ धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न हुए हैं । आपकी गुरूभकित अद्वितीय है जिसके लिये गुरू मनिदरों के साथ उनके नाम की शैक्षणिक आदि संस्थाऐं चलाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने का आपका प्रयास प्रशंसनीय है । ऐसी बहुमुखी प्रतिभा पर भारतीय संत परम्परा को गौरव होना स्वाभविक है ।
जैन संत उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी का जन्म पशिचमी राजस्थान के सीमावत्र्ती, रेगिस्तानी प्राकृतिक प्रकोप से पीडि़त एवं वत्र्तमान खनिज सम्पदा पेट्रोल आदि के धनी बाड़मेर जिले के मोकलसर में साधारण सभ्रान्त जैेन लंूकड़ श्री पारसमलजी के यहां वि.सं. 2016 फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी को हुआ । नाम मीठालाल रखा । जब चार वर्ष के हुए तब पिता का स्वर्गवास होने पर आपका और आपकी छोटी छ: मास की बहन विमला के पालन पोषण की जिम्मेदारी माता रोहिणी पर आर्इ । कर्इ प्रकार के आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक संकटों विकटों के बीच मां रोहिणी ने दोनों के पालन पोषण, शिक्षा आदि में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया । जब पुत्र मीठालाल चौदह वर्ष का और विनला दस वर्ष की हुर्इ तब रोहिणी ने अपने आत्म कल्याण के लिये जैन भगवती दीक्षा ग्रहण कर साध्वी श्री रतनमाला बन गर्इ और पुत्र-पुत्री को भी वि.सं. 2030 आषाढ़ कृष्णा सप्तमी को जैन तीर्थ पालीताणा महातीर्थ पर खरतरगच्छ के मुनि श्री कांतिसागरजी (बाद में आचार्य) से दीक्षा दिलवा दी । मां, पुत्र, पुत्री तीनों ने जैन साधुत्व स्वीकार कर लिया । मीठालाल का नाम मुनि श्री मणिप्रभसागर एवं विमला का नाम साध्वी श्री विधुत्प्रभा श्रीजी रखा ।
जैन मुनि श्री मणिप्रभसागरजी ने अपनी साधुत्व जीवन की यात्रा क्रांतिकारी संत मुनि श्री कांतिसागरजी एवं जैन शास्त्रों के विद्धान संत मुनि श्री दर्शनसागरजी के मार्गदर्शन से आरम्भ की । जिसके कारण आप मात्र जैन मुनि श्री कांतिसागरजी (आचार्य) की भांति ओजस्वी वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने में भारत विख्यात हो चुके है । वहां धार्मिक क्षेत्र में आप द्वारा जैन शासन सेवा के रूप में अब तक आपने 85 से अधिक साधु-साधिवयों को दीक्षित किया है, वहां 115 से अधिक जैन धर्मिक स्थलों की प्रतिष्ठा करवाने का गौरव प्राप्त कर रखा हैं । वहां दस से अधिक पद यात्रा संघ निकलवा कर अनेकों जैन तीर्थों की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त किया है ।
मुनि श्री मणिप्रभसागरजी की जैन साधु परम्परा एवं जैन शासन व्यस्था को देखते हुए 24 जून 1982 में बाड़मेर जिले के पादरू में आपको गणि पद की जिम्मेदारी सौंपी और इसी जिले की ऐतिहासिक एवं दादा गुरूदेव श्री कुशलसूरिजी की जन्म स्थली सिवाना पर 26 जनवरी 2001 गणतंत्र दिवस पर आपको उपाध्याय पद से सम्मानित किया । आप मारवाड़ की मणि से भी अपनी वाक पटूता, आदर्श जीवन, त्याग की प्रतिमूर्ति, स्नेह एवं आत्मीयता के धनी, शान्त प्रकृति से आपकी पहचान न केवल जैन धर्मावलमिबयों के बीच है अपितु असंख्य अजैन आपके आशीर्वाद और सत्संग को प्राप्त करने के लिये ललायित रहते हैं । आपकी राष्ट्रभकित, नैतिकता, मानव कल्याण, स्त्री उत्थान, सदाचार शिष्टाचार के साथ जैन धर्म शास्त्रों के अतिरिक्त अन्य धर्मों पर आपके प्रवचनों को सुनने के लिये जन समुदाय सदैव आतुर रहता है ।
जैन धर्म के उपाध्याय श्री मणिप्रभ सागरजी की सबसे बड़ी जैन शासन को ऐतिहासिक देन के रूप में मांडवला (जालोर) का जहाज मनिदर, केसरियाजी (उदयपुर) का गज मनिदर और बाड़मेर कुशल वाटिका का राजहंस मनिदर अपनी अनोखी, अदभूत, आकर्षक, शिल्प शैली के लियें अद्वितीय पहचान के साथ देश में अपने तरीके के मनिदर होने का परिचय दे रहे हैं । खरतरगच्छ के धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों की वर्षो-वषाेर्ं अर्थात सदियों तक देखभाल करने के लिये पालीताणा में आपने जिनदत्त कुशलसूरि खरतरगच्छ पेढी को करोड़ रूपयों की स्थार्इ फण्ड से शुभारम्भ कर इतिहास में अद्वितीय कार्य किया है । जिसकी महक सदियों तक बनी रहेगी । वहां जैन शासन के गौरव, मरूभूमि के लाडले, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, खरतरगच्छ के संत उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी के व्यकितत्व एवं कृतित्व की महक सदियों तक बनी रहेगी ।
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(भूरचन्द जैन)
जूनी चौकी का बास, बाड़मेर (राज.)
मो. : 09530249662
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