ओशो के आश्रम से 55 मिलियन डॉलर का घपला करने के आरोप में शीला 39 महीनों तक जेल में रहीं। जेल से बाहर आने के लगभग 20 साल बाद मां आनंद शीला ने (पहले शीला अंबालाल पटेल) हाल ही में रिलीज हुई अपनी किताब ‘डोंट किल हिम! ए मेम्वर बाई मा आनंद शीला’ में ओशो व उनके आश्रम से जुड़े कई रहस्यों से पर्दा उठाया है।
अपनी किताब में उन्हें कई जगह ओशो यानी रजनीश की धन और भौतिक सुख-सुविधाओं की लालसा का जिक्र किया है। हालांकि, ओशो के समर्थक शीला पर यह आरोप लगाते हैं कि उन्होंने अपनी किताब के प्रचार के लिए इस तरह की बातें कीं।
भगवान से मुलाकात :
मुंबई स्थित मेरे चाचा के बंगले के ठीक सामने ही रजनीश का निवास स्थल था। इसलिए उनसे मुलाकात की मेरी इच्छा जल्दी ही पूरी हो गई। दरअसल, यह मुलाकात मेरे लिए मेरा अंत था। हालांकि, यह मुलाकात मेरे जीवन का एक यादगार पल भी साबित हुआ। मैं उनसे मिलने के लिए इतनी बेताब थी कि बिना अप्वाइंटमेंट के ही उनसे मिलने पहुंच गई थी। उस बहुमंजिला इमारत में स्थित उनके फ्लैट में तीन कमरे थे। उनकी सचिव मां योगी लक्ष्मी ने (लोग उन्हें लक्ष्मी मां से संबोधित किया करते थे) अपार्टमेंट में प्रवेश करते ही रिसेप्शन के डेस्क से मेरा स्वागत किया।
मां लक्ष्मी ने रजनीश के पास जाकर मेरे बारे में बताया। थोड़ी देर बाद मुझे व मेरे पिता को अंदर जाने की अनुमति मिल गई। इस समय रजनीश कमरे के कोने में एक कुर्सी पर बैठे हुए थे। वे सफेद कपड़ों में थे। उनके ठीक पीछे एक छोटी सी टेबल थी, जिस पर कई किताबें पड़ी थीं। उनकी कुर्सी के सामने दो पलंग थे। बस इन चीजों के अलावा लगभग पूरा कमरा खाली था।कुछ क्षणों तक उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाए रखा। मुझे एक अद्भुत व अनंत आनंद का अनुभव हुआ। इसके बाद उन्होंने आहिस्ते-आहिस्ते से मुझे छोड़ा और मेरा हाथ पकड़ लिया। मेरे सिर को अपनी गोद में रखा। इसके बाद उन्होंने मेरे पिता से बातचीत शुरू की, लेकिन मैं उन्हीं में खोई हुई थी। मैं वहां होने पर भी न होने जैसा अनुभव कर रही थी।
ओशो ने कहा, ‘शीला, तुम मुझसे कल दोपहर में 2.30 बजे मिलने आओगी।'
मुंबई स्थित मेरे चाचा के बंगले के ठीक सामने ही रजनीश का निवास स्थल था। इसलिए उनसे मुलाकात की मेरी इच्छा जल्दी ही पूरी हो गई। दरअसल, यह मुलाकात मेरे लिए मेरा अंत था। हालांकि, यह मुलाकात मेरे जीवन का एक यादगार पल भी साबित हुआ। मैं उनसे मिलने के लिए इतनी बेताब थी कि बिना अप्वाइंटमेंट के ही उनसे मिलने पहुंच गई थी। उस बहुमंजिला इमारत में स्थित उनके फ्लैट में तीन कमरे थे। उनकी सचिव मां योगी लक्ष्मी ने (लोग उन्हें लक्ष्मी मां से संबोधित किया करते थे) अपार्टमेंट में प्रवेश करते ही रिसेप्शन के डेस्क से मेरा स्वागत किया।
मां लक्ष्मी ने रजनीश के पास जाकर मेरे बारे में बताया। थोड़ी देर बाद मुझे व मेरे पिता को अंदर जाने की अनुमति मिल गई। इस समय रजनीश कमरे के कोने में एक कुर्सी पर बैठे हुए थे। वे सफेद कपड़ों में थे। उनके ठीक पीछे एक छोटी सी टेबल थी, जिस पर कई किताबें पड़ी थीं। उनकी कुर्सी के सामने दो पलंग थे। बस इन चीजों के अलावा लगभग पूरा कमरा खाली था।कुछ क्षणों तक उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाए रखा। मुझे एक अद्भुत व अनंत आनंद का अनुभव हुआ। इसके बाद उन्होंने आहिस्ते-आहिस्ते से मुझे छोड़ा और मेरा हाथ पकड़ लिया। मेरे सिर को अपनी गोद में रखा। इसके बाद उन्होंने मेरे पिता से बातचीत शुरू की, लेकिन मैं उन्हीं में खोई हुई थी। मैं वहां होने पर भी न होने जैसा अनुभव कर रही थी।
ओशो ने कहा, ‘शीला, तुम मुझसे कल दोपहर में 2.30 बजे मिलने आओगी।'
मैंने उन्हें बताया कि कितनी मुश्किल से यह समय काटा। मैंने उनसे कहा कि मुझे नींद नहीं आ रही थी, मुझे भूख-प्यास भी नहीं लग रही थी। मैं मानसिक बीमारी का अनुभव कर रही थी। मेरी यह बात सुनकर ओशो ने कहा, ‘शीला यह स्वाभाविक है, क्योंकि तुम मेरे प्रेम में हो और मैं तुम्हारे प्रेम में हूं।’
शीला ने अपनी किताब में लिखा है कि ओशो एक अद्भुत बिजनेसमैन थे। उन्हें अपने प्रोडक्ट, उसकी कीमत और मार्केट की अच्छी जानकारी थी। वे आश्रम को इस तरह चलाना चाहते थे, जिससे तमाम खर्च रिकवर हो जाएं। इसी के चलते आश्रम में प्रवेश के लिए फीस भी वसूली जाती थी। उनके थेरेपिस्ट ग्रुप भी आश्रम में थेरेपी के लिए पैसे लिया करता था। आश्रम में आने वाले लोगों को उनका मनपसंद भोजन मुहैया करवाया जाता था और इसके लिए भरपूर पैसा वसूला जाता था। आश्रम में आने वाले लोगों से एंट्री फी, ग्रुप एंट्री फी सहित पैसे कमाने के कई विकल्प मौजूद थे, जिससे कुछ ही समय में पानी की तरह पैसा आने लगा।
उनके आश्रम में थेरेपी का एक प्रमुख भाग सेक्स था। यहां कामुकता किसी भी निर्णय के बगैर स्वीकार्य थी। सेक्स के संबंध में माना जाता था कि इसका नैतिकता से संबंध नहीं। ओशो चाहते थे कि युगल किसी भी चिंता के बगैर संभोग करे। धीरे-धीरे आश्रम में सेक्स चरम पर पहुंच गया। कई बार तो अति उत्साह और बौद्धिकता की सीढ़ी जल्दी चढ़ने के चक्कर में गई ग्रुपों के बीच हिंसा भी हो जाया करती थी।
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