मंगलवार, 19 मार्च 2013

यौन अपराध अध्यादेश पर राष्ट्रपति ने किए हस्ताक्षर



नई दिल्ली ।। दिल्ली गैंगरेप के बाद हुए अभूतपूर्व जनविरोध के माहौल में जस्टिस वर्मा कमिटी की सिफारिशों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पास किए गए अध्यादेश पर रविवार को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हस्ताक्षर कर दिए। हालांकि इस अध्यादेश को नाकाफी बताते हुए महिला संगठनों ने राष्ट्रपति से अपील की थी कि वह इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर न करें।

राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अध्यादेश लागू हो चुका है। अब छह महीने के अंदर इस अध्यादेश पर संसद की मंजूरी लेनी होगी, लेकिन तब तक इसके लागू होने में कोई बाधा नहीं है।

इस अध्यादेश में रेप के लिए कड़ी सजा के प्रावधान किए गए हैं। रेप पीड़ित की मौत होने या उसके कोमा में चले जाने जैसी स्थितियों में अपराधी या अपराधियों के लिए फांसी तक की सजा तय की गई है। इसके अलावा रेप के लिए अधिकतम सजा को बढ़ाकर बाकी पूरी जिंदगी की जेल में तब्दील कर दिया गया है।

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महिला संगठनों का विरोध
दिलचस्प तथ्य यह है कि जो महिला संगठन जस्टिस वर्मा कमिटी की सिफारिशों का स्वागत कर रहे थे, वही इस अध्यादेश के विरोध पर उतर आए हैं। इन संगठनों का कहना है कि अध्यादेश में जस्टिस वर्मा कमिटी की मुख्य सिफारिशों को शामिल नहीं किया गया है।

अध्यादेश में हालांकि रेप के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। अगर रेप पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा जैसी हालत में चली जाती है तो ऐसे मामलों में अपराधियों के लिए फांसी तक की सजा तय की गई है। मगर, कई ऐसी सिफारिशें खारिज कर दी गई हैं या उनकी अनदेखी कर दी गई हैं जो देश भर में रेप जैसे अपराध पर रोक लगाने की दृष्टि से बेहद जरूरी माने गए थे।

सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून से जुड़ा सुझाव खारिज
ऐसा ही एक अहम सुझाव यह था कि रेप या अन्य यौन अपराधों पर सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून लागू नहीं होना चाहिए। ऐसे मामलों में आरोपियों को गिरफ्तार कर उन पर सामान्य अदालतों में मामला चलाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर और उत्तर पूर्व के राज्यों में खास तौर पर यह शिकायत की जाती है कि वहां तैनात जवान सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून का दुरुपयोग करते हुए महिलाओं पर अत्याचार करते हैं। इस लिहाज से जस्टिस वर्मा कमिटी की इस सिफारिश का काफी महिला संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने काफी स्वागत किया था। आम लोगों में भी यह बात महसूस की गई थी कि दंगाइयों या आतंकियों को पकड़ने के लिहाज से या कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिहाज से सुरक्षा बलों को विशेष अधिकारों की जरूरत हो भी तो उसका इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध में करने की गुंजाइश तो किसी भी सूरत में नहीं छोड़ी जानी चाहिए। मगर, आश्चर्यजनक ढंग से सरकार ने इस अध्यादेश में इस सिफारिश को शामिल नहीं किया।

जनप्रतिनिधियों से जुड़े सुझाव की अनदेखी
जस्टिस वर्मा कमिटी ने कहा था कि अगर रेप के किसी मामले को अदालत अपने संज्ञान में ले लेती है तो आरोपी के चुनाव लड़ने पर रोक लग जानी चाहिए। अच्छी खासी संख्या में मौजूदा जनप्रतिनिधियों पर भी ऐसे आरोप लगे हुए हैं। इसे देखते हुए इस सिफारिश को भी अहम माना गया था। मगर, सांसदों, विधायकों के संभावित विरोध को देखते हुए या किसी अन्य कारण से सरकार ने इस सुझाव को भी नजरअंदाज कर दिया।

मंजूरी की जरूरत खत्म करने की बात भी नहीं मानी
जस्टिस वर्मा कमिटी ने एक अहम सिफारिश यह की थी कि जज समेत तमाम बड़े अधिकारियों पर अगर रेप के आरोप लगते हैं तो उन पर कानूनी कार्रवाई शुरू करने से पहले किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होनी चाहिए। मगर, इस सिफारिश को भी अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया।

पत्नी से रेप पर सुझाव खारिज
वैवाहिक रेप के संबंध में महिला संगठनों की पुरानी मांग पर गौर करते हुए जस्टिस वर्मा कमिटी ने पत्नी के साथ रेप पर भी कड़ी सजा की सिफारिश की थी। मगर, सरकार ने इसे भी इस अध्यादेश में शामिल नहीं किया।

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